जलवायु

वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड के हिमालय में खोजा 5 किमी लंबा ग्लेशियर

हिमालय के ग्लेशियर ने अचानक अपना रास्ता बदल दिया है, भविष्य में इसके किस तरह के प्रभाव पड़गे इस बात की कोई जानकारी नहीं है

Dayanidhi

वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में ऊपरी काली गंगा घाटी के हिमालयी इलाकों में ग्लेशियरों पर एक अध्ययन किया है। अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों को एक 5 किलोमीटर लंबा अज्ञात ग्लेशियर मिला है। इससे पहले इस ग्लेशियर के बारे में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं थी।

ग्लेशियर 4 वर्ग किलोमीटर तक कुठी यांकी घाटी यानी काली नदी की सहायक नदी ले इलाके में फैला हुआ है। इससे पहले नदी ने अचानक अपना मुख्य मार्ग बदल दिया था जिससे यह समजुर्कचांकी नामक एक निकटवर्ती ग्लेशियर में मिल गई है।

कुठी याक्ति काली गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है और इसकी घाटी में 130 वर्ग किमी के क्षेत्र में लगभग 88 ग्लेशियर हैं। अज्ञात ग्लेशियर इस घाटी में स्थित है, यह समजुर्कचांकी ग्लेशियर के उत्तर में स्थित है। ग्लेशियर की गति जलवायु परिस्थितियों से प्रभावित होती है और अध्ययनों से पता चलता है कि इस क्षेत्र में पानी के जमने और पिघलने के चक्र चलते रहते हैं, जो चट्टानों के अपक्षय को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

जलवायु में बदलाव और टेकटोनिक के चलते अंतिम ग्लेशियर मैक्सिमा (19-24,000 वर्ष पहले) और होलोसीन युग (10,000 वर्ष पहले) के बीच कुछ समय के लिए और विवर्तनिक या टेकटोनिक बल के कारण इस तरह की घटना हुई थी। वैज्ञानिकों की इस टीम में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक शामिल थे।  

अध्ययन के निष्कर्षों पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की टिप्पणी में कहा गया है कि उत्तराखंड में मिले अज्ञात ग्लेशियर के असामान्य व्यवहार से पता चलता है कि न केवल जलवायु एक नियंत्रण कारक है, बल्कि टेकटोनिक भी ग्लेशियरों के जलग्रहण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह स्पष्ट रूप से बताता है कि हिमालय एक सक्रिय पर्वत श्रृंखला है और अत्यधिक नाजुक है जहां विवर्तनिकी या टेकटोनिक और जलवायु एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भूवैज्ञानिक मानचित्र से पता चलता है कि ग्लेशियर दो सक्रिय जगहों से घिरा है और तीन सक्रिय नुकसान पहुंचाने वाले इलाकों से घिरा है। इन प्रक्रियाओं ने सक्रिय और नुकसान पहुंचाने वाले परिदृश्य को बदल दिया है और पूरे क्षेत्र को विभिन्न सतह प्रक्रियाओं के लिए अधिक नाजुक और कमजोर बना दिया है। दूसरे ग्लेशियर का मार्ग परिवर्तन केवल सतही प्रक्रियाओं के कारण नहीं है, बल्कि एक सक्रिय दोष के कारण है जो हाल के दिनों में फिर से सक्रिय हो गया है।

कुल मिलाकर उत्तराखंड में लगभग 1,000 से 1,400 ग्लेशियर हैं, जो झीलों के फटने या घाटियों में या ढलानों पर चट्टान गिरने या भूस्खलन के कारण झीलों का  निर्माण हो सकता हैं।  

पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, डॉ जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में  बताया कि सरकार कई शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों, आईआईटी, आईआईएस आदि द्वारा हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं के समाधान खोजने के लिए शोध को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

डॉ सिंह ने कहा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय अपने राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के माध्यम से रिकॉर्ड किए गए भूकंप के आंकड़ों का उपयोग करके इसे अनुसंधान में शामिल किया है। विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र के लिए भूकंप प्रक्रियाओं और भूकंपीय खतरे के आकलन से संबंधित विभिन्न घटनाएं इसमें शामिल हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, हिमालय में भूकंप, भूस्खलन और हिमस्खलन के कारणों और परिणामों को समझने के लिए लगातार शोध कर रहा है ताकि इससे निपटने के उपाय किए जा सकें।