दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की वजह से जंगलों के बीज उत्पादन में बदलाव आ रहा है, खासकर उत्तरी अमेरिका के पूर्वी हिस्से में शामिल जंगल जहां अधिकतर छोटे पेड़ हैं। यहां जलवायु में आ रहे बदलाव के चलते वनों ने अपने बीज उत्पादन में वृद्धि की है। लेकिन पुराने, बड़े पेड़ जो कि पश्चिम के अधिकांश जंगलों में हैं, कम प्रतिक्रियाशील हैं, अर्थात यहां बीजों का उत्पादन कम हो रहा है। यह मामला ड्यूक विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक नए अध्ययन में सामने आया है।
इन पेड़ों के बीज उत्पादन या उपजाऊपन में कमी, पश्चिमी जंगलों के बढ़ते तापमान और सूखे से बड़े पैमाने पर होने वाली कमियों के कारण है। जहां इस सब की वजह से पेड़ों के बीज उत्पादन और उनके उगने की क्षमता सीमित हो सकती है। अब यह दुनिया के जंगलों के कई हिस्सों और प्रांतों में हो रहा है। अध्ययन में इस तरह के महाद्वीपीय विभाजन में हो रहे बदलवा को पहली बार देखा गया है। ड्यूक में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर जेम्स एस क्लार्क निकोलस ने कहा कि 21वीं शताब्दी में उत्तर अमेरिकी जंगलों की संरचना बदल सकती है। प्रोफेसर जेम्स ने इस अध्ययन का नेतृत्व भी किया है।
उन्होंने कहा कि इसके विपरीत प्रतिक्रियाएं जानने और समझने के बाद, कि पेड़ ऐसा क्यों करते हैं? वैज्ञानिकों को जंगलों में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के बारे में सटीक अनुमान लगाने, बदलावों को कम करने, संरक्षण और प्रबंधन रणनीतियों के विकास करने में मदद मिलेगी।
पेड़ों की कटाई के बाद वहां पुन: उगने, पेड़ों की क्षमता को पुनर्जीवित करने के लिए बीजों का फैलना बहुत आवश्यक है, बीज वहां उगेंगे जहां परिस्थितियां उनके अधिक अनुकूल होंगी। यह जलवायु परिवर्तन की वजह से भविष्य में वन किस तरह प्रतिक्रिया करेंगे इसको निर्धारित करने के लिए एक आवश्यक कारक है, लेकिन कई पारिस्थितिक प्रक्रियाओं की तरह यह अत्यधिक परिवर्तनशील और इसका अनुमान लगाना बहुत कठिन है।
एक पेड़ का आकार, विकास दर या उसकी प्रकाश की जरुरत, पानी और अन्य संसाधनों तक पहुंच अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु में आए बदलावों से प्रभावित होता है। क्लार्क ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के लिए जंगल किस तरह की प्रतिक्रिया करेंगे इसके लिए इनके स्थानीय डेमोग्राफी की जानकारी आवश्यक है, जिसको लेकर हमारे पास क्षेत्र आधारित अनुमान का अभाव था। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
इस समस्या को हल करने के लिए, उन्होंने नए सांख्यिकीय सॉफ्टवेयर तैयार किए, जो उन्हें उत्तरी अमेरिका में लंबे समय तक शोध स्थलों और प्रयोगात्मक जंगलों में लगभग 1लाख पेड़ों के उनके आकार, विकास, इनके फैलने और संसाधनों तक पहुंच का दशकों तक का विश्लेषण किया। आंकड़ों से पता चलता है कि औसत माप के आधार पर पिछले विश्लेषणों में किस तरह की कमी आई थी, महाद्वीपीय पैमाने पर, एक पेड़ के बड़े होने से, एक बिंदु तक उपजाऊपन बढ़ जाता है और उसके बाद यह घटने लगता है।
क्लार्क ने बताया यह अलग-अलग जगहों (पूर्व-पश्चिम) के विभाजन को स्पष्ट करता है। पूर्व में अधिकांश पेड़ युवा हैं, जो तेजी से बढ़ रहे हैं और एक आकार वर्ग में प्रवेश कर रहे हैं, जहां उपजाऊपन बढ़ जाता है, इसलिए जलवायु से पड़ने वाला अप्रत्यक्ष प्रभाव उनके विकास को प्रभावित करता है, जिससे उनका बीज उत्पादन बढ़ जाता है। जबकि इसके विपरीत पश्चिम में पेड़ बड़े और वृद्ध हो चुके हैं।
क्लार्क ने कहा कुल मिलाकर अब हम इसे समझ गए हैं, यह सब कैसे काम करता है, तो अगला कदम यह है कि इसे हर एक प्रजाति पर लागू किया जाए या इसे उन मॉडलों में शामिल किया जाए जिनका उपयोग हम भविष्य के वनों में होने वाले बदलावों का अनुमान लगा सकते हैं।