जलवायु

बढ़ते तापमान के चलते तेजी से बदल रही है वायुमंडल की संरचना

पृथ्वी की सतह के निकट बढ़ते तापमान के चलते निचले वातावरण का विस्तार हो रहा है, जो ट्रोपोपाज को हर दशक 50 से 60 मीटर की दर से ऊपर की ओर धकेल रहा है

Lalit Maurya

हाल ही में किए एक अंतराष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है, उसका प्रभाव वायुमंडल की संरचना पर भी पड़ रहा है, जिसके चलते उसमें बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है। जर्नल साइंस एडवांसेस में प्रकाशित यह अध्ययन दशकों तक मौसम का अवलोकन करने वाले गुब्बारों और उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है।

इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया है कि तापमान में हो रही वृद्धि वायुमंडल को कैसे प्रभावित कर रही है। अध्ययन के मुताबिक जिस तरह से धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है उसकी वजह से वायुमंडल की निचली सीमा में विस्तार हो रहा है। इसके चलते क्षोभमंडल की ऊपरी सीमा जिसे ट्रोपोपाज के नाम से जाना जाता है, वो समतापमंडल के साथ लगी सीमा को हर दशक 50-60 मीटर (लगभग 165-195 फीट) की दर से ऊपर की ओर धकेल रही है। 

इस बारे में नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च (एनसीएआर) के वैज्ञानिक और शोध से जुड़े शोधकर्ता बिल रान्डेल ने बताया कि यह वायुमंडलीय संरचना में आ रहे बदलाव का एक स्पष्ट संकेत है। इस शोध से प्राप्त निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं कि ग्रीनहाउस गैसें हमारे वातावरण में बदलाव कर रही हैं।

ट्रोपोपॉज की यह सीमा क्षोभमंडल और समताप मंडल को अलग करती है जो ध्रुवों पर पृथ्वी की सतह से लगभग 5 मील और भूमध्य रेखा पर 10 मील की ऊंचाई पर स्थित है। ट्रोपोपॉज वाणिज्यिक विमानों के लिए काफी मायने रखता है क्योंकि वो अक्सर टर्बूलेंस से बचने के लिए समताप मंडल की निचली सीमा में उड़ान भरते हैं। साथ ही यह गंभीर तूफानों को भी प्रभावित करता है। 

देखा जाए तो हाल के दशकों में जिस तरह से ट्रोपोपॉज की ऊंचाई लगातार बढ़ रही है वो जनजीवन और पारिस्थितिक तंत्र पर कोई खास प्रभाव नहीं डाल रही हैं। लेकिन यह स्पष्ट रूप से इस बात की ओर इशारा करती है कि ग्रीनहाउस गैसें व्यापक रूप से अपना प्रभाव डाल रही हैं। 

पिछले वैज्ञानिक अध्ययनों में भी इस बात की पुष्टि की गई है कि ट्रोपोपॉज का विस्तार हो रहा है। जिसके लिए जलवायु परिवर्तन के साथ ओजोन के होते विनाश के चलते समताप मंडल में बढ़ती ठंडक भी जिम्मेवार थी। हालांकि 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल्स का इस्तेमाल प्रतिबंधित कर दिया गया था जिसने निचले समताप मंडल में तापमान को स्थिर कर दिया है।

ऐसे में वैज्ञानिकों ने नए आंकड़ों के विश्लेषण से यह जानने का प्रयास किया है कि अब जब समताप मंडल के तापमान का कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ रहा है, तब भी ट्रोपोपॉज कितना बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार 2000 के बाद उपग्रह से प्राप्त आंकड़ें इस बात की पुष्टि करते हैं कि पिछले दो दशकों में ट्रोपोपॉज की ऊंचाई में वृद्धि हुई है। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि हम इंसान बहुत तेजी से अपने वातावरण में बदलाव कर रहे हैं।