जलवायु

समुद्र में बढ़ते तापमान के साथ बढ़ जाएगी ध्वनि की रफ्तार, जीवों के लिए पैदा हो सकता है बड़ा खतरा

वैज्ञानिकों की मानें तो समुद्र में ध्वनि की रफ्तार में आता इस तरह का बदलाव समुद्री जीवन की आवश्यक गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन के चलते जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है उसका असर समुद्रों पर भी पड़ रहा है और वो पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा गर्म होते जा रहे हैं। इसका असर समुद्र में ध्वनि की रफ्तार पर भी पड़ रहा है।

इस बारे में हाल ही में किए शोध से पता चला है कि बढ़ते तापमान के चलते ध्वनि की रफ्तार कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी और वो लम्बे समय तक समुद्र में गूंजती रहेंगी।

शोधकर्ताओं के मुताबिक तापमान का असर न केवल समुद्र में मौजूद प्राकृतिक ध्वनियों पर पड़ रहा है बल्कि साथ ही इसके चलते इंसानी शोर भी प्रभावित हो रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो समुद्र में ध्वनि की रफ्तार में आता इस तरह का बदलाव समुद्री जीवन की आवश्यक गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है। 

जर्नल अर्थ फ्यूचर में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक गर्म पानी में ध्वनि तरंगें तेजी से फैलती हैं, जिस वजह से वो कहीं ज्यादा शोर पैदा करती हैं। साथ ही यह ध्वनि तरंगे लम्बे समय तक रह सकती हैं। इस बारे में शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता ऐलिस अफताती का कहना है कि उन्होंने भविष्य में आने वाले इस बदलाव को मापने के लिए सार्वजानिक आंकड़ों की मदद से तापमान, गहराई और लवणता के प्रभावों की गणना की है। उनके अनुसार यह पहला अध्ययन है जिसमें भविष्य में जलवायु में आने वाले बदलावों के आधार पर समुद्रों में ध्वनि की रफ्तार का अनुमान लगाया है। 

ध्वनि की रफ्तार में 25 मीटर प्रति सेकंड से ज्यादा की हो सकती है वृद्धि

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन दो हॉटस्पॉट का भी पता लगाया है जहां भविष्य में तापमान में होती वृद्धि के चलते भारी बदलाव देखने को मिल सकते हैं। पता चला है कि ग्रीनलैंड सागर में ऐसे दो हॉटस्पॉट हैं जबकि न्यूफ़ाउंडलैंड के पूर्व में उत्तर-पश्चिमी अटलांटिक महासागर में एक क्षेत्र में 50 से 500 मीटर की गहराई में सबसे ज्यादा बदलाव आ सकते हैं।

शोध के अनुसार सदी के अंत तक यदि तापमान में होती वृद्धि (आरसीपी 8.5) इसी तरह जारी रहती है तो समुद्र में 500 मीटर की गहराई में ध्वनि की औसत रफ्तार 1.5 फीसदी बढ़ जाएगी। मतलब की ध्वनि की गति में लगभग 25 मीटर प्रति सेकंड से ज्यादा की वृद्धि हो सकती है। 

इस बारे में जानकारी देते हुए शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता स्टेफानो सैलून ने बताया कि अनुमान है कि इसका सबसे ज्यादा प्रभाव आर्कटिक में देखने को मिल सकता है। यह वो क्षेत्र है जो पहले ही जलवायु परिवर्तन की मार को झेल रहा है। हालांकि इसका असर पूरे आर्कटिक में न होकर किसी एक विशेष हिस्से में देखने को मिलेगा जहां सभी कारक एक साथ प्रभावित करेंगें। 

गौरतलब है कि 50 मीटर की गहराई में ध्वनि की रफ़्तार ध्रुवीय क्षेत्रों में 1,450 मीटर प्रति सेकंड से लेकर भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में 1,520 मीटर प्रति सेकंड तक होती है। शोध से पता चला है कि बैरेंट्स सागर, उत्तर-पश्चिमी प्रशांत और दक्षिण महासागर में 50 मीटर और आर्कटिक सागर, मैक्सिको की खाड़ी और दक्षिणी कैरिबियन सागर में 500 मीटर की गहराई में ध्वनि की रफ्तार में एक फीसदी की वृद्धि हो सकती है जोकि 15 मीटर प्रति सेकंड से ज्यादा होगी।

शोधकर्ताओं के मुताबिक ध्वनि कितनी तेजी से कितनी दूर तक जाती है यह तापमान, गहराई, लवणता के साथ दबाव पर निर्भर करता है। अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने उन हॉटस्पॉट पर ध्यान केंद्रित किया है जहां जलवायु परिवर्तन के असर स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं। इसके साथ ही इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उत्तरी अंटलांटिक में मिलने वाली राइट व्हेल पर भी प्रभावों का अध्ययन किया है। गौरतलब है कि यह प्रजाति पहले ही गंभीर संकट में है।     

देखा जाए तो कई समुद्री जीव एक दूसरे के साथ संवाद करने और पानी के नीचे की दुनिया को नेविगेट करने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग करते हैं। ऐसे में ध्वनि की रफ्तार में आता यह बदलाव उनके भोजन, आपसी बातचीत, संघर्ष, साथी खोजने, शिकारियों से बचने और उनके पलायन करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में यह जरुरी है कि जलवायु परिवर्तन के असर को सीमित करने के लिए अभी से कदम उठाएं जाएं साथ ही समुद्री जीवों पर इनके बढ़ते प्रभावों का व्यापक अध्ययन किया जाए।