जलवायु

दुनिया भर में 50 करोड़ लोगों पर असर डालेगी बढ़ती गर्मी: अध्ययन

जनसंख्या का आकार भविष्य के लू चलने की घटनाओं की संख्या पर असर डालता है, एक बड़ी आबादी खपत और यातायात में होने वाली वृद्धि के रूप में उत्सर्जन को बढ़ाती है।

Dayanidhi

आज के दौर में जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है, भारत और पाकिस्तान द्वारा वसंत ऋतु के दौरान अत्यधिक तापमान की जानकारी दी गई। लू चलने की घटनाओं के भविष्य में और बढ़ने के आसार हैं। जिससे हर साल 50 करोड़ लोग प्रभावित होंगे।

गर्मी के कारण भोजन की कमी, मृत्यु और पलायन के बढ़ने के आसार हैं। यह तब और अधिक बढ़ जाता है जब गर्मी उस स्तर तक पहुंच जाती है जब मनुष्य इसे सहन नहीं कर पाता है।

बढ़ती गर्मी को लेकर इस अध्ययन के माध्यम से गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने आने वाली शताब्दी के लिए एक भयावाह तस्वीर पेश की है।

कुछ समय पहले भारत और पाकिस्तान में 40 डिग्री से अधिक तापमान वाली लू चल रही थी, जो कि चरम मौसम का जानलेवा रूप हैं। अर्थ फ्यूचर नामक पत्रिका के एक नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने वर्ष 2100 तक दक्षिण एशिया में हीट वेव या लू के परिणामों के लिए विभिन्न परिदृश्यों की रूपरेखा तैयार की है।

शोधकर्ताओं ने बताया की उन्होंने अत्यधिक गर्मी और जनसंख्या के बीच एक कड़ी स्थापित की है। सबसे अच्छे परिदृश्य में, हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में सफल रहते हैं, जहां हर साल लगभग 2 बार लू की घटनाएं हो रही थीं, जिससे लगभग 20 करोड़ लोग लू के सम्पर्क में आ रहे थे।

डेलियांग चेन ने कहा अगर देश ग्रीनहाउस गैस को बढ़ाते रहे, जैसा कि वे अभी कर रहे हैं, हर साल लू की घटनाएं 5 बार तक बढ़ सकती हैं, 50 करोड़ से अधिक लोग सदी के अंत तक इसकी चपेट में आ सकते हैं। चेन गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय में भौतिक मौसम विज्ञान के प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता हैं।

जनसंख्या वृद्धि से बढ़ता है उत्सर्जन

अध्ययन में कहा गया कि भारत में गर्मी को लेकर सिंधु और गंगा नदियों के किनारे विशाल मैदानों की पहचान की गई है। यह अधिक तापमान वाला क्षेत्र है और यहां घनी आबादी रहती है। चेन बताते हैं कि लू चलने और जनसंख्या के बीच की कड़ी दोनों दिशाओं में काम करती है।

जनसंख्या का आकार भविष्य के लू चलने की घटनाओं की संख्या को प्रभावित करता है। खपत और यातायात में वृद्धि के रूप में एक बड़ी आबादी उत्सर्जन को बढ़ाती है। शहरी नियोजन भी महत्वपूर्ण है। यदि लू चलने की घटनाओं से कम प्रभावित क्षेत्रों में नए शहर और गांव बनाए जाएं, तो प्रभावित लोगों की संख्या को कम किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि हमें उम्मीद है कि भारत और पाकिस्तान जैसे क्षेत्र के नेता हमारी इस रिपोर्ट को पढ़ेंगे और इसके बारे में मंत्रणा करेंगे। हमारे गणना मॉडल में, लू की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या काफी बड़ी है। वास्तविक संख्या इस बात पर निर्भर करेगी, कि ये देश अपने शहरी नियोजन में कौन से रास्ते चुनते हैं।

चेन कहते हैं कि यह भविष्य की ग्रीनहाउस गैस और कण उत्सर्जन पर निर्भर है, जो यह निर्धारित करेगा कि वास्तव में कितने लोग लू की चपेट में आएंगे। यदि हम उत्सर्जन को कम करते हैं तो हम भीषण लू के चपेट में आने वाली आधे से अधिक आबादी को कम कर सकते हैं, ताकि हम पेरिस समझौते में लक्ष्य तक पहुंचें। जलवायु में हो रहे बदलाव को कम करने और इसके अनुरूप होने दोनों उपायों से बहुत बड़ा फर्क पड़ सकता है।

शरणार्थियों की संख्या बढ़ने का खतरा

भारत और पाकिस्तान में लू चलने की घटनाएं पहले से ही बड़ी समस्या पैदा कर रही हैं। सूखे और गर्मी के कारण किसानों को भारी नुकसान हुआ है, जिससे उनकी गेहूं की फसल खराब हो गई है। अत्यधिक गर्मी से बचने के लिए उन्होंने फसलों को अधिक ऊंचाई पर उगना शुरू कर दिया है। लेकिन इस कदम से बड़े पैमाने पर पेड़ साफ हो गए हैं, पेड़ जिन्होंने तापमान कम करने में अहम भूमिका निभाई है।

आबादी के बढ़ने के साथ, भूमि उपयोग भी बढ़ता है, जो अपने आप में तापमान को और बढ़ा सकता है। हर लू चलने की घटना के परिणामस्वरूप मृत्यु दर में वृद्धि होगी और उत्पादकता में कमी आएगी, क्योंकि कुछ ही लोग 45 डिग्री की गर्मी में काम कर सकते हैं। उन्होंने कहा यह चिंता की बात है अगर कुछ नहीं किया जाता है, यह अंततः पलायन की एक बड़ी भारी संख्या को जन्म दे सकता है।