जलवायु

बढ़ते तापमान के कारण कार्बन उत्सर्जन को 119 फीसदी बढ़ा सकते हैं मिट्टी के सूक्ष्मजीव

साल 2100 तक सूक्ष्मजीवों द्वारा सीओ2 उत्सर्जन में ध्रुवीय क्षेत्रों में 119 फीसदी, उष्णकटिबंधीय में 38 फीसदी, उपोष्णकटिबंधीय में 40 फीसदी और समशीतोष्ण क्षेत्रों में 48 फीसदी की वृद्धि हो सकती है

Dayanidhi

जब सूक्ष्मजीव मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों को तोड़ते हैं, तो वे सक्रिय रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) को वायुमंडल में छोड़ते हैं। इस प्रक्रिया को हेटेरोट्रॉफिक या विषमपोषी श्वसन कहते हैं। एक नए मॉडल से पता चलता है कि ये उत्सर्जन ध्रुवीय इलाकों में सदी के अंत तक 40 फीसदी तक बढ़ सकता है।

वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) की मात्रा में वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने का काम करती है और वायुमंडलीय सीओ2 का अनुमानित पांचवां हिस्सा मिट्टी के स्रोतों से उत्पन्न होता है। यह आंशिक रूप से सूक्ष्मजीवों की गतिविधि के लिए जिम्मेदार है, जिसमें बैक्टीरिया, कवक और अन्य सूक्ष्मजीव शामिल हैं जो ऑक्सीजन का उपयोग करके मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों को तोड़ते या विघटित करते हैं, जैसे कि मृत पौधों के हिस्से आदि। इस प्रक्रिया के दौरान, सीओ2 को वायुमंडल में छोड़ा जाता है। वैज्ञानिक इसे हेटेरोट्रॉफिक या विषमपोषी मृदा श्वसन कहते हैं।

यह अध्ययन ईटीएच ज्यूरिख, स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट, स्नो एंड लैंडस्केप रिसर्च, स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ एक्वेटिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी इवाग और लॉज़ेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने किया है। अध्ययन से पता चलता है कि पृथ्वी के वायुमंडल में मिट्टी के सूक्ष्मजीवों द्वारा सीओ2 का उत्सर्जन न केवल बढ़ने के आसार हैं, बल्कि इस सदी के अंत तक वैश्विक स्तर पर इसमें तेजी भी आएगी।

एक प्रक्षेपण का उपयोग करते हुए, उन्होंने पाया कि 2100 तक, मिट्टी के सूक्ष्मजीवों से सीओ2 उत्सर्जन बढ़ जाएगा, जो सबसे खराब स्थिति वाले जलवायु परिदृश्य के तहत, मौजूदा स्तर की तुलना में वैश्विक स्तर पर लगभग 40 फीसदी तक बढ़ जाएगा। प्रमुख अध्ययनकर्ता एलोन निसान कहते हैं, इस प्रकार, सूक्ष्मजीव या माइक्रोबियल सीओ2 उत्सर्जन में अनुमानित वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग को और बढ़ाने के लिए जिम्मेवार होगा, जिससे विषमपोषी श्वसन दर का अधिक सटीक अनुमान हासिल करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया जाएगा।

उत्सर्जन के लिए मिट्टी की नमी और तापमान प्रमुख कारण हैं

निष्कर्ष न केवल पहले के अध्ययनों की पुष्टि करते हैं बल्कि विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में विषमपोषी मृदा श्वसन के तंत्र और परिमाण में अधिक सटीक जानकारी भी प्रदान करते हैं। कई मापदंडों पर निर्भर अन्य मॉडलों के विपरीत, एलोन निसान द्वारा विकसित नया गणितीय मॉडल, केवल दो महत्वपूर्ण पर्यावरणीय कारकों का उपयोग करके अनुमान प्रक्रिया को सरल बनाता है जो हैं मिट्टी की नमी और मिट्टी का तापमान।

यह मॉडल एक महत्वपूर्ण काम करता है क्योंकि इसमें सभी जैव-भौतिकीय स्तरों को शामिल किया गया है, जिसमें मिट्टी की संरचना और मिट्टी के पानी के वितरण के सूक्ष्म पैमाने से लेकर वनों, संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु क्षेत्रों और यहां तक कि वैश्विक स्तर जैसे पौधे तक इसमें शामिल है।

ईटीएच इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर, पीटर मोल्नार ने  कहा, मॉडल मिट्टी की नमी और मिट्टी के तापमान के आधार पर माइक्रोबियल श्वसन दर के अधिक सीधे अनुमान प्रदान करता है। इसके अलावा, यह हमारी समझ को बढ़ाता है कि विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में विषमपोषी श्वसन ग्लोबल वार्मिंग को कैसे बढ़ा सकता है।

