जलवायु

अंटार्कटिका को छोड़कर शेष पूरी दुनिया में कभी न कभी पड़ चुका है सूखा: रिपोर्ट

Dayanidhi

असाधारण सूखे की घटनाएं, जिन्हें भीषण सूखे के रूप में जाना जाता है, पिछले 2,000 वर्षों में अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर हुई हैं। सूखे की इन घटनाओं से पारिस्थितिक और सामाजिक गड़बड़ियां पैदा हुई है।

शोधकर्ताओं की एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय टीम ने ऐतिहासिक समीक्षा कर पाया कि धरती के कुछ हिस्से जो कभी-कभी भारी सूखे की चपेट में आते थे, वे अब स्थायी रूप से सूखे पड़ने लगे हैं। टीम उन कारणों का वर्णन करती है जो भीषण सूखे वाले क्षेत्रों के बारे में उनके पूर्वानुमान लगाने के लिए मार्गदर्शन करते हैं, क्योंकि धरती लगातार गर्म हो रही है

जैसे-जैसे वायुमंडलीय कार्बन बढ़ रही है, दुनिया भर के वैज्ञानिक पर्यावरणीय परिवर्तनों का अनुमान लगाने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं। इस नए प्रयास में, शोधकर्ताओं ने उन क्षेत्रों को देखा जो हाल के समय में सूखे और कभी-कभी भीषण सूखे के दौर से गुजरे हैं, यह अनुमान लगाने के प्रयास में कि वे एक गर्म होती धरती से कैसे प्रभावित हो सकते हैं।

सूखा कैसे पड़ता है, इस पर अधिक जानकारी हासिल करने के लिए, शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में पिछले 2,000 वर्षों में उनके विवरणों को देखा। उन्होंने अन्य सबूतों को भी देखा, जैसे कि पेड़ के छल्ले, स्टैलेग्माइट्स और अन्य प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रिकॉर्ड उन घटनाओं के बारे में अधिक जानने के लिए जिनके कारण सूखा पड़ने की घटनाएं हुई और उनकी अवधि बढ़ी।

उन्होंने पाया कि अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर सूखा या भीषण सूखे जो कि उम्मीद से अधिक समय तक चलते हैं, छिटपुट रूप से हुए हैं। उन्होंने यह भी पाया कि समुद्र की सतह के तापमान में असामान्य बदलाव के कारण अधिकांश भीषण सूखे की घटनाएं घटित हुई। इसके बाद शोधकर्ताओं ने प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों स्थितियों के आधार पर भविष्य में बड़े सूखे के आशंका के बारे में अनुमान लगाया।

अनुमानों से पता चलता है कि धरती के वे हिस्से जो ऐतिहासिक रूप से सूखे या भीषण सूखे से ग्रस्त रहे हैं, यदि उन जगहों की स्थिति गर्म हो जाती है, तो उनके लिए और भी अधिक सूखे के जारी रहने के आसार हैं।

अध्ययनकर्ता इस बात पर गौर करते हैं, क्योंकि गर्म हवा में अधिक पानी होता है। यह हिमपात जैसे कारकों के कारण भी हो सकता है। गर्म तापमान से पहले बर्फ पिघलती है और मिट्टी सूख जाती है, जिसके कारण हवा में नमी कम हो जाती है और इसलिए बारिश कम होती है।

अतीत में भीषण सूखा ग्रस्त इलाकों में से कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां मानवजनित जलवायु परिवर्तन के चलते वर्षा में गिरावट, पौधों के पानी के उपयोग में बदलाव के माध्यम से भविष्य में सूखे के खतरों में वृद्धि होने के आसार हैं।

भीषण सूखा पड़ने की घटनाओं के कारण आधुनिक जल-प्रबंधन प्रणालियों के काफी हद तक प्रभावित होने की आशंका है। हालांकि इस तरह की घटनाओं के खतरों और उनके अंतिम प्रभावों की समझ अभी भी अतीत और भविष्य के भीषण सूखा पड़ने की घटनाओं पर निर्भर है।

शोधकर्ताओं ने यह भी गौर किया कि बढ़ते तापमान का ला नीना की घटनाओं पर भी असर पड़ेगा, जिससे बारिश कम हो जाएगी। अंतिम परिणाम, वे सुझाव देते हैं कि कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति के स्थायी रूप से शुष्क क्षेत्रों में बदलने के आसार हैं। यह शोध रिपोर्ट नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है।