जलवायु

पिछले एक वर्ष में 6.6 फीट तक घट गई स्वीडन के केबनेकेस पर्वत की ऊंचाई

Lalit Maurya

स्वीडन के केबनेकेस पर्वत की दक्षिणी चोटी पिछले एक वर्ष के दौरान अपनी करीब 6.6 फीट (2 मीटर) ऊंचाई को खो चुकी है। वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा वहां मौजूद ग्लेशियर के पिघलने के कारण हुआ है, जिसके लिए जलवायु में आ रहा बदलाव जिम्मेवार है। यह जानकारी स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी द्वारा साझा की गई विज्ञप्ति में सामने आई है।

14 अगस्त, 2021 को स्वीडन के तारफला रिसर्च स्टेशन के शोधकर्ताओं द्वारा जब इसकी ऊंचाई को मापा गया तो इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 2094.6 मीटर दर्ज की गई थी। वहीं 7 अगस्त, 2020 को इसकी ऊंचाई समुद्र तल से करीब 2096.5 मीटर थी, जो सितंबर के मध्य तक आधा मीटर पिघल गई थी। इस तरह पिछले एक वर्ष में इसकी ऊंचाई में 1.9 मीटर की कमी दर्ज की गई है। पिछले 80 वर्षों में यह पहला मौका है जब इस पर्वत शिखर की ऊंचाई इतनी कम दर्ज की गई है।

1940 से इस पर्वत की ऊंचाई को लगातार मापा जा रहा है। गौरतलब है कि केबनेकेस पर्वत की दक्षिणी चोटी कभी स्वीडन का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर थी। स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी के अनुसार 2000 के बाद से इस सबसे ऊंची चोटी की ऊंचाई में भारी कमी आई है। साथ ही कहीं-कहीं पर इस ग्लेशियर से बहती बर्फ की मोटाई में भी वृद्धि दर्ज की गई है। आमतौर पर इस पर्वत शिखर की ऊंचाई में गर्मी और सर्दी के बीच लगभग दो से तीन मीटर का अंतर होता है। जहां मई में इसकी ऊंचाई उच्चतम और सितंबर में सबसे कम होती है।  

क्या है इसकी ऊंचाई के घटने की वजह

यदि वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है। जिस तरह से हवा के तापमान में वृद्धि हो रही है, उसका असर इस चोटी पर मौजूद ग्लेशियर पर भी पड़ रहा है जो पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से पिघल रहा है। इसके साथ ही हवा की स्थिति में आता बदलाव भी सर्दियों के मौसम में जमा होने वाली बर्फ को प्रभावित कर रहा है। देखा जाए तो 2020 के बाद से पूरे ड्रिफ्ट की मोटाई में औसतन 0.5 मीटर की कमी आई है। यह करीब 26,000 टन पानी के बराबर है।

अगस्त 2018 से पहले केबनेकेस पर्वत की यह दक्षिणी चोटी स्वीडन का सबसे उच्चतम बिंदु थी। फिर तारफला रिसर्च स्टेशन के वैज्ञानिकों द्वारा ली गई माप में यह स्पष्ट हो गया था कि केबनेकेस पर्वत की दक्षिणी चोटी अब स्वीडन का सबसे उच्चतम बिंदु नहीं है, जिसका स्थान इस पर्वत की उत्तरी चोटी ने ले लिए था। जिसकी उस समय समुद्र तल से ऊंचाई 2096.8 मीटर मापी गई थी।

हाल ही में अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में छपे एक शोध से पता चला है कि पिछले दो दशकों के दौरान ग्लेशियरों में जमा बर्फ रिकॉर्ड तेजी से पिघल रही है। अनुमान है कि हर साल ग्लेशियरों से पहले के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा बर्फ पिघल रही है।

यही नहीं पिछले सप्ताह क्लाइमेट चेंज को लेकर संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा जारी छठी आकलन रिपोर्ट में भी इस बात की सम्भावना व्यक्त की है कि आने वाले सदियों में भी जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियरों के आकार में आती गिरावट जारी रहेगी।