जलवायु

वैज्ञानिकों ने ओजोन परत के ठीक होने का आकलन करने के लिए नया तरीका किया विकसित

वैज्ञानिकों ने ओजोन के कमजोर पड़ने के आकलन की विधी विकसित की है, जो ओजोन परत पर किसी भी नए अनियमित उत्सर्जन के प्रभाव का अनुमान लगाने में मदद करेगा

Dayanidhi

शोधकर्ताओं ने ओजोन को नष्ट करने वाले पदार्थों के प्रभावों का आकलन करने के लिए एक नई विधि विकसित की है। ये पदार्थ ओजोन परत के ठीक होने के रास्ते में एक बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने बताया कि यह विधि पुरे ओजोन के कमजोर पड़ने या इंटीग्रेटेड ओजोन डिप्लेशन (आईओडी) मीट्रिक-नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों के लिए एक उपयोगी उपकरण प्रदान करता है।

आईओडी के तहत ओजोन परत को कमजोर करने वाले पदार्थों के अनियमित उत्सर्जन के प्रभावों को मापने के लिए, एक आसान तरीका डिजाइन किया गया है। यह इस बात का मूल्यांकन कर सकता है कि ओजोन परत के संरक्षण उपाय कितने प्रभावी हो सकते हैं।

ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल के एक क्षेत्र में पाई जाती है जिसे समताप मंडल के रूप में जाना जाता है। यह सूर्य की अधिकांश हानिकारक पराबैंगनी किरणों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा अवरोध के रूप में कार्य करती है।

क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसे ओजोन को नष्ट करने वाली गैसों, जिन्हें बेहतर रूप से सीएफसी के रूप में जाना जाता है, इनको मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया गया है। यह ओजोन परत की रक्षा के लिए विश्व स्तर पर सहमत एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल काफी हद तक सफल रहा है, लेकिन उल्लंघन इसकी प्रभावशीलता को खतरे में डाल रही हैं।

आईओडी तीन चीजों पर विचार करके ओजोन परत पर किसी भी नए उत्सर्जन के प्रभाव की ओर इशारा करता है, पहला उत्सर्जन की ताकत, दूसरा यह कितनी देर तक वातावरण में रहेगा और तीसरा ओजोन कितनी रासायनिक रूप से नष्ट हो गई है।

पर्यावरण संरक्षण और मानव स्वास्थ्य नीतियों के लिए, आईओडी ओजोन बहाली पर किसी भी उत्सर्जन परिदृश्य के प्रभाव की गणना करने का एक सरल साधन प्रस्तुत करता है।

यह नया मीट्रिक कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस और लीड्स विश्वविद्यालय के नेशनल सेंटर फॉर अर्थ ऑब्जर्वेशन के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित किया गया है।

नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन पाइल ने अपने जीवन को समताप मंडल में ओजोन की कमी का अध्ययन करने और मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल विकसित करने में मदद करने के लिए समर्पित किया है।

कैंब्रिज में युसुफ हामिद रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर जॉन पाइल ने कहा कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के बाद, हम अब एक नए चरण में हैं, जो है ओजोन परत की बहाली का आकलन करना। यह नया चरण पुरे ओजोन के कमजोर पड़ने जैसे नए मेट्रिक्स की मांग करता है, जिसे हम आईओडी के रूप में जानते हैं।

प्रोफेसर पाइल ने कहा हमारा नया मीट्रिक उत्सर्जन के प्रभाव को माप सकता है, चाहे उनका आकार कितना ही बड़ा क्यों न हो। वायुमंडलीय रसायन शास्त्र कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके, हम आईओडी तथा उत्सर्जन के आकार और रासायनिक जीवनकाल के बीच एक सरल रैखिक संबंध देख सकते हैं। इसलिए, जीवन काल की जानकारी के साथ, आईओडी की गणना करना एक सरल मामला है, जिससे यह विज्ञान और नीति दोनों के लिए एक उत्कृष्ट मीट्रिक बन जाता है।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओजोन परत की सफलतापूर्वक रक्षा कर रहा है, लेकिन इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि ओजोन छिद्र अपेक्षा से धीमी गति से ठीक हो रहा है।

पाइल ने कहा आईओडी ओजोन के ठीक होने की निगरानी के लिए बहुत उपयोगी होगा और विशेष रूप से उन नियामकों के लिए प्रासंगिक होगा, जिन्हें ओजोन को रासायनिक रूप से नष्ट करने की क्षमता वाले पदार्थों को चरणबद्ध तरीके से रोक लगाने की आवश्यकता होती है।

आईओडी मीट्रिक को वातावरण के एक कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके बनाया गया है, जिसे यूके केमिस्ट्री और एरोसोल मॉडल (यूकेसीए) कहा जाता है। राष्ट्रीय वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र और मौसम कार्यालय ने समताप मंडल में ओजोन जैसे महत्वपूर्ण रसायनों के भविष्य के अनुमानों की गणना के लिए यूकेसीए मॉडल विकसित किया।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के डॉ. ल्यूक अब्राहम ने बताया कि हमने आईओडी मीट्रिक विकसित करने के लिए यूकेसीए मॉडल का उपयोग किया है, जो हमें ओजोन परत पर किसी भी नए अवैध या अनियमित उत्सर्जन के प्रभाव का अनुमान लगाने में मदद करेगा।

उन्होंने कहा कि यूकेसीए मॉडल में हम सीएफसी के विभिन्न प्रकारों और सांद्रता के साथ प्रयोग कर सकते हैं और अन्य ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों का भी पता लगा सकते हैं।

डॉ. अब्राहम ने बताया कि हम अनुमान लगा सकते हैं कि भविष्य में वातावरण में केमिकल कैसे बदलेंगे और आने वाली सदी में ओजोन परत पर उनके प्रभाव का आकलन किया जा सकता है। ओजोन परत के ठीक होने की आकलन करने वाली यह विधि नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुई है।