जलवायु

कोयले का इस्तेमाल बंद करने की गति बहुत धीमी, तीन डिग्री सेल्सियस की ओर बढ़ रही है दुनिया

Dayanidhi

दुनिया भर में कोयले से बिजली पैदा करने में जिस रफ्तार से कमी आने की सोची गई थी, वैसा नहीं हो रहा है। पेरिस समझौते का अधिकतम दो डिग्री तापमान का लक्ष्य विफल होता दिख रहा है और दुनिया 2.5 से तीन डिग्री तापमान में वृद्धि की ओर बढ़ रही है।

एक नए अध्ययन में यह बात कही गई है कि बढ़ते तापमान से बचा जा सकता है। यह अध्ययन चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी और स्वीडन की लुंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है।

प्रोफेसर अलेह चेरप ने कहा कि, अधिक से अधिक देश वादा कर रहे हैं कि वे अपनी ऊर्जा प्रणालियों से कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटा देंगे, जो आशाजनक लगता है। लेकिन दुर्भाग्य से, वायदे उतने मजबूत नहीं हैं जितने होने चाहिए। उन्होंने कहा कि, कोयले से तेजी से बाहर निकलने की जरूरत है, चेरप, लुंड विश्वविद्यालय में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इंडस्ट्रियल एनवायर्नमेंटल इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर हैं।

चीन और अमेरिका जैसे देश जो बिजली पैदा करने में कोयले का सबसे अधिक इस्तेमाल करते हैं, इन जैसे देशों ने अभी तक कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाने का वायदा नहीं किया है।

चीन, अमेरिका और भारत को अपने कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से हटाने की जरूरत है

पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में दुनिया के तापमान में वृद्धि को दो डिग्री से नीचे रखने के लिए कोयले को चरणबद्ध रूप से बाहर करना आवश्यक है। शोध कार्यक्रम मिस्त्र विद्युतीकरण के एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने 2022 से  2050 तक अपने कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिए 72 देशों के संकल्प और वायदों का विश्लेषण किया है।

सबसे अच्छी स्थिति में, शोधकर्ता बताते हैं कि यह संभव है कि तापमान में वृद्धि दो डिग्री पर बनी रहे। लेकिन यह मानकर चलना कि, अन्य बातों के अलावा, चीन और भारत दोनों ही पांच साल के भीतर अपने कोयले के उपयोग पर लगाम लगाना शुरू कर देंगे।

इसके अलावा, उनके कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाने में उतनी ही तेजी लाने की जरूरत है जितनी ब्रिटेन में हुई है, जो कि सबसे तेज है और जर्मनी द्वारा किए गए वादे से भी तेज है। इससे असमानताएं पैदा हो सकती हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय नीतियों द्वारा हल किए जाने की आवश्यकता पड़ेगी।

तापमान के तीन डिग्री तक पहुंचने की आशंका

शोधकर्ताओं ने ऐसे परिदृश्य भी विकसित किए हैं जिन्हें वे सबसे वास्तविक मानते हैं। इन परिदृश्यों से पता चलता है कि पृथ्वी 2.5 से तीन डिग्री के ग्लोबल वार्मिंग की ओर बढ़ रही है

प्रोफेसर जेसिका ज्वेल कहती हैं, देशों की वायदे मजबूत नहीं हैं, यहां तक कि वे कोयला हटाने के सबसे महत्वाकांक्षी देशों में भी शामिल नहीं हैं। इसके अलावा, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से कुछ देशों को कोयला खत्म करने से रोका जा सकता है। ज्वेल, चेल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में फिजिकल रिसोर्स थ्योरी के डिवीजन में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

अध्ययन से पता चलता है कि कोयले से बिजली पैदा करने को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिए 72 देशों की प्रतिबद्धताएं एक-दूसरे के समान हैं। प्रतिबद्धताएं ऐतिहासिक आंकड़ों के अनुरूप हैं कि अतीत में कितनी जल्दी कोयले से बिजली पैदा करने को चरणबद्ध तरीके से हटाया गया था।

यदि हमें बढ़ते तापमान से बचना है तो कोयले को हटाने में अब और तेजी लानी होगी। यह अध्ययन एन्वाइरन्मेंटल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।