ग्रीनलैंड की पिघलती बर्फ के कारण इसका दुनिया भर पर असर पड़ेगा, क्योंकि यह समुद्र के स्तर में वृद्धि करने के लिए जिम्मेवार है और यह वायुमंडलीय प्रसार के पैटर्न को भी प्रभावित करता है।  फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

ग्रीनलैंड में बर्फ पिघलने की दर खतरनाक स्तर तक बढ़ी, दुनिया भर में जलवायु पर असर

पिघली हुई बर्फ के नुकसान के आंकड़े हर साल लगभग 300 गीगाटन तक पहुंच जाते हैं, जो कि प्रति वर्ष लगभग 4.8 करोड़ ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल के आयतन के बराबर है।

Dayanidhi

जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीनलैंड में बर्फ पिघलने की दर बहुत तेजी से बढ़ रही है, जिसका न केवल आर्कटिक बल्कि यूरोप सहित वैश्विक जलवायु पर भी खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है। बार्सिलोना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, बर्फ और बर्फ के बड़े इलाके तेजी से पिघलत रहे हैं, इस तरह की घटनाएं 1950-1990 की अवधि की तुलना में हाल के दशकों में गर्मियों के दौरान लगभग दोगुनी बार हुई हैं।

जर्नल ऑफ क्लाइमेट में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि पिछले दशक में ग्रीनलैंड में बर्फ के अत्यधिक पिघलने के चरम साल देखे गए हैं। उदाहरण के लिए, 2012 की गर्मियों के दौरान, 610 गीगाटन बर्फ जो कि 24.4 करोड़ ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल के बराबर है, बर्फ पिघली और 2019 में, 560 गीगाटन पिघली। यह अध्ययन यूबी के भूगोल विभाग के अंटार्कटिका, आर्कटिक और अल्पाइन (एएनटीएएलपी) अनुसंधान समूह द्वारा किया गया है।

ग्रीनलैंड की बर्फ पिघलने में बढ़ोतरी

अध्ययन में 1950 से 2022 के बीच ग्रीनलैंड में अत्यधिक बर्फ पिघलने की घटनाओं का विश्लेषण किया है। परिणाम दिखाते हैं कि पिघली हुई बर्फ के नुकसान के आंकड़े औसतन हर साल लगभग 300 गीगाटन तक पहुंच रहे हैं, जो कि प्रति वर्ष लगभग 4.8 करोड़ ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल के आयतन के बराबर है।

इसके अलावा हाल के दशकों में बर्फ के पिघलने की घटनाओं में लगभग 40 फीसदी का इजाफा हुआ है। द्वीप के उत्तर और उत्तर-पश्चिम में सबसे ठंडे इलाकों में यह आंकड़ा 50 फीसदी तक बढ़ गया है।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा, सतह पर ग्लेशियरों के पिघलने से होने वाले नुकसान को अन्य गतिशील प्रक्रियाओं के साथ जोड़ा जाना चाहिए, जैसे कि हिमखंडों का सीधे समुद्र में गिरना और ग्लेशियरों का समुद्र में प्रवाहित होना, जिनमें से दोनों ही के पिघलने की दर में वृद्धि के कारण तेज हो जाते हैं।

बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़ों के टूटने का खतरा बढ़ा

बर्फ पिघलने की घटना का सीधा संबंध ग्लोबल वार्मिंग से है, हाल ही में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि के कारण आर्कटिक वैश्विक औसत दर से चार गुना अधिक गर्म हो रहा है। शोधकर्ता शोध मंर बताते हैं कि बर्फ के तेजी से पिघलने का संबंध उत्तरी अक्षांशों से लगातार, गर्म और नमी वाले एंटी-साइक्लोनिक हवा के कारण होने वाली अत्यधिक गर्मी है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, ये वायुमंडलीय पैटर्न गर्मियों के दौरान ग्रीनलैंड के ऊपर हवा को स्थिर रखते हैं सौर विकिरण को बढ़ाते हैं और बर्फ और बर्फ के अल्बेडो, या सूर्य के प्रकाश परावर्तन को कम करते हैं, जो आगे चलकर गर्मी को बढ़ाकर पिघलने को और तेज कर देता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, बर्फ की चादर के ऊपरी हिस्से पिघल रहे है, जहां 1950 से 1990 के बीच पहले कभी बर्फ पिघलती नहीं देखी गई थी। इससे बर्फ की चादर में दरारें और अन्य संरचनात्मक बदलाव हुए हैं और बर्फ के बड़े हिस्सों के समुद्र में टूटकर गिरने का खतरा बढ़ गया है। शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा, अंतर्राष्ट्रीय जलवायु रिपोर्ट में ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान में भारी वृद्धि की आशंका जताई गई है, जो इस अध्ययन में जो प्रवृत्ति देखी गई है, उसे और बढ़ाएगी।

ग्रीनलैंड की पिघलती बर्फ के कारण इसका दुनिया भर पर असर पड़ेगा, क्योंकि यह समुद्र के स्तर में वृद्धि करने के लिए जिम्मेवार है और यह वायुमंडलीय प्रसार के पैटर्न को भी प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं के अनुसार ये परिवर्तन यूरोप समेत दुनिया भर की जलवायु को भी प्रभावित कर सकते हैं।

विशेषज्ञों ने शोध में कहा, तापमान और वर्षा के पैटर्न में ये बदलाव सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों, पारिस्थितिकी तंत्रों पर प्रभाव डाल सकते हैं और उत्तरी अटलांटिक के आस-पास के क्षेत्रों में जलवायु चरम सीमाओं को बढ़ा सकते हैं।

इसके अलावा शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से यह भी चेतावनी दी है कि अनुमानित जलवायु परिदृश्य इन घटनाओं में वृद्धि का इशारा करते हैं। यह आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की तत्काल जरूरत पर जोर देते हैं।