औद्योगिक क्रांति के बाद से वैश्विक सतह के तापमान में 0.74 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है और वर्ष 2100 तक और 1.8 डिग्री से 3.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का पूर्वानुमान लगाया है। बढ़ते तापमान के साथ निचले स्तरों की ओजोन सांद्रता दोगुनी से अधिक हो गई है।
जलवायु के बढ़ते तापमान से नमी बढ़ जाती है जिससे पौधों की वृद्धि अधिक हो सकती है। लेकिन अक्सर यह जैविक कार्बन के माइक्रोबियल के अपघटन या टूटने को बढ़ाता है जिससे मिट्टी से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) वातावरण में उत्सर्जित हो जाती है।
बढ़ता तापमान और ओजोन का बढ़ता स्तर जलवायु परिवर्तन की वृद्धि में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके चलते सोयाबीन तथा कई तरह के फसलों की जड़ों पर इनका हानिकारक प्रभाव पड़ता है। मिट्टी में साथ में रहने वाले सूक्ष्मजीवों के साथ इनका संबंध होता है और पौधे कार्बन को अलग करते हैं।
अध्ययन से पता चलता है कि पौधों के जमीन के ऊपरी भाग में कुछ बदलाव दिखते हैं, लेकिन पौधों के जमीन के अंदर वाले भागों पर तापमान और ओजोन का बुरा प्रभाव पड़ता है। जिसमें पौधों के कार्बन धारण करने की क्षमता घट जाती है, जो कि ग्रीनहाउस गैस के रूप में वातावरण में निकल जाती है।
उत्तरी कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी (एनसी) के शोधकर्ताओं ने कुछ जमीन के अंदर रहने वाले महत्वपूर्ण जीवों जैसे अर्बस्कुलर माइकोरिज़ल कवक (एएमएफ) के साथ बढ़ते तापमान और ओजोन के स्तर में वृद्धि के परस्पर क्रिया की जांच की। यह मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को रोककर जमीन के अंदर कार्बन को बनाएं रखने वाले रासायनिक क्रिया को बढ़ावा देते हैं। जिससे पदार्थों के विघटित होने से निकलने वाली कार्बन जमीन के अंदर ही रुक जाती है।
एनसी में प्लांट पैथोलॉजी के प्रोफेसर शुजिन हू ने कहा कि कार्बन को अलग करने की क्षमता मिट्टी की उत्पादकता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब जमीन के अंदर से कार्बन निकलती है तो यह ग्रीनहाउस गैस जैसे हानिकारक गैसों को बढ़ाने के साथ-साथ इनका खतरनाक असर भी पड़ता है।
जमीन पर उगने वाले लगभग 80 फीसदी पौधों की जड़ों में मौजूद, अर्बस्कुलर माइकोरिज़ल कवक (एएमएफ) का पौधों के साथ एक फायदा पहुंचाने वाला रिश्ता होता है। एएमएफ पौधों से कार्बन लेता है और नाइट्रोजन और अन्य उपयोगी मिट्टी के पोषक तत्व प्रदान करता है जो पौधों को बढ़ने और विकसित करने के लिए आवश्यक होते हैं।
अध्ययनकर्ताओं ने लगभग 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़े हुए हवा के तापमान के साथ सोयाबीन के खेत तथा साथ ही ओजोन के उच्च स्तर वाले खेत में, बिना किसी बदलाव के नियंत्रित जमीन की स्थापना की। प्रयोगों के परिणाम से पता चला कि बढ़े हुए तापमान और ओजोन के स्तर में वृद्धि से सोयाबीन की जड़ें पतली हो जाती हैं क्योंकि वे आवश्यक पोषक तत्वों को प्राप्त करने के लिए संसाधनों को बचाते हैं।
हू ने कहा सोयाबीन की खेती अक्सर ओजोन के प्रति संवेदनशील होती है। अध्ययन में इस बात का दावा किया गया है कि पिछले एक दशक में अमेरिका के कुछ हिस्सों में ओजोन का स्तर कुछ हद तक स्थिर रहा है या कम हुआ है, लेकिन चीन जैसे तेजी से औद्योगीकरण वाले क्षेत्र में यह नाटकीय रूप से बढ़ा है।
हू ने कहा बढ़ता हुआ ओजोन का स्तर और तापमान बहुत सी फसलों के लिए खतरनाक है। यह न केवल सोयाबीन बल्कि बहुत सारे फसलों की प्रजातियों के लिए यह खतरनाक होता है। ओजोन और बढ़ता तापमान पौधों को कमजोर बनाते हैं। पौधे पोषक तत्वों को अधिकतम करने की कोशिश करते हैं, इसलिए उनकी जड़ें पतली और लंबी हो जाती हैं क्योंकि उन्हें संसाधनों के लिए पर्याप्त मात्रा में मिट्टी का दोहन करने की आवश्यकता होती है।
इस कमजोरी के परिणामस्वरूप एएमएफ और जड़ और कवक हाइपल में कमी आती है, जो अपघटन को बढ़ाता है और कार्बन को अलग करने की प्रक्रिया को और अधिक कठिन बना देता है। इन व्यापक घटनाओं का जमीन के अंदर गहरा प्रभाव हो सकता है, हालांकि कुछ मामलों में पौधों के तने सामान्य दिखाई देते हैं।
हू ने कहा कि में यह देखकर हैरान था कि पौधों के तनों पर बढ़ते तापमान और ओजोन के तनाव का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं हुआ था। नियंत्रित और प्रायोगिक दोनों खेतों में पौधों की पत्तियों का बायोमास लगभग समान था। हू ने आगे कहा कि बढ़ता तापमान और ओजोन ने अर्बस्कुलर माइकोरिज़ल कवक (एएमएफ) के प्रकार को बदल दिया है जो सोयाबीन के पौधों के विकास में अहम भूमिका निभाता है।
साइंस एडवांस में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि ग्लोमस नामक एएमएफ प्रजाति के स्तर में तापमान अधिक और ओजोन के साथ कमी आई है, जबकि पैराग्लोमस नामक एक प्रजाति में वृद्धि हुई है।
हू ने कहा ग्लोमस कार्बनिक पदार्थ को माइक्रोबियल अपघटन या टूटने से बचाता है जबकि पैराग्लोमस पोषक तत्वों को अवशोषित करने में अधिक कुशल है। हमें उम्मीद नहीं थी कि ये मिट्टी के सूक्ष्मजीवों इस तरह से बदल जाएंगे।