भारत में बढ़ता तापमान नित नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है, ऐसा ही कुछ पिछले महीने में भी देखा गया, जब बढ़ती गर्मी ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक 125 वर्षों में पिछला फरवरी का महीना अब तक का सबसे गर्म फरवरी था।
आईएमडी ने इस बात की भी आशंका जताई है कि आने वाले महीने कुछ ज्यादा ही गर्म रह सकते हैं। गौरतलब है कि बढ़ता तापमान जहां एक और चरम मौसमी घटनाओं को जन्म दे रहा है, साथ ही देश में बिजली की बढ़ती मांग की भी वजह बन रहा है।
जलवायु संगठन क्लाइमेट ट्रेंड्स ने भी इस बारे में जारी अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि बढ़ती गर्मी के कारण फरवरी में बिजली खपत पहले ही काफी बढ़ गई। आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान बिजली की अधिकतम मांग (पीक डिमांड) 238 गीगावाट तक पहुंच गई।
रिपोर्ट में आशंका जताई है कि यह मांग मार्च-अप्रैल 2025 में और अधिक बढ़ सकती है। बता दें कि आईएमडी पहले ही इस बात का अंदेशा जाता चुका है कि इन महीनों में तापमान सामान्य से ज्यादा रह सकता है। क्लाइमेट ट्रेंड ने अपनी रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया है कि 2023 में बिजली की मांग में हुई अधिकांश वृद्धि गर्मियों के दौरान बिजली की बढ़ती मांग से प्रेरित थी।
आंकड़ों के मुताबिक 2023 में गर्मियों के दौरान बढ़ते तापमान की वजह से देश में बिजली की अधिकतम मांग (पीक डिमांड) 41 फीसदी बढ़ गई। वहीं यदि विभिन्न राज्यों में देखें तो 2023 में गर्मियों के दौरान वहां बिजली की मांग 16 से 110 फीसदी तक बढ़ गई।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि बढ़ते तापमान के कारण पावर ग्रिड पर दबाव बढ़ रहा है, जो जीवाश्म ईंधन के उपयोग में इजाफे की वजह बन रहा है। वैज्ञानिकों का भी कहना है कि जलवायु में आते बदलावों की वजह से हाल के वर्षों में भारत में लू की स्थिति पहले से कहीं बदतर हो गई है।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2023 में, बढ़ते तापमान की वजह से देश को तीन फीसदी अधिक जीवाश्म ईंधन का उपयोग करना पड़ा। गौरतलब है कि गर्मियों में बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन की मदद से 285.3 करोड़ यूनिट बिजली पैदा की गई। इसकी वजह से 20 लाख टन से अधिक कार्बन उत्सर्जन हुआ।
सालाना देखें तो भारत में 76 फीसदी बिजली जीवाश्म ईंधन, जबकि 21 फीसदी अक्षय ऊर्जा स्रोतों से पैदा हो रही है।
इस बारे में अध्ययन के प्रमुख विश्लेषक डॉक्टर मनीष राम का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "हम अक्सर सोचते हैं कि बिजली की मांग में एकाएक आया यह उछाल आर्थिक विकास से जुड़ा है, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है।“
“यह सही है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश में जिस तरह से विकास हुआ है, उसकी वजह से बिजली की मांग बढ़ी है। लेकिन विश्लेषण से पता चला है कि बढ़ते तापमान के कारण भी बिजली की पीक डिमांड में अतिरिक्त उछाल आ रहा है।"
चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ा रही है जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता
अध्ययन में बिजली की बढ़ती मांग और लू के बीच सीधा सम्बन्ध देखा गया। खासतौर पर शहरों और समृद्ध क्षेत्रों में यह संबंध कहीं ज्यादा स्पष्ट था। इसका मतलब है कि भीषण गर्मी के दौरान शहरी क्षेत्रों में लोग कहीं ज्यादा बिजली का उपयोग करते हैं।
वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण और कमजोर क्षेत्रों में बिजली की मांग में कोई खास अंतर नहीं देखा गया। शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसा इसलिए हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में या तो कूलिंग उपकरण अधिकांश लोगों की जेब पर भारी हैं या फिर उनके पास बिजली की पहुंच सीमित है।
डॉक्टर राम का कहना है कि, अपने इस अध्ययन में हमने बिजली की खपत के वार्षिक पैटर्न की तुलना राज्यों में प्रति घंटे तापमान में आ रहे बदलावों के साथ की है, ताकि यह देखा जा सके कि बढ़ती गर्मी किस तरह बिजली की मांग को बढ़ा रही है।"
क्लाइमेट ट्रेंड्स की एसोसिएट डायरेक्टर अर्चना चौधरी का कहना है, "भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के लिए योजना बनाते समय यह समझना महत्वपूर्ण है कि लू की घटनाएं बिजली उपयोग को कैसे प्रभावित कर रही हैं।" उनके मुताबिक बढ़ता तापमान बिजली की मांग को बढ़ा देता है, जिससे ग्रिड पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और लागत बढ़ जाती है।
उनका यह भी कहना है “जीवाश्म ईंधन का बढ़ता उपयोग, लू को और बदतर बना देगा। इसकी वजह से एक फीडबैक लूप बनता है, जिसमें बिजली की बढ़ती मांग से कहीं ज्यादा उत्सर्जन होता है जो जलवायु परिवर्तन को और बढ़ा सकता है।“
ऐसे में उनके मुताबिक इस चक्र को तोड़ने के लिए, बढ़ते तापमान और लू की वजह से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की वार्षिक रिपोर्ट से भी पता चला है कि 2024 में लू की वजह से बिजली की खपत बढ़ गई थी। आईईए के कार्यकारी निदेशक फातिह बिरोल ने चेताया है कि चरम मौसमी घटनाएं ऊर्जा के बुनियादी ढांचे पर आघात कर रही हैं, जो ऊर्जा प्रणालियों के लिए एक बड़ा खतरा है।
डॉक्टर राम के मुताबिक वैश्विक तापमान बढ़ रहा है क्योंकि हम अभी भी जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं। वहीं बढ़ते तापमान की वजह से बिजली की मांग बढ़ रही है, जिसे पूरा करने के लिए हम और अधिक जीवाश्म ईंधन जला रहे हैं।
ऐसा सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी हो रहा है। उनके मुताबिक गर्मी के मौसम में जीवाश्म ईंधन के बढ़ते उपयोग से हालात और बदतर हो जाते हैं। इससे चरम मौसमी घटनाओं का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाता है। बदले में इसकी वजह से देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए गंभीर समस्या पैदा हो जाती है।
रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश की गई है कि गर्मियों में बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन के बजाय स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे जीवाश्म ईंधन पर बढ़ती निर्भरता को कम किया जा सकेगा, जो उत्सर्जन में वृद्धि के लिए जिम्मेवार है। गौरतलब है कि जीवाश्म ईंधन का बढ़ता उपयोग वैश्विक तापमान के साथ-साथ भारत जैसे जलवायु-संवेदनशील देशों में तापमान में वृद्धि की वजह बन रहा है।
रिपोर्ट में ऊर्जा दक्ष उपकरणों का उपयोग करने के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल इमारतों के निर्माण पर भी जोर दिया गया है। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में समान रूप से ऊर्जा पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।