ग्रीनलैंड और आर्कटिक से बर्फ के टुकड़े जब दक्षिण की ओर बहते हैं तो विशाल भंवर बनाते हैं। फोटो: नासा अर्थ ऑब्जर्वेटरी 
जलवायु

पृथ्वी को ठंडा रखने की क्षमता तेजी से खो रही है समुद्री बर्फ, 1980 से 15 फीसदी की आई है कमी

रिसर्च के मुताबिक आर्कटिक और अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ के विस्तार की तुलना में उसकी वातावरण को ठंडा रखने की शक्ति में करीब दोगुनी कमी आई है

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि समुद्री बर्फ बड़ी तेजी से पृथ्वी को ठंडा रखने की अपनी क्षमता खो रही है। हैरानी की बात है कि यह बदलाव पूरी दुनिया में सामने आ रहे हैं। यदि 1980 से देखें तो दुनिया में मौजूद समुद्री बर्फ पृथ्वी को ठंडा रखने की अपनी 15 फीसदी क्षमता खो चुकी है। नतीजन इसकी वजह से धरती कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रही है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक समुद्री बर्फ में वातावरण को प्राकृतिक रूप से ठंडा करने की शक्ति होती है, लेकिन मिशिगन विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि वो पहले जितनी प्रभावी नहीं रह गई है।

इन प्रभावों को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने 1980 से 2023 के बीच उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली है। इसमें वातावरण में मौजूद बादलों के साथ समुद्री बर्फ द्वारा परावर्तित सूर्य के प्रकाश का विश्लेषण किया गया है।

अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि समुद्री बर्फ के विस्तार की तुलना में पृथ्वी को ठंडा रखना की उसकी क्षमता कहीं ज्यादा तेजी से कम हो रही है। जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक आर्कटिक और अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ के विस्तार की तुलना में उसकी वातावरण को ठंडा रखने की शक्ति में करीब दोगुनी कमी आई है।

उनके मुताबिक यह अतिरिक्त गर्मी ज्यादातर जलवायु मॉडलों द्वारा की गई भविष्यवाणी से कहीं ज्यादा है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि समुद्री बर्फ पिघलने और उसके सूर्य के प्रकाश को कम परावर्तित करने की वजह से आर्कटिक ने 1980 के बाद से वातावरण को ठंडा रखने की अपनी शक्ति का करीब एक चौथाई (21 से 27 फीसदी) हिस्सा खो दिया है।

गायब होती बर्फ की परत के अलावा, बची हुई बर्फ भी कम परावर्तक होती जा रही है। फोटो: आईस्टॉक

पिघलती बर्फ के साथ तेजी से बदल रहे हैं समीकरण

शोधकर्ताओं के मुताबिक 1980 के बाद से आर्कटिक में समुद्री बर्फ के ठंडा करने की क्षमता में सबसे ज्यादा और लगातार गिरावट देखी गई है। हालांकि दक्षिणी ध्रुव कुछ समय के लिए बेहतर स्थिति में था, जहां 2007 से 2010 के बीच इसकी समुद्री बर्फ स्थिर बनी हुई थी। इस दौरान अंटार्कटिक में जमा समुद्री बर्फ की वातावरण को ठंडा करने की क्षमता भी बढ़ रही थी।

लेकिन 2016 में स्थिति अचानक से बदल गई, जब 2016 में अंटार्कटिका की सबसे बड़ी बर्फ की चट्टानों में से एक पिघल गई, जो आकार में टेक्सास से भी बड़ी थी। तब से अंटार्कटिका ने कहीं ज्यादा समुद्री बर्फ खो दी है। इसकी वजह से अंटार्कटिका की वातावरण को शीतल करने की शक्ति दोबारा बहाल नहीं हो सकी है। नतीजन 2016 से 2023 के बीच सात वर्षों में 1980 के दशक के बाद से समुद्री बर्फ का शीतलन प्रभाव सबसे कमजोर रहा है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक गायब होती बर्फ की परत के अलावा, बची हुई बर्फ भी कम परावर्तक होती जा रही है। वहीं गर्म तापमान और बारिश में वृद्धि के कारण बर्फ पतली और नम होती जा रही है। इसकी वजह से पिघले हुए तालाब बन रहे हैं जो सूर्य की कम रोशनी को परावर्तित करते हैं।

यह प्रभाव आर्कटिक में सबसे अधिक स्पष्ट है, जहां वर्ष के उन दिनों में जब धूप सबसे ज्यादा चटक होती है उस दौरान समुद्री बर्फ कम परावर्तक हो गई है। नए अध्ययन से पता चलता है कि यह अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ को होते नुकसान के साथ-साथ बढ़ते तापमान का एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है।

अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता अलीशेर दुसपेव का प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहना है कि, "2016 से अंटार्कटिक की समुद्री बर्फ में आए बदलावों ने समुद्री बर्फ को होते नुकसान की वजह से तापमान में हो रही वृद्धि को 40 फीसदी तक बढ़ा दिया है। ऐसे में अगर हम विकिरण प्रभाव में आ रहे इन बदलावों पर विचार नहीं करते, तो हम कुल वैश्विक ऊर्जा अवशोषण का एक बड़ा हिस्सा खो सकते हैं।"