आर्कटिक में पिघलती बर्फ के साथ ध्रुवीय भालुओं के आवास तेजी से सिकुड़ रहे हैं, साथ ही इन जीवों को खाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

आर्कटिक में बढ़ते तापमान से ध्रुवीय भालुओं पर बढ़ रहा है बीमारियों का खतरा

रिसर्च से पता चला है कि जैसे-जैसे आर्कटिक क्षेत्र गर्म हो रहा है, ध्रुवीय भालुओं के वायरस, बैक्टीरिया और परजीवियों से संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ रहा है

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन के साथ ध्रुवीय भालुओं के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। बढ़ते तापमान के साथ आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ बड़ी तेजी से पिघल रही है नतीजन इनके आवास तेजी से सिकुड़ रहे हैं, साथ ही इन जीवों को खाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।

हालांकि समस्या सिर्फ इतनी ही नहीं है, एक नए वैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक में बढ़ते तापमान के साथ ध्रुवीय भालुओं पर बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है।

रिसर्च से पता चला है कि जैसे-जैसे आर्कटिक क्षेत्र गर्म हो रहा है, ध्रुवीय भालुओं के वायरस, बैक्टीरिया और परजीवियों से संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ रहा है। अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि इनके तीन दशक पहले तक इनसे संक्रमित होने की आशंका बेहद कम थी।

यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (यूएसजीएस) से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल प्लोस वन में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन के मुताबिक वैश्विक तापमान में होता इजाफा पर्यावरण में बदलाव की वजह बन रहा है। इसकी वजह से वायरस, बैक्टीरिया और परजीवियों के लिए आर्कटिक में रहने वाले वन्यजीवों को संक्रमित करने के नए अवसर पैदा हो रहे हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में पाए जाने वाले ध्रुवीय भालू जैसे शीर्ष शिकारी इन रोगजनकों के प्रसार से प्रभावित हो सकते हैं। गौरतलब है कि ध्रुवीय भालू ऐसे शिकारी हैं जो बड़े क्षेत्र में विचरण करते हैं। 

इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चुकची सागर क्षेत्र से एकत्र किए ध्रुवीय भालू के रक्त के नमूनों की जांच की है। यह नमूने पहली बार 1987 से 1994 के बीच और फिर तीन दशक बाद 2008 से 2017 में एकत्र किए गए थे।

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस बात के संकेत दिए हैं कि किस प्रकार ध्रुवीय भालुओं की यह बीमारी बर्फ के पिघलने से जुड़ी हो सकती है। यह जांच इसलिए की गई ताकि छह रोगजनकों के प्रति एंटीबॉडी का पता लगाया जा सके।

शोधकर्ताओं द्वारा हाल में लिए रक्त के नमूनों के विश्लेषण से पता चला है, कि भालुओं को वायरस, बैक्टीरिया या परजीवियों के कारण होने वाली पांच बीमारियों में से एक ने संक्रमित कर दिया था।

मतलब कि इनमें से पांच रोगजनक बाद के नमूनों में अधिक आम हो गए थे। इन रोगजनकों में टोक्सोप्लाजमोसिस और नियोस्पोरोसिस का कारण बनने वाले परजीवी, खरगोश बुखार और ब्रुसेलोसिस का कारण बनने वाले बैक्टीरिया और कैनाइन डिस्टेंपर वायरस शामिल थे।

बाकी दुनिया से चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है आर्कटिक

जांच से पुष्टि हुई है कि ये रोग पहले से कहीं ज्यादा तेजी से ध्रुवीय भालुओं में फैल रहे हैं। हालांकि रक्त के नमूनों से यह जानना कठिन था कि भालुओं के शारीरिक स्वास्थ्य पर इनका क्या प्रभाव पड़ा है। लेकिन वैज्ञानकों के मुताबिक इससे एक बात का तो पता चलता है कि पूरे आर्कटिक पारिस्थितिकी तंत्र में कुछ बदलाव हो रहा है। देखा जाए तो आर्कटिक में जिस तरह बर्फ पिघल रही है, उनसे इन संकटग्रस्त प्रजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो गया है।

शोधकर्ताओं ने उन कारकों पर भी गौर किया है जो भालुओं के इन रोगजनकों के संपर्क में आने के जोखिम को बढ़ाते हैं। उन्हें पता चला है कि इन बीमारियों के संपर्क में आने का जोखिम भालुओं के आहार पर निर्भर करता है और यह नर की तुलना में मादाओं भालुओं में अधिक होता है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि गर्भवती मादाएं अपने शावकों की देखभाल के लिए जमीन पर रहती हैं।

गौरतलब है कि आर्कटिक दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में लगभग चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे ध्रुवीय भालू अपने समुद्री बर्फ के आवासों को तेजी से खो रहे हैं। संक्रामक रोग वन्यजीवों और आर्कटिक समुदायों दोनों के लिए बढ़ती चिंता का विषय है। आर्कटिक समुदाय कभी-कभी भोजन के लिए ध्रुवीय भालुओं का शिकार करते हैं।

इस अध्ययन में जिन रोगाणुओं की जांच की है उनमें से कुछ रोग मनुष्यों में भी फैल सकते हैं। ऐसे में शोधकर्ताओं का कहना है कि ध्रुवीय भालुओं में बीमारी के लक्षणों की जांच करने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है, क्योंकि वे पहले ही जलवायु परिवर्तन से जुड़ी भोजन, आवास जैसी कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने इस बात की भी पुष्टि की है कि कुछ बीमारियों के मामले में उन ध्रुवीय भालुओं की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई, जिनमें इनके लक्षण देखे जाने की आशंका है। इससे पता चलता है कि आर्कटिक में बीमारियों के फैलने का तरीका बदल गया है।