जलवायु

कॉप-28 शुरू होने से पहले आई लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट में सामने आए डरावने आंकड़े

Dayanidhi

द लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट में कहा गया है कि, दुनिया भर में बढ़ती गर्मी से मनुष्य का स्वास्थ्य कई तरीकों से प्रभावित हो रहा है। अब इन सभी तरीकों को समझने की बढ़ती मांग को देखते हुए, अगले सप्ताह से शुरू होने वाली संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता (कॉप-28) में पहला दिन इस मुद्दे को समर्पित किया गया है।

भयंकर गर्मी, वायु प्रदूषण और घातक संक्रामक रोगों का बढ़ता प्रसार ऐसे कुछ कारण हैं जिनकी वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जलवायु परिवर्तन को मानवता के सामने स्वास्थ्य संबंधी सबसे बड़ा खतरा बताया है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभावों को रोकने और जलवायु परिवर्तन से संबंधित लाखों मौतों को रोकने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक सीमित किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, जलवायु में बदलाव के प्रभावों से कोई भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं होगा। विशेषज्ञों का अनुमान है कि सबसे अधिक खतरा बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों, प्रवासियों और कम विकसित देशों के लोगों को होगा, जिन्होंने धरती को गर्म करने वाली ग्रीनहाउस गैसों का सबसे कम उत्सर्जन किया है।

तीन दिसंबर को, दुबई में होने वाले कॉप 28, जलवायु वार्ता में पहली बार आयोजित की जाने वाली 'स्वास्थ्य दिवस' ​​की मेजबानी की जाएगी।

भयंकर गर्मी का बुरा प्रभाव

विशेषज्ञों के द्वारा इस साल के रिकॉर्ड पर सबसे गर्म होने की आशंका जताई गई है। और जैसे-जैसे दुनिया गर्म होती जा रही है और भी अधिक लगातार और तीव्र लू या हीटवेव आने के आसार बढ़ रहे हैं।

द लांसेट काउंटडाउन रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में लोग पिछले साल औसतन 86 दिनों तक जानलेवा गर्मी के संपर्क में रहे। इसमें कहा गया है कि 1991 से 2000 और 2013 से 2022 तक गर्मी से मरने वाले 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 85 प्रतिशत तक बढ़ गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, 2050 तक, दो डिग्री सेल्सियस के वार्मिंग परिदृश्य के तहत हर साल पांच गुना से अधिक लोग गर्मी से मारे जाएंगे।

रिपोर्ट में इस बात की भी चिंता जाहिर की गई है कि, सूखा अधिक पड़ने से भुखमरी भी बढ़ेगी। सदी के अंत तक दो डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की स्थिति में, 2050 तक 52 करोड़ से अधिक लोग मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा का अनुभव करेंगे।

इस बीच, तूफान, बाढ़ और आग जैसी अन्य चरम मौसम की घटनाएं दुनिया भर में लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बनी रहेंगी।

वायु प्रदूषण

दुनिया की लगभग 99 प्रतिशत आबादी वायु प्रदूषण के लिए डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों से अधिक प्रदूषित हवा में सांस लेती है

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन से बाहरी वायु प्रदूषण के कारण हर साल 40 लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है।

इससे सांस संबंधी बीमारियों, स्ट्रोक, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर, मधुमेह और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है, जिसकी तुलना तंबाकू से की गई है।

आंशिक नुकसान पीएम 2.5 माइक्रोपार्टिकल के कारण होता है, जो अधिकतर जीवाश्म ईंधन से होते हैं। लोग इन छोटे कणों को सांस के जरिए अपने फेफड़ों में ले जाते हैं, जहां से वे रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं।

जबकि वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी, जैसे कि इस महीने की शुरुआत में भारत की राजधानी नई दिल्ली में देखी गई चरम सीमा, सांस संबंधी समस्याओं और एलर्जी को बढ़ाती है, लंबे समय में इसे और भी अधिक हानिकारक माना जाता है।

लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट में पाया गया कि, 2005 के बाद से जीवाश्म ईंधन के कारण वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 16 प्रतिशत की गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण कोयला जलाने के प्रभाव को कम करने के प्रयास हैं।

संक्रामक रोग

बदलती जलवायु का मतलब है कि मच्छर, पक्षी और स्तनधारी अपने पिछले निवास स्थान से हटकर दूसरी जगहों पर घूमेंगे, जिससे वे अपने साथ संक्रामक रोगों का खतरा फैला सकते हैं

मच्छरों के कारण होने वाली बीमारियां जो जलवायु परिवर्तन के कारण फैलने का अधिक खतरा पैदा करती हैं उनमें डेंगू, चिकनगुनिया, जीका, वेस्ट नाइल वायरस और मलेरिया शामिल हैं।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि, दो डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर अकेले डेंगू के फैलने की क्षमता 36 प्रतिशत बढ़ जाएगी।

तूफान और बाढ़ के कारण पानी जमा हो जाता है जो मच्छरों के लिए प्रजनन स्थल होते हैं और हैजा, टाइफाइड और दस्त जैसी पानी से संबंधित बीमारियों का खतरा भी बढ़ाते हैं।

वैज्ञानिकों ने यह भी डर जताया है कि, नए क्षेत्रों में भटकने वाले स्तनधारी एक-दूसरे के साथ बीमारियां साझा कर सकते हैं, हो सकता है नए वायरस बन जाए, जो फिर मनुष्यों में फैल सकते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य

मनोवैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि, हमारी गर्म होती धरती ने वर्तमान और भविष्य के बारे में चिंता, अवसाद और यहां तक कि तनाव को भी बढ़ा दिया है, जबकि पहले से ही इन विकारों से लोग जूझ रहे हैं।