जलवायु

जलवायु परिवर्तन के कारण सन 2100 तक ध्रुवीय भालू हो जाएंगे विलुप्त

Dayanidhi

जलवायु परिवर्तन ध्रुवीय भालुओं को भूख से मरने के लिए विवश कर रहा है, जिसके कारण इनकी संख्या विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। शोध में अनुमान लगाया गया है कि ये मांसाहारी जीव मानव जीवनकाल में ही गायब हो सकते हैं।

वैज्ञानिकों ने बताया है कि कुछ क्षेत्रों में वे पहले से ही भोजन की कमी से जूझ रहे हैं। समुद्री बर्फ का समय से पहले पिघलने से बर्फ लगातार कम हो रही है जिससे भालू सीलों का शिकार नहीं कर पा रहे हैं। यह शोध नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है।

ध्रुवीय भालू इंटरनेशनल के प्रमुख वैज्ञानिक स्टीवन एमस्ट्रुप ने कहा कि भालू बर्फ के जमने से पहले लंबे समय तक उपवास का सामना करते हैं और बर्फ जमने के बाद वे शिकार करने के लिए वापस लौटते हैं।

अध्ययन के विश्लेषण से पता चलता है कि 13 में से 12 ध्रुवीय भालू 80 वर्षों के भीतर आर्कटिक में तेजी से हो रहे परिवर्तन के कारण कम हो गए। आर्कटिक का तापमान दोगुनी गति से बढ़ रहा है।

एमस्ट्रुप ने बताया कि सन 2100 तक, कनाडा के आर्कटिक द्वीपसमूह में क्वीन एलिजाबेथ द्वीप की आबादी को छोड़कर, अन्य जगहों पर ध्रुवीय भालू का जन्म लेना लगभग असंभव हो जाएगा।

यह परिदृश्य पूर्व-औद्योगिक युग के तापमान से पृथ्वी की औसत सतह के तापमान को 3.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ाता है। एक डिग्री तापमान बढ़ने से हीटवेव्स, सूखा और भयानक तूफानों में वृद्धि होगी, जिससे समुद्रों का जल स्तर बढ़ेगा और यह अधिक विनाशकारी होगा।

यदि लोग पेरिस समझौते के लक्ष्यों से लगभग आधा डिग्री ऊपर 2.4 सेंटी ग्रेड पर वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने में सक्षम हो जाते है, तो यह ध्रुवीय भालूओं के विलुप्त होने को बचा सकता है।

ध्रुवीय भालूओं के विलुप्त होने की समय सीमा

एमस्ट्रुप ने कहा यह वातावरण अभी भी वैसा ही है, जैसा कि एक लाख वर्षों के विकासवादी इतिहास के दौरान ध्रुवीय भालू को जिसका सामना करना पड़ रहा था। खतरा प्रति सेकेंड बढ़ता तापमान नहीं है, बल्कि शिकारी अपने आपको इस तेजी से बदलते वातावरण में ढ़ाल नहीं पा रहे हैं। अगर किसी तरह समुद्री बर्फ को बनाए रखा जाय और तापमान में वृद्धि हो भी जाय तो भी ध्रुवीय भालू आराम से रह सकते हैं।

समस्या यह है कि उनका निवास स्थान सचमुच पिघल रहा है। पृथ्वी के आधे भू-भाग वाले मेगाफ्यूना को विलुप्त होने के खतरे के रूप में वर्गीकृत किया गया है, लेकिन केवल ध्रुवीय भालू मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के खतरे में हैं।

शोधकर्ताओं ने चेतावनी देते हुए कहा है कि आने वाले दशकों में जलवायु अन्य जानवरों को भी प्रभावित करेगी। आज लगभग 25,000 ध्रुवीय भालू (उर्सस मैरीटिमस) बचे हैं।

टोरंटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर मोल्नर ने कहा अनुमान लगाया जाय कि ध्रुवीय भालू कितने पतले और कितने मोटे हो सकते हैं, वे किस तरह ऊर्जा का उपयोग करते हैं, इसकी मॉडलिंग करते हुए, हम उन दिनों की गणना कर सकते है।

एक नर भालू, जैसे-पश्चिम हडसन की खाड़ी की आबादी में, जो शरीर के सामान्य वजन से 20 प्रतिशत तक कम वजन के हो सकते है। जब उपवास के दिन शुरू होते है, तो इनमें 200 दिनों के बजाय 125 दिनों तक ही जीवित रहने के लिए ऊर्जा संग्रहीत होगी।

शोधकर्ता ने कहा कि आईयूसीएन की रेड लिस्ट में ध्रुवीय भालू की सही जगह नहीं दी गई है, जबकि ये विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।

प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा स्थापित श्रेणियां मुख्य रूप से अवैध शिकार और आवास अतिक्रमण जैसे खतरों पर आधारित हैं, जिन्हें स्थानीय आधार पर रखा जाना चाहिए।

एमस्ट्रुप ने कहा कि हम समुद्री बर्फ को बढ़ते तापमान से बचाने के लिए बाड़ का निर्माण तो नहीं कर सकते हैं।  ध्रुवीय भालुओं को बचाने का एकमात्र तरीका वैश्विक तापमान को रोककर उनके निवास स्थान की रक्षा करना है।