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लद्दाख में तेजी से ग्लेशियर खिसकने से बन सकती हैं तीन झीलें: अध्ययन

अध्ययन के मुताबिक, यदि ग्लेशियर अपनी वर्तमान गति से पिघलना जारी रखता है, तो इससे तीन झीलों का निर्माण हो सकता है

Dayanidhi

लद्दाख में ग्लेशियरों को लेकर किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि, ग्लेशियरों के पीछे हटने से न केवल पानी की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, बल्कि यह क्षेत्र अधिक आपदाग्रस्त भी हो जाएगा।

भारत के लद्दाख हिमालय के ग्लेशियर रिट्रीट, डायनामिक्स एंड बेड ओवरडीपनिंग्स ऑफ पार्काचिक ग्लेशियर शीर्षक वाला यह अध्ययन हाल ही में, जर्नल एनल्स ऑफ ग्लेशियोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। 

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के नए अध्ययन से पता चला है कि लद्दाख में सुरु नदी घाटी के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक हाल के दशकों में बहुत तेज गति से पीछे हट रहा है। यदि ग्लेशियर अपनी वर्तमान गति से पिघलना जारी रखता है, तो इससे तीन झीलों का निर्माण हो सकता है, जिससे क्षेत्र में ग्लेशियर से बनी झील के फटने से बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा

सुरू नदी घाटी में पाराचिक ग्लेशियर 53 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है, जिसकी लंबाई लगभग 14 किलोमीटर है। संस्थान द्वारा एकत्र उपग्रह इमेजरी और रिमोट सेंसिंग डेटा के अनुसार, 1971 और 1999 के बीच, ग्लेशियर हर साल औसतन दो मीटर की दर से पीछे हट गया। 1999 और 2021 के बीच, ग्लेशियर के पीछे हटने की गति काफी तेज हो गई, जो प्रति वर्ष 12 मीटर की दर तक बढ़ गई। 2015 और 2021 के बीच किए गए अतिरिक्त क्षेत्र सर्वेक्षण प्रति वर्ष 20 मीटर की और भी अधिक गिरावट दर्शाते हैं।

अध्ययन के हवाले से वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक ने कहा कि, ग्लेशियर का पीछे हटना एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन हाल के वर्षों में हम जिस तेजी से पीछे हटते हुए देख रहे हैं, वह चिंता का विषय है और इसे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से जोड़ा जा सकता है। ग्लेशियर इस क्षेत्र के लिए पानी की मुख्य आपूर्ति करता  हैं, इसलिए यदि यह पीछे हटना जारी रखता है, तो इससे पानी की कमी की समस्या और गंभीर हो जाएगी।

पाराचिक ग्लेशियर पश्चिमी हिमालय की दक्षिणी जास्कर पर्वतमाला में स्थित है। सुरु नदी सिंधु की एक सहायक नदी है और इसे लद्दाख में कारगिल जिले के लिए पानी का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है, जहां पहले से ही कुछ हिस्सों को सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

अध्ययन के मुताबिक, वाडिया इंस्टीट्यूट ने पाराचिक ग्लेशियर के उपग्रह छवि और क्षेत्र के सर्वेक्षण का उपयोग किया। ग्लेशियरों के खिसकने से बनने वाली झीलों की गहराई, पानी की मात्रा और ग्लेशियर की अन्य स्थलाकृतिक का अनुमान लगाने के लिए, हिमालय ग्लेशियर थिकनेस मैपर (हाईथिम) नामक एक उपकरण का उपयोग किया।

अध्ययन में कहा गया है, 2015 के बाद से, क्षेत्र में यह देखा गया कि ग्लेशियर का अगला भाग लगातार टूट रहा है और बर्फ गिरने की घटनाएं नियमित रूप से हो रही हैं। 2017 में, ग्लेशियर का अगला भाग, जिसे ग्लेशियर का "थूथन" कहा जाता है, टूट गया और एक अस्थायी झील बन गई जो बाद में टूट गई। एक बर्फ की गुफा, जो 2015 में ग्लेशियर के मुहाने पर स्थित थी, 2018 तक वह ढह गई।

अध्ययन में कहा गया है कि पाराचिक ग्लेशियर के अवलोकन, विशेष रूप से 2015 के बाद, ग्लेशियर के नष्ट होने में तेजी से बढ़ोतरी के बारे में बताते हैं। ग्लेशियर की कई विशेषताओं में पीछे हटने का पता चला है। दो विशेषताएं हैं, पहला यह है कि ग्लेशियर पीछे हट रहा है, दूसरा यह है कि बर्फ गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर बढ़ रही है, जिससे ग्लेशियर का द्रव्यमान कम हो गया है।

सुरू नदी घाटी, जहां पाराचिक ग्लेशियर स्थित है, यहां 252 ग्लेशियर हैं जो नदी के जलग्रहण क्षेत्र के 11 फीसदी हिस्से को कवर करते हैं। पहले किए गए शोध में पाया गया कि सुरू नदी घाटी क्षेत्र में बढ़ते तापमान और कम वर्षा के कारण ग्लेशियर अपना द्रव्यमान संतुलन खो रहे थे, जो आमतौर पर दिसंबर से फरवरी तक सर्दियों तक रहता है।

अध्ययन में इस बात का पता लगाया गया कि, क्या पाराचिक ग्लेशियर पीछे हटना जारी रखता है, एक मॉडल सिमुलेशन से पता चलता है कि इसके चारों ओर तीन झीलें बनने की आशंका है, जिनकी गहराई 34 से 84 मीटर तक हो सकती है। 2020 के एक अध्ययन में पाया गया कि लद्दाख क्षेत्र में 192 से अधिक ग्लेशियर से बनी झीलें हैं, जिनमें लगभग 6.1 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी है।

2014 में ग्या ग्लेशियर से ग्लेशियल झील में आई बाढ़ के कारणों का पुनर्निर्माण करते हुए, निष्कर्ष निकाला गया कि यह खतरनाक है और खतरों की अनदेखी ने बुनियादी ढांचे और आजीविका पर विनाशकारी प्रभावों में बढ़ोतरी कर सकता है।

अध्ययन में कहा गया है, उच्च स्थानिक रिज़ॉल्यूशन उपग्रह इमेजरी का उपयोग करके ग्लेशियर से बनने वाली झीलों की सूची तैयार करने की तत्काल जरूरत  है जिसमें छोटी झीलें भी शामिल हैं। एक से अधिक मानदंड, दिशा निर्देश हर झील के खतरे को व्यवस्थित रूप से वर्गीकृत करने में मदद कर सकते हैं।