हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर जनित बाढ़ों की संख्या में खतरनाक वृद्धि हो रही है। यह चेतावनी इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) के वैज्ञानिकों ने दी है। ग्लोफ (ग्लेशियर लेक आउट बर्स्ट) तब होता है जब किसी पिघलते हुए ग्लेशियर से बनी झील से अचानक पानी निकल जाता है।
2000 के दशक में इस क्षेत्र में हर पांच से दस साल में एक बार ऐसी बाढ़ की संभावना होती थी। लेकिन केवल मई और जून 2025 के दो महीनों में ही आईसीआईएमओडी ने हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में तीन ऐसी बाढ़ों को रिकॉर्ड किया है। ये घटनाएं नेपाल (लीमी), अफगानिस्तान (अंदराब घाटी), और पाकिस्तान (चित्राल, हंजा) में हुईं।
आईसीआईएमओडी के डिजास्टर रिस्क रिडक्शन लीड सास्वत सान्याल ने कहा, “इस प्रकार की घटनाओं की तीव्रता हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में पहले कभी नहीं देखी गई है। हमें उन कारणों को गहराई से समझना होगा जो इन घटनाओं की श्रृंखला को उत्पन्न कर रहे हैं।”
हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र एशिया में 3,500 किलोमीटर तक फैला है और आठ देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान को शामिल करता है। यह क्षेत्र लगभग दो अरब लोगों की खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही यह कई दुर्लभ और अपूरणीय प्रजातियों का घर है।
ग्लेशियर जनित बाढ़ों का प्रमुख कारण तापमान में वृद्धि है। लगातार गर्मी ग्लेशियल झीलों के बनने और उनके फैलाव में अहम भूमिका निभाती है। वहीं, अत्यधिक तापमान वाले दिन बर्फीले भूस्खलन, ग्लेशियर के टूटने या स्थायी रूप से जमी हुई भूमि (पर्माफ्रॉस्ट) के पिघलने से ढलानों के खिसकने जैसी घटनाएं अचानक बाढ़ का कारण बन सकती हैं।
आईसीआईएमओडी ने एक नई प्रवृत्ति की भी पहचान की है। यह है हाल के ग्लोफ घटनाएं नई बनी हुई (सुप्राग्लेशियल) बर्फ से बाधित झीलों के टूटने से हुई हैं। इनमें इस सप्ताह नेपाल के रसुवा जिले में भोटेकोशी नदी में आई बाढ़ भी शामिल है।
सुप्राग्लेशियल झीलें ग्लेशियर की सतह पर बनती हैं, विशेष रूप से मलबे से ढके क्षेत्रों में। ये शुरुआत में छोटे पिघले पानी के तालाब के रूप में बनती हैं और धीरे-धीरे फैलती जाती हैं। कभी-कभी ये आपस में मिलकर बड़ी झील बन जाती हैं, जिससे वे अत्यधिक गतिशील और अस्थिर हो जाती हैं।
नेपाल में हाल ही में आई बाढ़ की वजह बनी झील दिसंबर 2024 में काफी छोटी थी, लेकिन कुछ महीनों में जून 2025 तक वह काफी बढ़ गई। पहले केवल 0.02 वर्ग किलोमीटर से बड़ी झीलों को जोखिमभरी माना जाता था। आईसीआईएमओडी के अनुसार, प्राथमिकता आमतौर पर नीचे की ओर प्रभाव डालने वाली और मोरेन-डैम्ड झीलों को दी जाती थी, क्योंकि वे विशेष रूप से अस्थिर मानी जाती हैं। वर्तमान में नेपाल में 25, चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में 21 और भारत में एक संभावित खतरनाक झील की पहचान की गई है।
सुप्राग्लेशियल झीलों की पहचान करना कठिन है। लैंडसेट और सेंटीनेल -2 जैसे खुले उपग्रह डेटा की सीमित रेजोल्यूशन होती है और ये आमतौर पर केवल बड़े आकार की झीलों को ही पहचान पाते हैं, जिससे छोटी या अल्पकालिक झीलें छूट जाती हैं। उपग्रह इमेजरी की उच्च स्थानिक रेजोल्यूशन इन झीलों के पता लगाने में अहम है।
वैज्ञानिकों ने मानचित्रण और निगरानी प्रयासों को बढ़ाने, संभावित खतरनाक झीलों की सूची को अपडेट करने, छोटी अवधि की बर्फ-डैम्ड झीलों का विश्लेषण करने और ग्लेशियरों के पीछे हटने और झील निर्माण की प्रक्रियाओं को शामिल कर ज्यादा गतिशील और सटीक खतरे के आकलन की सिफारिश की है।
आईसीआईएमओडी के क्लाइमेट एंड एनवायर्नमेंटल रिस्क प्रमुख, क्यांगगोंग झांग ने कहा, “हम एक विशाल भूभाग की बात कर रहे हैं, जहां इस तरह की झीलें बन सकती हैं और वर्तमान में हमारे पास निगरानी की ऐसी कोई विधि या डेटा नहीं है जो तेजी से हो रहे इन परिवर्तनों पर नजर रख सके।”
वैज्ञानिकों ने यह भी अनुमान लगाया है कि 2100 तक हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में ग्लोफ जोखिम तीन गुना तक बढ़ सकता है।