उत्तरी इटली में 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में अपने आप को ठंडा रखने के लिए पानी डालता पर्यटक; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

यूरोप में हर साल हजारों लोगों की जान ले रही बढ़ती गर्मी, पिछले साल 47,690 ने गंवाई जान

Lalit Maurya

दुनिया भर में बढ़ता तापमान नित नए रिकॉर्ड बना रहा है, जिसके साथ ही गर्मी का कहर भी बढ़ता जा रहा है। हैरानी की बात है कि जिन क्षेत्रों में कभी मौसम ठंडा हुआ करता था, वहां अब बढ़ती गर्मी की वजह से लोगों की जान तक जा रही हैं। इसके एक ज्वलंत उदाहरण यूरोप भी है। जहां भीषण गर्मी का कहर सालाना हजारों लोगों की जान ले रही है।

बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (आईएसग्लोबल) से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि यूरोप में भीषण गर्मी की वजह से पिछले साल 47,690 लोगों को अपनी हाथ से जान धोना पड़ा था। वैश्विक स्तर पर देखें तो 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था। वहीं यूरोप के लिए पिछला साल दूसरा सबसे गर्म वर्ष रहा।

अध्ययन से पता चला है कि इस सदी के दौरान यूरोप में गर्मी के प्रति संवेदनशीलता में उत्तरोत्तर कमी आई है, और लोग गर्मी से निपटने में बेहतर हुए हैं। उनके मुताबिक इस अनुकूलन के बिना पिछले साल गर्मी के दौरान जितनी मौतें हुई हैं, वो 80 फीसदी अधिक होती।

अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उसी पद्दति का उपयोग किया है, जिससे इससे पहले किए शोध में उपयोग किया गया था। उस शोध में सामने आया था कि 2022 में पड़ी भीषण गर्मी की वजह से 60,000 से ज्यादा मौते हुई थी, जो पिछले एक दशक में सबसे अधिक है। 

गौरतलब है कि इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2015 से 2019 के बीच 35 यूरोपीय देशों के 823 क्षेत्रों के तापमान और मृत्यु से जुड़े रिकॉर्ड की जांच की है, ताकि 2023 के दौरान भीषण गर्मी की वजह से होने वाली मौतों का अनुमान लगाया जा सके।

जो निष्कर्ष सामने आए हैं, उनके मुताबिक 2022 की गर्मियों के विपरीत, जिसमें जुलाई के मध्य से अगस्त 2022 के मध्य तक भीषण गर्मी पड़ी थी, 2023 में उन्हीं हफ्तों के दौरान तापमान में कोई ज्यादा विसंगति नहीं दर्ज नहीं की गई थी। हालांकि जुलाई 2023 के मध्य से अगस्त 2023 के अंत तक लू और भीषण गर्मी की दो घटनाएं सामने आई थी, जो 2023 में गर्मी की वजह से हुई 57 फीसदी मौतों के लिए जिम्मेवार थी। आशंका है कि इन घटनाओं में 27,000 लोगों की मौत हो गई थी।

दक्षिणी यूरोपीय देश रहे सबसे ज्यादा प्रभावित

रिसर्च के मुताबिक यूरोप में 2023 में गर्मी से हुई 47,690 मौतों में से अधिकांश मौतें साल के सबसे गर्म समय के दौरान यानी 29 मई से एक अक्टूबर 2023 के बीच हुई थी। अध्ययन में जो आंकड़े साझा किए गए हैं, उनके मुताबिक इसका सबसे ज्यादा बोझ दक्षिणी यूरोपीय देशों पर पड़ा है। यदि प्रति दस लाख आबादी पर गर्मी से होने वाली मौतों को देखें तो यह ग्रीस में सबसे ज्यादा थी, जहां प्रति दस लाख लोगों पर भीषण गर्मी से मरने वालों का आंकड़ा 393 दर्ज किया गया। वहीं बुल्गारिया में 229, इटली में 209, स्पेन में 175, साइप्रस में 167 और पुर्तगाल में दस लाख लोगों पर 136 की मौत भीषण गर्मी से हुई।

इसी तरह अध्ययन के मुताबिक भीषण गर्मी से महिलाएं और बुजुर्ग सबसे ज्यादा संवेदनशील थे। खास तौर पर, महिलाओं में गर्मी से संबंधित मृत्यु दर पुरुषों की तुलना में 55 फीसदी अधिक थी। वहीं 80 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के लोगों की मृत्यु दर 65 से 79 साल के लोगों की तुलना में 768 फीसदी ज्यादा थी।

वैश्विक स्तर पर तापमान में जिस तरह इजाफा हो रहा है, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 14 महीनों में कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा, जब बढ़ते तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो। यही वजह है कि दुनिया ने अब तक के सबसे गर्म जुलाई का सामना किया था। जब तापमान सामान्य से 1.21 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था।

