जलवायु

हर साल भीषण गर्मी की वजह से आमदनी का पांच प्रतिशत नुकसान झेल रहा है गरीब किसान: एफएओ

भारत सहित 23 देशों पर एक लाख से अधिक ग्रामीण परिवारों पर किए गए सर्वे के बाद एफएओ ने रिपोर्ट जारी की

DTE Staff

भीषण गर्मी की वजह से खेती से होने वाली आमदनी में कमी आती है। ऐसा गरीब किसान के साथ ज्यादा होता है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भीषण गर्मी के दिनों में गैर गरीब किसान के मुकाबले गरीब किसान परिवारों की आमदनी में 2.4 प्रतिशत का नुकसान होता है, जो उनकी फसलों से होने वाली आय का 1.1 प्रतिशत और गैर कृषि आय का 1.5 प्रतिशत होता है।

एफएओ की यह रिपोर्ट भारत सहित दुनिया के 23 निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में एक लाख से अधिक परिवारों के सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि औसत दीर्घकालिक तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो ग्रामीण गरीब परिवारों को जलवायु-संवेदनशील कृषि पर अधिक निर्भर होने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जिससे कृषि या गैर कृषि से होने वाली उनकी आमदनी में कमी आएगी।

ऐसा इसलिए है क्योंकि गर्मी के संपर्क में आने पर गरीब परिवार बेहतर स्थिति वाले परिवारों की तुलना में अपने आय स्रोतों की विविधता को कम कर देते हैं। इसलिए, एक ओर, ग्रामीण आबादी कृषि में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से प्रभावित होगी, वहीं दूसरी ओर, उनके पास गैर-कृषि कार्यों में अधिक अवसर नहीं होंगे और उन्हें मौसम पर निर्भर कृषि पर निर्भर रहना होगा। रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, इससे कृषि से इतर आय में 33 प्रतिशत और 53 प्रतिशत की कमी आएगी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर आर्थिक स्थिति वाले परिवार गैर-कृषि क्षेत्रों में विविधता लाकर बढ़ते तापमान को अपना लेते हैं, लेकिन गरीब परिवार ऐसा नहीं कर सकते। इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति उनकी समग्र संवेदनशीलता बढ़ने की संभावना है।

एफएओ के इस विश्लेषण के मुताबिक अत्यधिक वर्षा के कारण हर दिन गरीब परिवारों की आय में गैर-गरीब परिवारों की तुलना में 0.8 प्रतिशत की कमी आती है, जो ज्यादातर गैर-कृषि आय में कमी के कारण होता है।

एफएओ की द अनजस्ट क्लाइमेट नाम की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे चरम मौसम की घटनाएं गरीब ग्रामीण परिवारों को असंगत रूप से प्रभावित करती हैं, जिससे उनकी आय में महत्वपूर्ण कमी आती है और इस प्रकार, मौजूदा आय असमानता बढ़ जाती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मी के कारण एक औसत वर्ष में गरीब परिवारों को संपन्न परिवारों की तुलना में उनकी कुल आय का 5 प्रतिशत और बाढ़ के कारण 4.4 प्रतिशत अधिक नुकसान सहना पड़ता है।

वास्तव में, मौसम की चरम घटनाओं के चलते गरीब ग्रामीण परिवारों को बचाव के लिए कई कदम उठाने पड़ेंगे, जिससे उनका खर्च बढ़ेगा और मजबूरी में उन्हें अपने पशु तक बेचने पड़ेंगे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बाढ़ और सूखे का सामना करने पर गरीब परिवार गैर-गरीब परिवारों की तुलना में कृषि में अपना निवेश कम कर देते हैं, क्योंकि खेती पर खर्च करने की बजाय अपनी तत्काल जरूरतों पर पैसा खर्च करना पड़ जाता है। यही वजह है कि आर्थिक रूप से संपंन ग्रामीण परिवारों की तुलना गरीब परिवार जलवायु परिर्वतन के प्रति अधिक संवेदनशील रहते हैं।

शोधकर्ताओं ने देखा कि बाढ़ की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में गैर गरीब परिवारों के मुकाबले गरीब परिवारों की आमदनी का अंतर लगभग 21 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष और सूखे की वजह से लगभग 20 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष रहता है।

इसी आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि बेमौसमी घटनाओं की वजह से असमानता और गरीबी कम करने के प्रयास असफल साबित हो सकते हैं।

बावजूद इसके राष्ट्रीय जलवायु नीतियों में गरीबों की चिंता बमुश्किल दिखाई देती हैं। इस रिपोर्ट में विश्लेषण किए गए 24 देशों के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) और राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (एनएपी) में 1 प्रतिशत से भी कम गरीब लोगों का उल्लेख किया गया है और ग्रामीण समुदायों में लगभग 6 प्रतिशत किसानों का उल्लेख दिखता है।