दुनियाभर की 80 फीसदी से ज्यादा व्यापारिक आवाजाही समुद्र के रास्ते होती है; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

शिपिंग: 2030 तक उत्सर्जन में 40 फीसदी तक की कटौती संभव, लेकिन नेट-जीरो लक्ष्य अभी दूर

अध्ययन से पता चला है कि 2030 तक शिपिंग उद्योग द्वारा किए जा रहे उत्सर्जन में 40 फीसदी की गिरावट संभव है, लेकिन 2050 तक नेट-जीरो का लक्ष्य अभी भी दूर की कौड़ी है

Lalit Maurya

वैश्विक व्यापार का 80 फीसदी माल समुद्री जलमार्गों से आता-जाता है। एक तरफ जहां यह क्षेत्र वैश्विक व्यापार में बड़ी भूमिका निभाता है वहीं साथ ही बड़े पैमाने पर होते उत्सर्जन के लिए भी जिम्मेवार है। आंकड़ों के मुताबिक यह क्षेत्र दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के कुल उत्सर्जन के तीन फीसदी से अधिक के लिए जिम्मेवार है। यह आंकड़ा इस क्षेत्र की पर्यावरणीय चुनौतियों को उजागर करता है। बढ़ते जलवायु संकट के बीच, समुद्री शिपिंग को कार्बन-मुक्त बनाना अब समय की आवश्यकता बन गया है।

मरीन शिपिंग को कार्बन मुक्त बनाने की कोशिशों के बीच एक राहत भरी खबर सामने आई है। एक नए अध्ययन में शिपिंग उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई है कि 2030 तक यह क्षेत्र कार्बन उत्सर्जन में कमी के तय लक्ष्यों को हासिल कर सकता है। हालांकि, 2050 तक इस क्षेत्र के लिए नेट-जीरो के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल माना जा रहा है।

यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया से जुड़े शोधकर्ता इमरानुल लस्कर, डॉक्टर हादी दौलताबादी और डॉक्टर अमांडा गियांग द्वारा किया गया है। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 149 विशेषज्ञों से बातचीत की है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल अर्थ फ्यूचर में प्रकाशित हुए हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि शिपिंग उद्योग 2030 तक इंटरनेशनल मेरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (आईएमओ) के कार्बन इंटेंसिटी लक्ष्य को हासिल कर सकता है। इसका मतलब है कि 2030 तक जहाजों से माल ढोने में उत्सर्जित होने वाले कार्बन में 2008 की तुलना में 30 से 40 फीसदी की कमी आ सकती है।

सरल शब्दों में कहें तो 2008 के स्तर की तुलना में हर किलोमीटर माल ले जाने में 40 फीसदी तक कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होगी। उम्मीद जताई जा रही है कि यह लक्ष्य ऑपरेशन में सुधार, तकनीकी बदलाव और नीतिगत हस्तक्षेपों की मदद से हासिल हो सकता है।

गौरतलब है कि हाल ही में आईएमओ की समुद्री पर्यावरण सुरक्षा समिति ने नई नीतियों को मंजूरी दी है। इन नीतियों की मदद से शिपिंग से हो रहे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में काफी कमी लाई जा सकती है। इनमें बाजार-आधारित उपाय और कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करने वाले ईंधन से जुड़े मानक शामिल हो सकते हैं।

ये कदम स्वच्छ तकनीकों को अपनाने के लिए जरूरी वित्तीय प्रोत्साहन और नीतिगत स्पष्टता प्रदान कर सकते हैं। हालांकि आईएमओ के सदस्य देशों की विविधता बहुत अधिक है, इसलिए किसी भी निर्णय के लिए आम सहमति जरूरी होगी।

ऐसे में चीन, जापान और यूरोपियन यूनियन जैसे प्रमुख देश शिपिंग को कार्बन मुक्त बनाने की दिशा में अहम भूमिका निभाएंगे। वहीं, अमेरिका जैसे कुछ देश जो पर्यावरण अनुकूल तरीकों को अपनाने से पीछे हट रहे हैं, उनकी भूमिका इस वैश्विक प्रयास में बड़ी बाधा बन सकती है।

आसान नहीं नेट-जीरो की राह

विशेषज्ञ मानते हैं कि 2050 तक शिपिंग से हो रहे उत्सर्जन में 40 से 75 फीसदी तक की कटौती संभव है। लेकिन यह नेट-जीरो के लक्ष्य को हासिल करने के लिए काफी नहीं है। इस राह में सबसे बड़ी चुनौती है पारंपरिक ईंधन से हटकर वैकल्पिक ईंधनों (जैसे हाइड्रोजन, अमोनिया या जैव ईंधन) और ऊर्जा स्रोतों की ओर जाना। विशेषज्ञ अब तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि भविष्य में कौन से वैकल्पिक ईंधन सबसे ज्यादा उपयोग होंगे।

इन ईंधनों के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा अभी तैयार नहीं है, और पुराने जहाजों को नई तकनीक के अनुरूप बनाना महंगा और समय लेने वाला काम है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में जहाज मल्टी-फ्यूल सिस्टम (हाइब्रिड) पर काम करेंगे ताकि ईंधन की उपलब्धता के अनुसार ढल सकें।

ऐसा भविष्य जिसमें बहुत कम उत्सर्जन हो उसके लिए कई चीजों का एक साथ आना जरूरी है, लेकिन बिना नई स्वच्छ तकनीकों को अपनाए और मजबूत नीतियों के आगे बढ़े यह काम आसान नहीं होगा। इसके लिए समाज और राजनैतिक इच्छाशक्ति जरूरी है। साथ ही, ऊर्जा उत्पादकों, बंदरगाह अधिकारियों, जहाज मालिकों और उन कंपनियों का सहयोग भी चाहिए जो अपनी सप्लाई चेन को पर्यावरण अनुकूल बनाना चाहती हैं।

नीति-निर्माताओं और उद्योग की है महत्वपूर्ण भूमिका

नीतिगत स्थिरता के लिए सरकारों को चाहिए कि वे पर्यावरण अनुकूल तकनीकों को सब्सिडी और बढ़ावा दें। वैकल्पिक ईंधनों के लिए निवेश करें, और उत्सर्जन के लिए कड़ाई से नियम बनाएं। साथ ही बंदरगाहों, ऊर्जा कंपनियों, जहाज मालिकों और व्यापारियों को मिलकर पर्यावरण अनुकूल आपूर्ति श्रृंखला की दिशा में काम करना होगा।

साथ ही सरकारों, उद्योगों के प्रमुखों और शोधकर्ताओं के बीच सहयोग भी जरूरी है ताकि ठोस समाधान मिल सकें और उत्सर्जन मुक्त भविष्य की ओर तेजी से बढ़ा जा सके।

देखा जाए दुनियाभर की 80 फीसदी से ज्यादा व्यापारिक आवाजाही समुद्र के रास्ते होती है। ऐसे में शिपिंग को कार्बन मुक्त बनाना न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जरूरी है। साथ ही इससे वायु प्रदूषण में भी गिरावट आएगी और लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर होगा। हालांकि इसके लिए सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि वैश्विक सहयोग और राजनीतिक इच्छाशक्ति भी उतनी ही जरूरी है।