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जलवायु

पंजाब में बाढ़: भाखड़ा और पोंग बांधों की भूमिका पर सवाल

दूसरे राज्यों के लिए पानी जमा करने से भाखड़ा और पोंग बांध की क्षमता कम हो जाती है

Amandeep Sandhu

पंजाब में जानलेवा बाढ़ के कई कारण हैं, जिनमें से एक कानूनी है। सच यह है कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) केंद्र सरकार के विद्युत मंत्रालय के नियंत्रण में है। यह बोर्ड भाखड़ा बांध पर सतलुज और पोंग बांध पर बीस की निगरानी करता है। वहीं, पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड रावी नदी पर रंजीत सागर बांध का ख्याल रखता है। भाखड़ा और पोंग बांध में ज्यादा पानी जमा रहता है क्योंकि हरियाणा और राजस्थान जैसे गैर-किनारे वाले राज्य इसका दावा करते हैं।

हरियाणा की बात करें तो यह दावा पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 की खंड 78 (भाखड़ा-नंगल और ब्यास प्रोजेक्ट) और खंड 79 (भाखड़ा प्रबंधन बोर्ड) की वजह से है। यह प्रावधान हरियाणा को पंजाब का उत्तराधिकारी राज्य मानते हैं और उसे पंजाब की नदियों का पानी देते हैं। लेकिन सतलुज हरियाणा की सीमा से कम से कम 100 किलोमीटर दूर है और चेनाब और रावी इससे भी उत्तर में हैं।

राजस्थान के मामले में, आजादी से पहले बीकानेर के राजा सर गंगा सिंह ने अपने लोगों के लिए बनाई नहर में पानी के लिए शुल्क लिया था। स्वतंत्रता के बाद यह शुल्क हटा दिया गया लेकिन पानी राजस्थान को मिलता रहा। दूसरे राज्यों के लिए पानी जमा करने से भाखड़ा और पोंग बांध की हिमाचल प्रदेश और निचले हिमालय से भारी पानी जमा करने की क्षमता कम हो जाती है। जब जलाशय खतरे के स्तर तक पहुंचते हैं, तो बड़े पैमाने पर पानी छोड़ा जाता है। ऐसा 1988, 1993, 2005, 2019, 2023 और 2025 में हुआ।

1973 में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पेश किया। इसमें केंद्र के भाखड़ा हेडवर्क्स पर अधिकार पंजाब को देने की मांग थी। हिमालय की बाढ़ मैदानों में होने की वजह से पंजाब बाढ़ का दर्द अच्छी तरह समझता है। न हरियाणा और न ही राजस्थान पंजाब की नदियों में योगदान देते हैं या बाढ़ और सूखे के नकारात्मक असर झेलते हैं। यह प्रस्ताव पंजाब के लिए ज्यादा अधिकार और श्रमिकों के हक की मांग भी करता था और ग्रीन रिवोल्यूशन मॉडल से अलग था। उस समय यह सरकार के लिए खतरा बन गया और इसे द्रोहपूर्ण दस्तावेज कहा गया। आज विपक्ष संघवाद की मांग करता है लेकिन पहले सत्ता में रही पार्टियों ने इसे रोक दिया था।

पंजाब पुनर्गठन अधिनियम की खंड 78 और 79 ने 1982 में सतलुज-यमुना लिंक नहर पर विवाद खड़ा कर दिया। अकाली दल ने इस परियोजना का विरोध किया। इसके बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ और पंजाब में दस साल तक हिंसा रही। आज भी पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच यह विवाद जारी है। खंड 78 में इसे सुलझाने के लिए दो साल का समय दिया गया था, लेकिन अब 59 साल हो चुके हैं। समय आ गया है कि केंद्र सरकार इसे अंतरराष्ट्रीय मान्य किनारे वाले अधिकारों के हिसाब से हल करे।

इसमें कोई शक नहीं कि हरियाणा और राजस्थान को पानी चाहिए। लेकिन यह जरूरी है कि पानी को किसी और संसाधन जैसे तेल और कोयला की तरह देखा जाए। हरियाणा और राजस्थान को पंजाब से पानी इस्तेमाल करने के लिए इसका भुगतान करना चाहिए। जैसे पंजाब अन्य राज्यों से संसाधन लेने पर भुगतान करता है।

(अमनीदीप संधू “पंजाब जर्नी थ्रू फॉल्ट लाइन्स” किताब के लेखक हैं)