जलवायु

ग्लोबल वार्मिंग का असर, महासागर में जमा गर्मी एक बार फिर पहुंची रिकॉर्ड स्तर पर

जब तक उत्सर्जन पर पूरी तरह से लगाम नहीं लगेगी, तब तक तापमान का बढ़ना जारी रहेगा और महासागरों में तापमान बढ़ने का रिकॉर्ड टूटता रहेगा

Dayanidhi

दुनिया के महासागर पहले से कहीं ज्यादा गर्म हो रहे हैं, लगातार छठे साल रिकॉर्ड तोड़ तापमान का सिलसिला जारी है। गर्म महासागर मौसम प्रणालियों में भारी बदलाव करते हैं, जिससे अधिक शक्तिशाली तूफान पैदा होते हैं, साथ ही साथ बहुत भारी वर्षा और बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है। 

2021 के यह नवीनतम आंकड़े संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के लिए जुटाए गए हैं। जो कि महासागर विज्ञान के एक दशक से पहले वर्ष के अंत के हैं। दुनिया भर में मानव समाज और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने के लिए 17 लक्ष्य रखे गए हैं जिनमें से कई समुद्र के स्वास्थ्य से संबंधित हैं।

23 शोधकर्ताओं द्वारा लिखी गई सबसे हालिया रिपोर्ट दो अंतरराष्ट्रीय डेटासेट का सारांश है। ये डेटासेट चीनी विज्ञान अकादमी (सीएएस) में वायुमंडलीय भौतिकी संस्थान (आईएपी), राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) के पर्यावरण सूचना के राष्ट्रीय केंद्रों से लिए गए हैं। उन्होंने 1950 के दशक से समुद्र की गर्मी और उनके प्रभाव के समय अवधि का विश्लेषण किया हैं।

कोलोराडो में नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के अध्ययनकर्ता केविन ट्रेनबर्थ ने कहा, दुनिया भर में समुद्र की गर्मी लगातार बढ़ रही है और यह मानवजनित जलवायु परिवर्तन का एक पहला संकेतक है। उन्होंने कहा इस सबसे हालिया रिपोर्ट में हमने 2021 तक महासागर के अवलोकनों को अपडेट किया, जबकि पहले के आंकड़ों को फिर से देखा और इनमें फिर से सुधार किया।

पिछले वर्ष शोधकर्ताओं ने पाया कि सभी महासागरों में ऊपरी सतह 2,000 मीटर में 2020 की तुलना में 14 अधिक जेटाजूल को अवशोषित किया, जो 2020 में विश्व में होने वाली बिजली उत्पादन के 145 गुना के बराबर है। यहां बताते चले कि दुनिया भर में लोग एक वर्ष में जितनी ऊर्जा का उपयोग करते हैं, वह जेटाजूल का लगभग आधा होता है।

मुख्य-अध्ययनकर्ता लिजिंग चेंग ने कहा कि गर्मी को अवशोषित करने के साथ-साथ, वर्तमान में, महासागर मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का 20 से 30 फीसदी अवशोषित करते हैं, जिससे समुद्र में अम्लीकरण होता है। चेंग आईएपी सीएएस में इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट एंड एनवायरनमेंटल साइंसेज के प्रोफेसर हैं। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन को कम करने के लक्ष्यों को ट्रैक करने के लिए भविष्य में गर्मी और कार्बन युग्मन की निगरानी को समझना महत्वपूर्ण है।

शोधकर्ताओं ने विभिन्न प्राकृतिक विविधताओं की भूमिका का भी आकलन किया, जैसे कि अल नीनो और ला नीना के रूप में जाना जाने वाला वार्मिंग और कूलिंग चरण। ये चरण क्षेत्रीय तापमान परिवर्तनों को बहुत प्रभावित करते हैं। चेंग के मुताबिक क्षेत्रीय विश्लेषणों से पता चलता है कि 1950 के दशक के उत्तरार्ध से महासागरों का तापमान हर जगह अलग होता है। इसकी वजह से समुद्री जीवन पर भारी प्रभाव के साथ क्षेत्रीय समुद्री हीटवेव मैं बढ़ोतरी होती है।  

सेंट थॉमस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन अब्राहम ने कहा कि प्राकृतिक विविधताओं से मानवजनित तापमान का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों को चार साल से भी कम समय के समुद्री ताप माप की आवश्यकता होती है। यह पृथ्वी की सतह के पास हवा के तापमान का उपयोग करके ग्लोबल वार्मिंग का पता लगाते हैं।

हालांकि शीर्ष 10 सबसे गर्म वर्षों में, 2021 के लिए वैश्विक सतह का तापमान रिकॉर्ड पर सबसे अधिक नहीं है, क्योंकि उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में अन्य चीजों के अलावा ला नीना की स्थिति बनी रही। महासागर की गर्मी जलवायु परिवर्तन के सर्वोत्तम संकेतकों में से एक है। ला नीना के दौरान समुद्र वास्तव में ऊपर उठ जाता है लेकिन सतह के नीचे अतिरिक्त गर्मी को दबा देता है।

चेंग ने कहा मॉडल प्रयोगों के साथ, हमारे अध्ययन से पता चलता है कि समुद्र के गर्म होने का पैटर्न वायुमंडलीय संरचना में मानवजनित बदलावों का परिणाम है। जैसे-जैसे महासागर गर्म होते हैं, पानी फैलता है और समुद्र का स्तर बढ़ता है। गर्म महासागर मौसम प्रणालियों में भारी बदलाव करते हैं, जिससे अधिक शक्तिशाली तूफान पैदा होते हैं, साथ ही साथ वर्षा और बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है। 

पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के वायुमंडलीय विज्ञान के प्रोफेसर माइकल मान ने कहा महासागर मानवजनित कार्बन उत्सर्जन से अधिकांश गर्मी को अवशोषित कर रहे हैं। जब तक हम नेट जीरो उत्सर्जन तक नहीं पहुंच जाते, तब तक तापमान का बढ़ना जारी रहेगा और महासागर के गर्मी बढ़ने का रिकॉर्ड टूटता रहेगा। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए की जाने वाली कार्रवाइयों में महासागरों के बारे में बेहतर जागरूकता और इसे समझ जरूरी है। यह अध्ययन एडवांस इन एटमॉस्फेरिक साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।