यूरोप के इतिहास में पिछली गर्मियां सबसे ज्यादा गर्म थी। जब तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। वैज्ञानिकों के मुताबिक 2021 की गर्मियों में यूरोप का तापमान पिछले तीन दशकों के औसत तापमान से एक डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था।
इस बारे में यूरोपियन यूनियन की कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस द्वारा जारी रिपोर्ट “यूरोपियन स्टेट ऑफ द क्लाइमेट 2021” के हवाले से पता चला है कि 2021 में जहां बसंत का मौसम औसत से कहीं ज्यादा ठंडा था वहीं गर्मियों के दौरान तापमान अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था।
सिसली में 48.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था पारा
इस दौरान यूरोप के कई इलाकों में लम्बे समय तक चलने वाली हीटवेव के मामले भी सामने आए हैं। जिसके चलते यूरोप में तापमान के कई रिकॉर्ड भी सामने आए हैं। ऐसा ही कुछ सिसिली में भी दर्ज किया गया था जहां तापमान 48.8 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड स्तर पर चला गया था।
इस बढ़ते तापमान का ही नतीजा था जब पिछले साल साइबेरिया, स्पेन, ग्रीस, इटली, अल्जीरिया और तुर्की में कई जगह जंगलों में भीषण आग लगने की घटनाएं सामने आई थी। इस आगे के चलते पुर्तगाल में 7,500 हेक्टेयर और फ्रांस में 6,500 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ था। अनुमान है कि जुलाई और अगस्त 2021 के बीच मेडिटरेनीयन बेसिन के आसपास के देशों में करीब 800,000 हेक्टेयर क्षेत्र इस दावाग्नि की भेंट चढ़ गया था।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस आग के कारण पैदा हुए प्रदूषण से भारी बारिश की संभावनाएं बढ़ गई थी, जिसके कारण पिछले साल जुलाई में बेल्जियम और जर्मनी में भीषण बाढ़ आई थी। इतना ही नहीं पूर्वी भूमध्य और बाल्टिक सागर के कुछ हिस्सों में जून और जुलाई के दौरान समुद्र की सतह का औसत तापमान 1992 के बाद से सबसे ज्यादा था। जहां गर्मी के महीनों में पारा औसत से 5 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा दर्ज किया गया था।
इतना है नहीं कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने जानकारी दी है कि 2021 में पश्चिमी और मध्य यूरोप के कुछ हिस्सों हवा की वार्षिक रफ़्तार 1979 के बाद से सबसे कम थी, जिसकी वजह से पवन ऊर्जा की अनुमानित क्षमता में कमी आई है। गौरतलब है कि यूरोप में पवन ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है जिसे बिजली उत्पादन से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए एक विकल्प के रूप में माना जा रहा है।
वैश्विक तापमान में भी दर्ज की गई थी 0.84 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि
यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर 2021 इतिहास का छठा सबसे गर्म वर्ष था। जब तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से 0.84 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था।
1880 से देखें तो पृथ्वी का औसत तापमान 0.08 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है। वहीं 1981 के बाद से यह दर दोगुनी से हो चुकी है, जिसे 0.18 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक दर्ज किया गया है। गौरतलब है कि ऐसा ही कुछ मार्च 2022 में भी देखने को मिला था जब तापमान सामान्य से 1.31 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था। इस लिहाज से देखें तो यह इतिहास का पांचवा सबसे गर्म मार्च था।
देखा जाए तो साल-दर-साल तापमान और जलवायु के इन आंकड़ों में आता बदलाव इस बात को पुख्ता करता है। हमारे ग्रह की जलवायु बड़ी तेजी से बदल रही है। जिसका असर बाढ़, तूफान, सूखा, दावाग्नि आदि के रुप में हर रोज हमारे सामने आ रहा है। यदि हमने अभी इसपर अभी गौर नहीं किया तो भविष्य में यह आपदाएं कहीं ज्यादा विकराल रूप ले लेगी और शायद तब हमें इनसे बचने का मौका भी न मिले।