जलवायु

जलवायु परिवर्तन के चलते बदल रही है ध्रुवीय भालुओं के खाने की आदतें

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन के चलते जिस तरह से आर्कटिक में ध्रुवीय भालुओं के शिकार का क्षेत्र सिकुड़ रहा है उसके चलते उनके खाने की आदतों पर भी असर पड़ रहा है। जहां एक तरफ वो इंसानों की बस्तियों से बचा खुचा खाने का सामान चुरा रहे हैं साथ ही समुद्र किनारे घोंसला बनाने वाले पक्षियों के अंडे भी खा रहे हैं। यह जानकारी हाल ही में रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में सामने आई है।

यदि पारम्परिक रूप से देखा जाए तो ध्रुवीय भालू सील्स, बेलुगा व्हेल, वालरस, बोहेड व्हेल आदि का शिकार करते हैं। पर जिस तरह से जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फ पिघल रही है उसका असर उनके शिकार पर भी पड़ रहा है अब वो नियमित रूप से जीवों का शिकार नहीं कर पा रहे हैं। नतीजन वो इंसानी बस्तियों से बचा-खुचा सामान और पक्षियों के अंडे खाने के लिए मजबूर हो गए हैं।

उनकी आदतों में आते इस बदलाव को मापने के लिए कनाडा में शोधकर्ताओं ने ड्रोन की मदद ली है, जिससे उनके भोजन के पैटर्न पर नजर रखा जा सके। एक बार जब अण्डों की संख्या कम होने लगी तो 11 दिनों की अवधि में भालू घोसलों के शिकार स्थल तक पहुंच गए थे। इस शोध से जुड़े शोधकर्ता पैट्रिक जैगेल्स्की ने बताया कि बाद में आने वाले भालू तेजी से अधिक खाली घोसलों का दौरा करते हैं। लेकिन इसके बावजूद उन्हें बहुत कम भोजन मिल रहा है।

शोधकर्तांओं ने बताया कि इस अध्ययन से पता चलता है कि एक बार जब जीवों का पसंदीदा शिकार घटने लगता है तो वो अन्य संसाधनों को अपने आहार में शामिल कर लेते हैं। लेकिन वो ऐसा  ज्यादा कुशलता के साथ नहीं कर पाते हैं।  

65 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है बर्फ

यह पहले से ही ज्ञात है कि जलवायु परिवर्तन का असर ध्रुवीय भालुओं पर पड़ रहा है। जिसके लिए आर्कटिक में तेजी से पिघलती बर्फ जिम्मेवार है। जो अन्य स्थानों की तुलना में दोगुनी गति से पिघल रही है। जिसका असर उनके शिकार की अवधि पर पड़ रहा है जो घट रही है। इससे पहले जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में छपे एक शोध में भी ध्रुवीय भालुओं पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे के बारे चेताया था जिसके अनुसार तेजी से पिघलती बर्फ के चलते सदी के अंत तक इन जीवों पर विलुप्त होने का खतरा मंडराने लगेगा।

दुनिया भर में जमी बर्फ के पिघलने की रफ्तार तापमान के बढ़ने के साथ बढ़ती जा रही है। इसके पिघलने की गति रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है। यह जानकारी हाल ही में जर्नल द क्रायोस्फीयर में प्रकाशित शोध से पता से पता चला है कि दुनिया भर में जमी बर्फ के पिघलने की रफ्तार तापमान के बढ़ने के साथ बढ़ती जा रही है। इसके पिघलने की गति रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है। 1990 में यह 80,000 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही थी वो दर 2017 में बढ़कर 130,000 करोड़ टन प्रति वर्ष हो गई है। 1990 की तुलना में 65 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है।