जलवायु

गर्मी ने बनाया एक और रिकॉर्ड, अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका में अब तक का सबसे गर्म रहा नवंबर

इस साल यह लगातार छठा महीना है जब बढ़ते तापमान ने नया रिकॉर्ड बनाया है। इससे पहले जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर के महीनों ने भी सबसे ज्यादा गर्म होने का रिकॉर्ड कायम किया था।

Lalit Maurya

बढ़ते तापमान का कहर बढ़ता ही जा रहा है। यही वजह है कि हर गुजरते दिन के साथ स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। ऐसा ही कुछ इस साल नवंबर में भी देखने को मिला जब अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका को अपने अब तक के सबसे गर्म नवंबर का सामना करना पड़ा।

स्थिति उत्तरी अमेरिका में भी कोई खास अच्छी नहीं रही इस दौरान उसने भी अपने दूसरे सबसे गर्म नवंबर का समाना किया था। इसी तरह ओशिनिया के लिए भी यह अब तक पांचवा सबसे गर्म नवंबर का महीना रहा।

यदि वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान की बात करें तो 537वां महीना है जब तापमान सामान्य से ज्यादा दर्ज किया गया है। वहीं यदि सिर्फ नवंबर के महीनों को देखें तो पिछले 47 वर्षों में कोई भी नवंबर ऐसा नहीं रहा जब तापमान बीसवीं सदी में नवंबर के औसत तापमान से कम रहा हो। यह जानकारी नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है।

यदि पिछले 174 वर्षों के जलवायु रिकॉर्ड को देखें तो 2023 में अब तक का सबसे गर्म नवंबर का महीना दर्ज किया गया। जब तापमान 20 वीं सदी के औसत तापमान (12.9 डिग्री सेल्सियस) की तुलना में 1.44 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। इससे पहले सबसे गर्म नवंबर होने का यह रिकॉर्ड 2015 के नाम था जब तापमान 20 वीं सदी के औसत तापमान की तुलना में 1.06 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रिकॉर्ड किया गया था। वहीं 2020 में नवंबर के दौरान तापमान औसत से 1.05 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था।

इस साल यह लगातार छठा महीना है जब बढ़ते तापमान ने नया रिकॉर्ड बनाया है। इससे पहले जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर के महीनों ने भी सबसे ज्यादा गर्म होने का रिकॉर्ड कायम किया था। जो कहीं न कहीं इस बात की पुष्टि करता है कि यह साल अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा। बस इसकी घोषणा महज औपचारिकता रह गई है।

देखा जाए तो बढ़ते तापमान से केवल धरती ही नहीं समुद्र भी सुरक्षित नहीं है। आंकड़ों की मानें तो यह लगातार आठवां महीना है जब वैश्विक स्तर पर समुद्र की सतह का औसत तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।

बनते बिगड़ते जलवायु रिकॉर्ड

इसी तरह सितंबर-नवंबर के बीच बढ़ते तापमान को देखें तो वो भी बीसवीं सदी के औसत तापमान से 1.41 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रिकॉर्ड किया गया है। इसका असर साफ तौर पर मौसम पर भी देखा जा सकता है। जहां इस साल भारत में सर्दियों की शुरूआत देर से हुई है। कुल मिलकर देखें तो यह तीन महीने भी जलवायु इतिहास में अब तक के सबसे गर्म तीन महीने (सितंबर से नवंबर) रहे। इससे पहले यह तापमान का यह रिकॉर्ड 2015 में दर्ज किया गया था। लेकिन इस साल बदता तापमान उससे भी 0.39 डिग्री सेल्सियस अधिक है।

इसके साथ ही एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका ने अब तक की सबसे गर्म सितम्बर से नवंबर की अवधि का भी सामना किया है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के लिए यह सबसे गर्म सर्दियां थी। वहीं जापान ने भी अपनी सबसे गर्म सर्दियों का सामना किया है। हांगकांग के लिए भी यह दूसरा सबसे गर्म नवम्बर रहा। इसी तरह आर्कटिक के भी यह दूसरा सबसे गर्म नवंबर था। साथ ही उसने दूसरी सबसे गर्म सर्दियों का भी सामना किया। वहीं ऑस्ट्रेलिया के लिए भी इस साल नवंबर का महीना नौवां सबसे गर्म नवंबर का महीना रहा।

वहीं यदि जनवरी से नवंबर के बीच पिछले ग्यारह महीनों के औसत तापमान को देखें तो वो भी सामान्य से 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक है। जो उसे जलवायु इतिहास की अब तक की सबसे गर्म अवधि भी बनाता है। इससे पहले इतना तापमान 2016 में दर्ज किया गया था। लेकिन इस साल बढ़ता तापमान उससे भी  0.11 डिग्री सेल्सियस अधिक है। यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने इस बात की करीब 99 फीसदी आशंका जताई है कि यह साल अब तक के सबसे गर्म वर्ष के रुप में शुमार होगा।

कहीं इंसानों को ही न मिटा दे उनकी बढ़ती लालसा

नवंबर में आर्कटिक और अंटार्कटिक में जमा बर्फ की बात करें तो नवंबर में वैश्विक स्तर पर समुद्री बर्फ का विस्तार रिकॉर्ड में दूसरा सबसे कम दर्ज किया गया। जहां आर्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 190,000 वर्ग मील कम था। देखा जाए तो आठवां मौका है जब आर्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार इतना कम पाया गया है। जो इस दौरान 37.3 लाख वर्ग किलोमटेर दर्ज किया गया। वहीं अंटार्कटिक ने भी नवंबर के दौरान दूसरी बार इतनी कम बर्फ देखी है। इस दौरान अंटार्कटिक में जमा बर्फ का विस्तार 55.1 लाख वर्ग मील दर्ज किया गया जो औसत से करीब 620,000 वर्ग मील कम है।

हालांकि अच्छी खबर यह रही की इस बार नवंबर के दौरान केवल चार तूफान दर्ज किए गए। 1981 के बाद यह दूसरा नवंबर है जब तूफानों की संख्या सबसे कम रही। इनमें से एक तूफान थोड़ा शक्तिशाली था जिसमें हवाओं की रफ्तार 74 मील प्रति घंटे या उससे अधिक पर पहुंच गई थी।

आज बढ़ता तापमान मानवता के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। हालांकि इसके जिम्मेवार हम इंसान ही हैं। बढ़ते तापमान का यह असर जलवायु में आते बदलावों और चरम मौसमी घटनाओं के अलग-अलग रूपों में सामने आ रहा है। कहीं फसलें सूख रहीं हैं कहीं वो भारी बारिश और बाढ़ से बर्बाद हो रही हैं। इतना ही नहीं बढ़ता तापमान कीटों के हमलों को और बढ़ा रहा है। मौसमी आपदाएं हर दिन कहीं न कहीं कहर बन कर टूट रहीं हैं। नई-नई बीमारियां सिर उठा रहीं हैं। वहीं जो पहले से मौजूद हैं वो नए क्षेत्रों को भी अपना निशाना बना रहीं हैं।

वहीं जलवायु में आते बदलावों पर चर्चा के लिए हाल ही में सम्पन्न हुए कॉप-28 सम्मेलन भी कुछ बड़ी बात सामने नहीं आई है। देखा जाए तो इसमें भी बढ़ते उत्सर्जन पर सभी ने चिंता जताई लेकिन इसे कम कैसे किया जाएगा वो भी तब जब इतना कम समय बचा हो यह अभी भी एक बड़ा सवाल है। ऐसे में बढ़ते तापमान से जल्द निजात मिलने की उम्मीद करना बेमानी है।