जलवायु

खोज: बढ़ते तापमान का गेहूं के उत्पादन पर नहीं पड़ेगा फर्क

Dayanidhi

गेहूं दुनिया भर के सबसे महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थों में से एक है। यह लगभग 250 करोड़ से अधिक लोगों का मुख्य भोजन है, इससे दुनिया भर में खपत होने वाले प्रोटीन का 20 प्रतिशत हिस्से की पूर्ति होती है।

खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार किसी भी अन्य अनाज की तुलना में गेहूं सबसे अधिक कैलोरी की आपूर्ति करता है, लेकिन बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण इसके उत्पादन पर असर पड़ रहा है। इसके चलते वैज्ञानिकों ने गेहूं की कुछ ऐसी किस्मों का पता लगाया है, ज्यादा तापमान में भी उनके उत्पादन पर असर नहीं पड़ता। इस अध्ययन में गेहूं के उत्पादन के साथ-साथ क्वालिटी पर भी फोकस किया गया।

दरअसल, पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र द्वारा 54 प्रकार के गेहूं का विश्लेषण किया गया। यह अंतरराष्ट्रीय शोध संगठन मेक्सिको में स्थित है। इस संगठन ने गेहूं और मक्का के आनुवांशिक सुधार के जीनोटाइप विकसित करने में 60 वर्षों से अधिक का समय बिताया है। यह शोध जर्नल ऑफ सिरीअल साइंस में प्रकाशित हुआ है।

इस शोध का उद्देश्य गेहूं का विश्लेषण कर इनमें से यह जानना है कि 54 प्रकार में से गेहूं की कौन सी ऐसी किस्म है, जो तापमान अधिक होने के बावजूद पर सबसे अधिक उत्पादक साबित हो सकती हैं। शोध के प्रमुख शोधकर्ता कार्लोस गुज़मैन के अनुसार, अध्ययन से पता चला कि 54 में से 10 जीनोटाइप गेहूं अधिकतम तापमान का दबाव सहन कर सकते हैं और उनके उत्पादन पर ज्यादा तापमान का असर नहीं पड़ता। 

ये जीनोटाइप गेहूं फरवरी माह में सीईएनईबी प्रयोगात्मक शोध संस्थान सोनोरा, मैक्सिको में उगाए गए थे। यहां की जलवायु रेगिस्तानी होती है। फरवरी में गेहूं लगाने का सीजन नहीं होता, बल्कि तीन माह पहले लगाया जाता है, लेकिन एक प्रयोग के तौर पर ऐसा किया गया। 

यह शोध केवल गेहूं की किस्मों पर केंद्रित किया गया था, बल्कि अनाज की गुणवत्ता पर भी निर्भर करता है। एक ऐसा कारक जो प्रोटीन की मात्रा और गुणवत्ता पर निर्भर करता है और यह एक महत्वपूर्ण तत्व है जब अनाज को ब्रेड और पास्ता जैसे उत्पाद बनाने में उपयोग किया जाता है।

अब शोध के परिणाम के बाद इन 10 किस्मों के बारे में उन देशों को बताया जाएगा, जहां तापमान सामान्य से काफी अधिक रहता है और आने वाले समय में तापमान और अधिक बढ़ सकता है। इससे इन देशों में गेहूं के उत्पादन पर फर्क नहीं पड़ेगा और वहां के लोगों को अनाज की दिक्कत नहीं होगी।