इसी तरह एशिया, अफ्रीका और यूरोप के लिए भी यह अब तक का सबसे गर्म जुलाई का महीना था। वहीं उत्तरी अमेरिका ने भी अपने दूसरे सबसे गर्म जुलाई का सामना किया है।

शोधकर्ताओं ने भी अध्ययन में यह भी चेताया है कि गर्मी से सम्बंधित मौतों की वास्तविक संख्या रिपोर्ट की गई संख्या से अधिक हो सकती है। इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए शोधकर्ताओं ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि उन्होंने यूरोस्टेट के दैनिक आंकड़ों की जगह मृत्यु से जुड़े साप्ताहिक आंकड़ों का उपयोग किया है, जो वास्तविक प्रभाव को करके आंक सकता है।

इस बारे में हाल ही में किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि साप्ताहिक आंकड़ें कुछ मौतों को अनदेखा कर सकते हैं। ऐसे में शोधकर्ताओं ने अंदेशा जताया है कि अध्ययन किए गए 35 देशों में गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या 58,000 के करीब हो सकती है।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में इस बात का भी खुलासा किया है कि बढ़ते गर्मी से बचने के लिए सामाजिक तौर पर उठाए कदमों से इन मौतों को बड़ी संख्या में टाला जा सकता है।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि 2023 में जितना तापमान दर्ज किया गया है, वो यदि 2000 से 2004 के बीच होता तो गर्मी से मरने वालों का आंकड़ा 85,000 को पार कर सकता है। देखा जाए तो यह आंकड़ा हाल के वर्षों में हुई मौतों से 80 फीसदी अधिक है। इसी तरह जिन लोगों की उम्र 80 से अधिक है उस आयु के लोगों की गर्मी से संबंधित मौतों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई होती।

अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता एलिसा गैलो का इस बारे में कहना है कि, "हमारे द्वारा किए अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि पिछली सदी में लोगों ने बढ़ते तापमान के साथ अनुकूलन करना सीखा है, जिसके कारण हाल की गर्मियों में भीषण गर्मी से होने वाली मौतों में कमी आई है। इसकी वजह से विशेष रूप से बुजुर्गों की मृत्यु दर में नाटकीय रूप से गिरावट आई है।"

अध्ययन के मुताबिक 2000 के बाद से यूरोप के तापमान में इजाफा हुआ है। हालांकि जिस तरह से वहां गर्मी से बचाव के उपाय किए गए हैं, वो लोगों की जान बचाने में मददगार रहे हैं। इसका श्रेय सामजिक आर्थिक प्रगति, व्यवहार में हुए सुधार के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए किए गए उपायों को दिया जा सकता है। 2003 में पड़ी रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के बाद भी इससे बचाव की जो योजनाएं लागू की गई थी उसने भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

सहन क्षमता से परे जाता तापमान

ऐसा ही कुछ हिमालय के पहाड़ी इलाकों में भी देखने को मिल रहा है, जहां कभी बेहद सर्दी पड़ा करती थी वहां अब लोगों को कूलर, पंखे, और फ्रिज तक की जरूरत पड़ रही है। यहां तक की कुछ लोगों ने तो घरों को ठंडा रखने के लिए एयरकंडीशन भी लगाए हैं।

आंकड़ों को देखें तो 2023 में, करीब आधे दिन पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से अधिक गर्म थे। वहीं यूरोप बाकी दुनिया की तुलना में दोगुनी रफ्तार से गर्म हो रहा है। जलवायु पूर्वानुमान भी दर्शाते हैं कि हम 2027 से पहले ही 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर लेंगे।

वैज्ञानिकों ने भी इस बात की 77 फीसदी आशंका जताई है कि 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा, जबकि 2024 के पांच सबसे गर्म वर्षों में शामिल होना करीब-करीब तय माना जा रहा है। ऐसे में हमारे पास कार्रवाई का बहुत छोटा सा मौका है। इसके बावजूद यदि हम अब भी नहीं चेते तो न केवल यूरोप बल्कि भारत सहित अन्य देशों को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक हमें याद रखना होगा कि लोग और समाज गर्मी के प्रति कितना अनुकूल हो सकते हैं, उसकी एक सीमा है। लेकिन जिस तरह से तापमान बढ़ रहा है, गर्मी सहन क्षमता की सीमा को पार कर रही है। ऐसे में जिस तरह से दुनिया में तापमान बढ़ रहा है, उसको देखते हुए भीषण गर्मी और लू से होने वाली मौतों को कम करने के लिए जलवायु परिवर्तन के कमजोर तबके पर पड़ते प्रभावों की बेहतर निगरानी आवश्यक है।

साथ ही कृषि, उद्योग आदि व्यवसायों से जुड़े लोगों को इस गर्मी से बचाने के लिए रणनीति बनाना बेहद जरूरी है। इतना ही नहीं ग्रीनहाउस गैसों का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंचे, इससे पहले उत्सर्जन कम करने पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है।