तिब्बती पठार, जिसे "एशियाई जल मीनार" भी कहा जाता है, एशिया के लिए अहम जल संसाधनों में से एक है। यह उन अरबों लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण पर असर डालता है जो इस क्षेत्र में बहने वाली नदियों पर निर्भर हैं और नदियां तिब्बती पठार पर निर्भर हैं। चूंकि तिब्बती पठार से भारी मात्रा में पानी बहता है, पठार के बाहर से होने वाली जलवाष्प की आपूर्ति तिब्बती पठार के जल संतुलन को बनाए रखती है।
लेकिन अब ब्लैक कार्बन एरोसोल जल संतुलन को बिगाड़ रहा है। ब्लैक कार्बन एरोसोल, जीवाश्म ईंधन और बायोमास के आधे जलने से बनता है और यह मजबूती से प्रकाश को अपनी ओर खीचता है। बर्फ में ब्लैक कार्बन का जमाव बर्फ की सतह से प्रकाश के परावर्तित होने या अल्बेडो को कम करता है। यह प्रक्रिया ग्लेशियरों और बर्फ के आवरण के पिघलने में तेजी लाता है और इस प्रकार इस क्षेत्र में जल विज्ञान प्रक्रिया और जल संसाधनों को बदलता है।
तिब्बती पठार से सटे दक्षिण एशियाई क्षेत्र दुनिया में सबसे अधिक ब्लैक कार्बन उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में से एक है। दक्षिण एशिया से ब्लैक कार्बन एयरोसोल हिमालय पर्वत के पार तिब्बती पठार के आंतरिक क्षेत्र तक पहुंच जाता है।
हाल ही में, चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के नॉर्थवेस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ इको-एनवायरनमेंट एंड रिसोर्सेज के प्रोफेसर कांग शिचांग के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने, किन्हाई-तिब्बत पठार पर स्थानीय वर्षा और ग्लेशियरों पर ब्लैक कार्बन एरोसोल के प्रभाव का विश्लेषण किया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि 21वीं सदी के बाद से, दक्षिण एशियाई ब्लैक कार्बन एरोसोल ने दक्षिण एशियाई मॉनसून में जल वाष्प की गति को बदलकर तिब्बती पठार के ग्लेशियरों की वास्तविक आपूर्ति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है।
प्रोफेसर कांग ने कहा, दक्षिण एशिया में ब्लैक कार्बन एरोसोल मध्य और ऊपरी वातावरण को गर्म करते हैं, जिससे उत्तर-दक्षिण तापमान में उतार-चढ़ाव बढ़ता है। तदनुसार, दक्षिण एशिया में संवहन की गतिविधि बढ़ जाती है, जिसके कारण दक्षिण एशिया में जल वाष्प में वृद्धि होती है। इस बीच, ब्लैक कार्बन वातावरण में बादलों घनेपन में नाभिकों की संख्या भी बढ़ाता है।
ब्लैक कार्बन एरोसोल के कारण मौसम संबंधी स्थितियों में ये बदलाव दक्षिण एशिया में वर्षा के रूप में अधिक जल वाष्प बनाते हैं और कम जल वाष्प तिब्बती पठार तक पहुंचाते हैं। नतीजतन, मॉनसून के दौरान मध्य और दक्षिणी तिब्बती पठार में वर्षा कम हो जाती है, खासकर तिब्बती पठार के दक्षिणी भाग में।
वर्षा में कमी से ग्लेशियरों की स्थाई आपूर्ति में और कमी आती है। 2007 से 2016 तक, कम आपूर्ति के कारण तिब्बती पठार पर औसत ग्लेशियर हानि का 11 फीसदी और पठार के दक्षिणी भाग में 22.1 फीसदी थी।
प्रो कांग ने कहा दक्षिण एशिया में ट्रांसबाउंड्री परिवहन और ब्लैक कार्बन एरोसोल का जमाव तिब्बती पठार पर ग्लेशियर के पिघलने को गति को बढ़ा देता है। इस बीच, पठारी गर्मियों की वर्षा में कमी से पठारी ग्लेशियर की आपूर्ति कम हो जाएगी, जिससे ग्लेशियर में बर्फ की कमी बढ़ जाएगी। यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।