विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की 18 मई, 2022 को जारी स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट इन 2021 रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग पूरे भारतीय तटों के साथ लगे समुद्र का स्तर दुनिया भर में औसत से अधिक तेजी से बढ़ रहा है।
दुनिया भर में 2013 से 2021 के बीच समुद्र के स्तर में हर साल 4.5 मिलीमीटर की वृद्धि दर देखी गई। जो कि 1993 और 2002 के बीच की दर से दोगुने से अधिक थी।
समुद्र के स्तर में वृद्धि का प्रमुख कारण आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में बर्फ की चादरों से बर्फ के तेजी से पिघलना है। ला नीना की घटना के 2021 की शुरुआत और अंत के दौरान उभरने के बावजूद भी इसमें वृद्धि देखी गई।
ला नीना सामान्य से अधिक ठंडा चरण है जबकि भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल नीनो दक्षिणी दोलन की घटना है। आमतौर पर ला नीना वर्षों के दौरान, समुद्र का स्तर औसत से कम होता है।
अल नीनो जो कि सामान्य अवस्था से अधिक गर्म होता है, इन वर्षों के दौरान वे औसत से अधिक होते हैं। 2021 में वैश्विक औसत समुद्र स्तर की वृद्धि लंबी अवधि को दिखाती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में समुद्र के स्तर में वृद्धि सभी भागों में समान रूप से नहीं हो रही है। हिंद महासागर के इलाके में समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर दक्षिण पश्चिमी भाग से अधिक तेज है, जहां यह वैश्विक औसत से इसकी हर साल दर 2.5 मिमी अधिक है।
समुद्र तट सहित हिंद महासागर क्षेत्र के अन्य हिस्सों में हर साल यह दर 0 से 2.5 मिमी के बीच है, जो कि वैश्विक औसत से भी तेज है।
अन्य इलाकों में जहां समुद्र के स्तर में वृद्धि दर वैश्विक औसत से अधिक तेज है, उनमें पश्चिमी उष्णकटिबंधीय प्रशांत, दक्षिण-पश्चिम प्रशांत, उत्तरी प्रशांत और दक्षिण अटलांटिक शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र के स्तर में बदलाव के क्षेत्रीय पैटर्न समुद्र की गर्मी की मात्रा और खारेपन के चलते स्थानीय बदलाव हो रहा है।
हिंद महासागर के इलाके को पहले 1951 से 2015 के बीच 0.7 डिग्री सेल्सियस के वैश्विक औसत के मुकाबले 1 डिग्री सेल्सियस के तापमान में वृद्धि के साथ दुनिया में सबसे तेजी से गर्म होने वाले महासागर के रूप में वर्णित किया गया है। महासागर में व्याप्त गर्मी 2021 में पहले ही दुनिया भर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी।
समुद्र के स्तर में इस तरह की वृद्धि का भारतीय समुद्र तट के नजदीक रहने वाले लाखों लोगों के लिए घातक परिणाम हो सकते हैं। जबकि समुद्र तट का लगातार कटाव, धंसना और डेल्टाओं का जलमग्न होना, समुद्र के करीब रहने वाले लोगों के लिए हमेशा से ही चिंता का विषय रहा है। अभी चिंता उष्णकटिबंधीय चक्रवातों और समुद्र के स्तर में वृद्धि दोनों के एक साथ मिलकर पड़ने वाले प्रभाव से है।
उदाहरण के लिए, जब एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात आता है, तो भारी वर्षा होती है, समुद्र के स्तर में वृद्धि के साथ ऊंची-ऊंची तूफानी लहरों में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण बाढ़ आने के आसार अधिक तेजी से बढ़ जाते हैं, इसलिए प्रबंधन करना और भी मुश्किल हो जाता है।
तूफान में वृद्धि एक चक्रवात के दौरान समुद्र की लहरों की ऊंचाई और ऊर्जा में वृद्धि है जो चक्रवात की हवा की गति पर निर्भर करती है। चक्रवात की हवा की गति जितनी अधिक होती है, चक्रवात के केंद्र की ओर पानी जमा करने की उनकी क्षमता उतनी ही अधिक होती है, इसलिए यह एक खतरनाक तूफान का रूप धारण कर लेता है।
चक्रवात के समय अधिक ज्वार आने पर तूफान की लहरें भी तेज हो सकती हैं। एक तूफानी लहर और एक उच्च ज्वार दोनों के प्रभाव को तूफान ज्वार के रूप में जाना जाता है।
तूफान की लहरें और ज्वार-भाटा कृषि क्षेत्रों और लोगों के घरों में खारा पानी लाते हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में कमी सहित लंबे समय तक चलने वाले नुकसान होते हैं।
हिंद महासागर के इलाके में हाल के चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि देखी गई है, पहले की तुलना में हवा की अधिक गति के साथ, जिसका मतलब है ऊंची-ऊंची तूफानी लहरों के उठने से है। जैसे-जैसे समुद्र का स्तर बढ़ेगा, तूफान और भी तेज होता जाएगा और समुद्र के पानी को जमीन पर ले जाएगा, जिससे बाढ़ आ जाएगी।
2020 में सुपर साइक्लोन अम्फान के मामले में, समुद्र का पानी 25 किलोमीटर आंतरिक इलाकों में घुस गया था, जिससे सुंदरबन डेल्टा के बड़े हिस्से में पानी भर गया, जो पहले से ही भारत में चक्रवात और समुद्र के स्तर में वृद्धि दोनों के चलते सबसे कमजोर माना जाता है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग, पुणे के विश्लेषण के मुताबिक हर 1.67 साल में एक चक्रवाती तूफान सुंदरबन से टकराता है। छोटी वापसी अवधि अधिक बार-बार आने वाले चक्रवातों की ओर इशारा करती हैं। शोधकर्ताओं ने 1961 से 2020 के बीच तटीय जिलों के करीब 90 किलोमीटर के दायरे में आने वाले चक्रवाती तूफानों का अध्ययन किया।
नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के लैंडसैट सैटेलाइट इमेजरी के अनुसार पिछले दो दशकों में सुंदरबन डेल्टा में समुद्र का स्तर 30 मिमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है, जिसमें तटरेखा में 12 फीसदी की कमी आई है। यह वैश्विक औसत से छह गुना अधिक है और इससे पहले ही डेल्टा से लगभग 15 लाख लोगों का विस्थापन हो चुका है।
यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से कमी करके पेरिस समझौते के तहत देशों द्वारा सहमति के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे नहीं रखा गया, तो समुद्र के स्तर में वृद्धि और सुंदरबन जैसे इलाकों का तीव्र चक्रवातों से अस्तित्व समाप्त हो सकता है, जिससे एक बड़ा नुकसान हो सकता है। आंतरिक तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को निवास और अन्य सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ेगा।