जलवायु

एक डिग्री तापमान बढ़ने से 5 फीसदी कम हो सकता है आर्थिक विकास: अध्ययन

Dayanidhi

ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में हो रहे बदलाव से दुनिया भर के आर्थिक विकास को खतरा है। वैज्ञानिकों ने सोमवार को एक रिपोर्ट के माध्यम से चेतावनी दी है कि जलवायु अस्थिरता अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।

जीवाश्म ईंधनों के जलने से होने वाले जलवायु परिवर्तन से पूरी पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे भयंकर सूखा, हीटवेव, बाढ़ और अतिवृष्टि होने के आसार बढ़ जाते है।

कोलंबिया विश्वविद्यालय के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) और ग्लोबल कॉमन्स एंड क्लाइमेट चेंज पर मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने कहा कि दिन के तापमान में उतार-चढ़ाव के प्रभाव के बजाय अध्ययनों में अक्सर वार्षिक औसत तापमान को देखा जाता है।

पीआईके के सह-अध्ययनकर्ता एंडर्स लीवरमैन ने कहा कि बदलती जलवायु के कारण अप्रत्याशित प्रभाव पड़ते हैं, क्योंकि उनके साथ सामंजस्य स्थापित करना कठिन हैं, तेजी से होने वाले बदलाव लोगों के कामों को लंबे समय तक अलग तरह से प्रभावित करते हैं।

दिन के तापमान में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रभाव

किसानों और दुनिया भर में व्यवसाय करने वालों ने जलवायु परिवर्तन के साथ सामंजस्य स्थापित करना शुरू कर दिया है। लेकिन तब क्या होगा जब यदि मौसम अधिक अनिश्चित और अप्रत्याशित हो जाए?

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्ययन में दुनिया भर में 1,500 से अधिक क्षेत्रों से संबंधित क्षेत्रीय आर्थिक आंकड़ों के साथ 1979 और 2018 के बीच दिन के तापमान में उतार-चढ़ाव की तुलना की। उन्होंने पाया कि तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस के अतिरिक्त बदलाव आने से क्षेत्रीय विकास दर में औसतन 5 प्रतिशत की कमी आती है।

अध्ययनकर्ता ने बताया कि हम मौसमी तापमान के अंतर को किसी दिए गए वर्ष के अधिकतम और न्यूनतम मासिक तापमान के अंतर के ऐतिहासिक औसत के रूप में परिभाषित करते हैं।

 गरीब देशों में रहने वाले लोग सबसे अधिक प्रभावित हुए

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि इन रोज के तापमान में होने वाले बदलावों से प्रभावित अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्सों में फसल की पैदावार, मानव स्वास्थ्य और बिक्री पर प्रभाव पड़ा।  लीवरमैन ने कहा नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन की वास्तविक लागत पर चर्चा करते समय इसे ध्यान में रखना होगा।

लियोन वेन्ज ने बताया कि कनाडा या रूस जैसी अर्थव्यवस्थाएं, जहां औसत मासिक तापमान एक वर्ष के भीतर 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक बदलता है, लैटिन अमेरिका या दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों की तुलना में हर दिन के तापमान संबंधी अस्थिरता का सामना करने में ये बेहतर पाए गए, जहां तापमान 3 डिग्री सेल्सियस कम हो सकता है।

यहां तक कि गरीब देशों की अर्थव्यवस्थाएं अधिक प्रभावित होती हैं, समृद्ध देशों में जब रोज के तापमान में उनके समकक्षों की तुलना में उतार-चढ़ाव अधिक होता है।

2015 में दुनिया भर के देशों ने तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और यदि संभव हो तो 1.5 डिग्री सेल्सियस करने का वादा किया था। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान सलाहकार पैनल, आईपीसीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान का 1.5 डिग्री सेल्सियस होना एक सुरक्षित सीमा मानी जा सकती है। 

यूरोपीय संघ के कोपर्निकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने कहा है कि 2015 के बाद से छह सबसे गर्म साल दर्ज किए गए हैं। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि अभी भी हमने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगाई तो इसके परिणाम बेहद खतरनाक होंगे।