ध्रुवीय सीओ2 उत्सर्जन दोगुना से अधिक होने के आसार हैं

पीटर मोल्नार और एलोन निसान के नेतृत्व में किए गए शोध का अहम निष्कर्ष यह है कि माइक्रोबियल सीओ2 उत्सर्जन में वृद्धि जलवायु क्षेत्रों में अलग-अलग  होती है। ठंडे ध्रुवीय क्षेत्रों में, वृद्धि में सबसे अधिक योगदान गर्म और समशीतोष्ण क्षेत्रों के विपरीत, तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि के बजाय मिट्टी की नमी में गिरावट आना है। एलोन निसान ने ठंडे क्षेत्रों की संवेदनशीलता पर प्रकाश डालते हुए कहा, पानी की मात्रा में मामूली बदलाव से भी ध्रुवीय क्षेत्रों के श्वसन दर में काफी बदलाव हो सकता है।

उनकी गणना के आधार पर, सबसे खराब जलवायु परिदृश्य के तहत, ध्रुवीय क्षेत्रों में माइक्रोबियल सीओ 2 उत्सर्जन 2100 तक प्रति दशक दस प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है, जो दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए अनुमानित दर से दोगुना है। इस असमानता को विषमपोषी श्वसन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो तब होती है जब मिट्टी अर्ध-नम अवस्था में होती है, यानी न तो बहुत सूखी और न ही बहुत गीली। ये स्थितियां ध्रुवीय क्षेत्रों में मिट्टी के पिघलने के दौरान प्रबल होती हैं।

दूसरी ओर, अन्य जलवायु क्षेत्रों में मिट्टी, जो पहले से ही अपेक्षाकृत शुष्क है और आगे सूखने की आशंका है, माइक्रोबियल सीओ2 उत्सर्जन में तुलनात्मक रूप से कम वृद्धि दिखाती है। हालांकि, जलवायु क्षेत्र के बावजूद, तापमान का प्रभाव लगातार बना रहता है, जैसे-जैसे मिट्टी का तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे माइक्रोबियल सीओ2 का उत्सर्जन भी बढ़ता है।

प्रत्येक जलवायु क्षेत्र में कितना बढ़ेगा सीओ2 उत्सर्जन? 

2021 तक, मिट्टी के सूक्ष्मजीवों से अधिकांश सीओ2 उत्सर्जन मुख्य रूप से पृथ्वी के गर्म क्षेत्रों से उत्पन्न हो रहा है। विशेष रूप से, इनमें से 67 फीसदी उत्सर्जन उष्णकटिबंधीय से, 23 फीसदी उपोष्णकटिबंधीय से, 10 फीसदी समशीतोष्ण क्षेत्रों से और मात्र 0.1 फीसदी आर्कटिक या ध्रुवीय क्षेत्रों से होता है।

गौरतलब है कि शोधकर्ताओं ने 2021 में देखे गए स्तरों की तुलना में इन सभी क्षेत्रों में माइक्रोबियल सीओ2 उत्सर्जन में पर्याप्त वृद्धि का अनुमान लगाया है। साल 2100 तक, उनके अनुमान है कि, ध्रुवीय क्षेत्रों में 119 फीसदी, उष्णकटिबंधीय में 38 फीसदी, उपोष्णकटिबंधीय में 40 फीसदी और समशीतोष्ण क्षेत्रों में 48 फीसदी की वृद्धि दर्शाते हैं।

क्या मिट्टी वायुमंडल के लिए सीओ2 ग्रहण करने या सीओ2 निकलने का स्रोत होगी?

मिट्टी में कार्बन संतुलन, यह निर्धारित करता है कि मिट्टी कार्बन स्रोत या ग्रहण करने के रूप में कार्य करती है या नहीं, दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं के बीच परस्पर क्रिया पर निर्भर करती है, प्रकाश संश्लेषण, जिससे पौधे सीओ2 को ग्रहण करते हैं और श्वसन, जो सीओ2 जारी करता है। इसलिए, यह समझने के लिए माइक्रोबियल सीओ2 उत्सर्जन का अध्ययन करना आवश्यक है कि क्या मिट्टी भविष्य में सीओ2 को संग्रहित करेगी या छोड़ेगी।

एलोन निसान बताते हैं कि, जलवायु परिवर्तन के कारण, इन कार्बन प्रवाहों का परिणाम, प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से प्रवाह और श्वसन के माध्यम से बाहर निकलना दोनों अनिश्चित रहते हैं। हालांकि, यह परिमाण कार्बन सिंक के रूप में मिट्टी की वर्तमान भूमिका को प्रभावित करेगा।

अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने मुख्य रूप से विषमपोषी श्वसन पर गौर किया है। हालांकि, उन्होंने अभी तक सीओ2 उत्सर्जन की जांच नहीं की है जो पौधे स्वपोषी श्वसन के माध्यम से छोड़ते हैं। इन कारणों की आगे की खोज से मिट्टी के पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर कार्बन गतिशीलता की अधिक व्यापक समझ मिलेगी। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।