आर्कटिक महासागर के तटीय भाग और घास के मैदान पारिस्थितिक तंत्र के विशाल क्षेत्र हैं। हालांकि समुद्र का पानी अभी जमने से कुछ ही डिग्री ऊपर है, लेकिन इसके नीचे की विशेष तरह की मिट्टी की सतह (पर्माफ्रोस्ट) ने गलना शुरू कर दिया है, जिससे अरबों टन कार्बनिक पदार्थ माइक्रोबियल के टूटने के बारे में पता चला है। जिसकी वजह से दो सबसे महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैसों में से सीओ 2 और सीएच 4 का उत्पादन शुरू हुआ। पर्माफ्रोस्ट- मिट्टी की विशेष तरह की एक मोटी परत है, यह मुख्यतः ध्रुवीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
हालांकि शोधकर्ता दशकों से समुद्री इलाके के पर्माफ़्रोस्ट का अध्ययन कर रहे हैं, इसके माप के आंकड़ों को इकट्ठा करना आसान नहीं है। अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके आंकड़ों को साझा करने, कार्बन की मात्रा और निकलने की दर के पूरे अनुमान को छुपाया गया है।
अब इसको लेकर एक नया अध्ययन, जिसकी अगुवाई सारा सैयदी और ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी (बीवाईयू) के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. बेन एबॉट कर रहे हैं। इस अध्ययन में समुद्री क्षेत्र में पर्माफ़्रोस्ट से जलवायु में होने वाले बदलावों पर प्रकाश डाला गया है, जो आर्कटिक में जमा कार्बन, ग्रीनहाउस गैस निकलने और पहले के अनुमानों के बारे में बताते हैं। यह अध्ययन जर्नल एनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।
सईदी और 25 पर्माफ्रोस्ट के शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पर्माफ्रोस्ट कार्बन नेटवर्क (पीसीएन) के तहत साथ मिलकर काम किया। शोधकर्ताओं ने प्रकाशित और अप्रकाशित अध्ययनों से निकले निष्कर्षों को एक साथ जोड़कर अतीत और वर्तमान में कार्बन भंडार के आकार का अनुमान लगाया है। इससे यह पता चलेगा कि आने वाले तीन शताब्दियों में यह कितनी ग्रीनहाउस गैस पैदा कर सकता है।
विशेषज्ञ मूल्यांकन नामक एक पद्धति का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि समुद्री इलाके की विशेष तरह की मिट्टी की सतह (पर्माफ़्रोस्ट) वर्तमान में 6 हजार करोड़ टन मीथेन को जमा करती है और इसमें तलछट और मिट्टी में 56 हजार करोड़ टन जैविक कार्बन होता है। मनुष्यों ने औद्योगिक क्रांति के बाद से लगभग 50 हजार करोड़ टन कार्बन वायुमंडल में छोड़ा है।
हेडी ने कहा समुद्री इलाके की विशेष तरह की मिट्टी की सतह (पर्माफ़्रोस्ट) वास्तव में अद्वितीय है क्योंकि यह अभी भी दस हजार साल पहले से जलवायु में आ रहे बदलावों का मुकाबला कर रही है। मानव गतिविधि के कारण पर्माफ़्रोस्ट ने गलना शुरू कर दिया है।
सैयदी की टीम के अनुमानों से पता चलता है कि समुद्री इलाके की मिट्टी की सतह से पहले से ही पर्याप्त मात्रा में ग्रीनहाउस गैस निकल रही है। हालांकि गैस का निकलना मुख्य रूप से वर्तमान मानव गतिविधि के बजाय प्राचीन जलवायु परिवर्तन के कारण है। उनका अनुमान है कि समुद्री इलाके की मिट्टी की सतह (पर्माफ़्रोस्ट) से हर साल लगभग 14 करोड़ टन सीओ2 और 53 लाख टन सीएच4 वायुमंडल में मिलती है। यह स्पेन के कुल ग्रीनहाउस गैस के बराबर है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन जारी रहता है, तो समुद्री इलाके की मिट्टी की सतह से सीएच 4 और सीओ 2 के निकलने में काफी वृद्धि हो सकती है। हालांकि यह प्रतिक्रिया अचानक होने के बजाय, इसके अगली तीन शताब्दियों में होने की आशंका है। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि समुद्री इलाके की मिट्टी की सतह से भविष्य में ग्रीनहाउस गैस निकलने की मात्रा सीधे भविष्य के मानव उत्सर्जन पर निर्भर करती है। उन्होंने पाया कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो, गर्मी के कारण समुद्री इलाके की मिट्टी की सतह से चार गुना अधिक सीओ 2 और सीएच 4 निकलेगी, जबकि मानव उत्सर्जन को कम करके तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने की बात की जा रही है।
सईदी ने बताया कि ये नतीजे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये वास्तविक लेकिन धीमी जलवायु प्रतिक्रिया का संकेत देते हैं। इस क्षेत्र के कुछ हिस्सों से पता चला है कि मानव जनित उत्सर्जन मीथेन हाइड्रेट्स के निकने को बढ़ा सकती है जिसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। लेकिन हमारे अध्ययन के अनुसार यह कई दशकों में धीरे-धीरे बढ़ेगा।
भले ही यह जलवायु प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत धीरे-धीरे हो, लेकिन शोधकर्ता बताते हैं कि समुद्री इलाके की मिट्टी की सतह किसी भी मौजूदा जलवायु समझौते या ग्रीनहाउस लक्ष्य को कम करने में शामिल नहीं है। सईदी ने जोर दिया कि अभी भी इस मिट्टी की सतह (पर्माफ़्रोस्ट) के बारे में एक बड़ी अनिश्चितता है और इसपर और शोध होने चाहिए।
सईदी ने कहा भविष्य की जलवायु के लिए समुद्री इलाके की मिट्टी की सतह कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है, हम इस पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में बहुत कम जानते हैं। हमें और अधिक तलछट और मिट्टी के नमूनों की जांच करने की आवश्यकता है, साथ ही एक बेहतर निगरानी नेटवर्क की भी, जब ग्रीनहाउस गैस निकलती है तो इससे तापमान बढ़ता है।