फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स, ध्रुवीय भालू के पैरों के नीचे से गायब होती बर्फ  
जलवायु

आर्कटिक से आएगी अगली महामारी!

जैसे-जैसे आर्कटिक गर्म होता जा रहा है, इससे पर्यावरण और खराब होता जा रहा है। इससे आर्कटिक जूनोटिक बीमारियों का भविष्य में केंद्र बन सकता है

Anil Ashwani Sharma

आर्कटिक ( पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के आसपास का क्षेत्र ) का वातावरण 1979 और 2021 के बीच यह क्षेत्र वैश्विक औसत से चार गुना तेजी से गर्म हुआ है। लेकिन वास्तविकता ये है कि वैश्विक स्तर पर इसका प्रभाव अभी तक कम ही आंका गया है। इसका प्रभाव मुख्य रूप से पारिस्थितिकी, कार्बन को संग्रहीत करने की क्षमता, वैश्विक समुद्र के स्तर और मौसम के पैटर्न पर पड़ा है।

जैव विविधता के नुकसान और प्रदूषण के प्रभावों को जोड़ें तो अक्सर लोग धरती पर तिहरे संकट की बात करते हैं। जैसे-जैसे आर्कटिक गर्म होता जा रहा है, इससे पर्यावरण और खराब होता जा रहा है। मानवीय गतिविधियां बढ़ रही हैं और इससे स्वास्थ्य क्षेत्र में नए खतरे पैदा हो रहे हैं। इससे आर्कटिक जूनोटिक ( संक्रामक बीमारी है जो जानवरों से मनुष्यों में फैलती है )  बीमारियों का भविष्य में केंद्र बन सकता है। यह बीमारी जानवरों से इंसानों में फैलती हैं।

कोविड-19 महामारी ने सभी को यह खतरा दिखाया है। अब वक्त आ गया है कि इस संभावना को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि अगली महामारी उत्तर से आ सकती है यानी आर्कटिक से।  

अब तक पैदा होने वाली संक्रामक बीमारियों में से लगभग 60 प्रतिशत जूनोटिक हैं। उनका उभरना और फैलना आम तौर पर जैव विविधता में हानि और खाद्य परिवर्तनों से जुड़ा हुआ है। ध्यान रहे कि यह सभी आर्कटिक क्षेत्र में मौजूद है। लेकिन तेजी से गर्म होता आर्कटिक अन्य जोखिमों को भी जन्म दे रहा है। जैसे-जैसे समुद्री बर्फ पिघलती है, रसायन आर्कटिक के वातावरण में तेजी से पहुंचते हैं। इनमें पारा, पॉलीफ्लोरोएल्काइल पदार्थ और पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल शामिल हैं, जो सभी मानव और पशु प्रतिरक्षा प्रणाली सहित श्वसन संक्रमणों के प्रति भेद्यता बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। आक्रामक मछली और व्हेल प्रजातियां भी औद्योगिक रसायन और  बीमारियां पैदा कर रही हैं।     

रोगाणु ऐसे वातावरण में प्रवेश करते हैं, जिसमें कुछ देशी प्रजातियां जैसे कि ध्रुवीय भालू ( उर्सस मैरिटिमस ) उनके संपर्क में नहीं आए हैं इसलिए वे अधिक जोखिम में हैं। बर्फ में लंबे समय से जमे सूक्ष्मजीवों के बाहर निकलने से खतरा और बढ़ जाता है। ऐसे में मनुष्यों और अन्य वन्यजीवों में उनके खिलाफ कोई प्रतिरक्षा सुरक्षा की कमी होने की संभावना होती है।

ये जोखिम कारक बढ़ने वाले हैं। आर्कटिक में पहली बर्फ रहित ग्रीष्म ऋतु आगामी 2030 के दशक की शुरुआत में आ सकती है। आर्कटिक महासागर में ऊर्जा, मत्स्य पालन और पर्यटन क्षेत्रों के लिए बहुत अधिक संभावना है और इसके दोहन को विनियमित करने वाली किसी भी वैश्विक संधि के अधीन नहीं है। इसके आगे वन्यजीवों में गड़बड़ी, प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ना और अधिकार क्षेत्र के संघर्ष संभावित परिणाम हो सकते हैं।

वर्तमान धारणा यह है कि आर्कटिक में अपेक्षाकृत सूक्ष्मजीवों की गतिविधियां कम हैं। समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय अक्षांशों की तुलना में आर्कटिक में जूनोसिस का अध्ययन करने के लिए बहुत कम संसाधन हैं। अधिकांश क्षेत्रों में उभरते खतरों के लिए बहुत ही कम निगरानी तंत्र मौजूद है। ऐसे हालात में मानव, पशु और व्यापक पर्यावरणीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए इसमें बदलाव की जरूरत है।  

वन्यजीव पक्ष पर वार्षिक और मौसमी निगरानी कार्यक्रमों के लिए दीर्घकालिक वित्त की आवश्यकता होती है। इन योजनाओं को मौजूदा तकनीकों का उपयोग करके स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग करना चाहिए जो क्रायोजेनिक्स जैसी तकनीकों पर निर्भर नहीं हैं और इसलिए इनका उपयोग करना आसान है। ऐसी गतिविधियों को आर्कटिक परिषद निगरानी और मूल्यांकन कार्यक्रमों में शामिल किया जा सकता है, जैसा कि परिषद की “एक आर्कटिक, एक स्वास्थ्य” परियोजना में बताया गया है।

पर्यावरण के व्यापक मोर्चे पर अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के माध्यम से प्रदूषण को कम करने, जैव विविधता की सुरक्षा करने और ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन को कम करने के प्रयास अपनी भूमिका निभाते हैं। विभिन्न आर्कटिक परिषद कार्य समूहों द्वारा किए गए प्रयास और प्लास्टिक प्रदूषण पर संयुक्त राष्ट्र समर्थित संधि के लिए चल रही बातचीत जैसी अन्य पहलों से पता चलता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, जैव विविधता संरक्षण, प्रदूषण और खाद्य सुरक्षा में सरकारी मदद प्राप्त करने में कैसे मदद कर सकता है।

वास्तविक अंतर लाने के लिए संधि द्वारा समर्थित एक व्यापक आर्कटिक निगरानी और मूल्यांकन योजना की आवश्यकता है, जो प्रदूषण और बीमारी की निगरानी को जरूरी बनाती है। 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से रूस और रूसी आंकड़ों की अनुपस्थिति को देखते हुए आर्कटिक परिषद के माध्यम से इसे प्राप्त करना वर्तमान में कठिन है। प्रस्तावित महामारी-तैयारी संधि द्वारा समग्र समझ और कार्य योजना स्थापित करने का बेहतर अवसर मिल सकता है, जिस पर वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन में बातचीत चल रही है।

यह आर्कटिक में मौजूद लगभग 200 विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त वन हेल्थ नेटवर्क के प्रयासों पर आधारित हो सकता है। अभी से कार्रवाई की जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो संक्रमण से पीड़ित लोगों का उपचार, निदान और उन्हें अलग करना और भी मुश्किल हो जाएगा। साथ ही आर्कटिक ग्राउंड जीरो के साथ भविष्य में महामारी का जोखिम और भी बढ़ जाएगा।