बढ़ते तापमान के साथ दुनिया में कीटों का बढ़ता प्रकोप; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

फसलों पर कीटों का कहर: दो डिग्री सेल्सियस के साथ गेहूं को होगा 46 फीसदी का नुकसान

आशंका है कि तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ कीटों का प्रकोप और बढ़ सकता है। इससे गेहूं की पैदावार में 46 फीसदी, धान की पैदावार में 19 फीसदी और मक्के की पैदावार में 31 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के कारण दुनिया भर में फसलों पर कीटों और घुन का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। साथ ही बढ़ते तापमान और वैश्विक व्यापार में वृद्धि के चलते आक्रामक प्रजातियां भी तेजी से पैर पसार रही हैं।

इस बारे में किए एक अंतराष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों की वजह से कीट और घुन भूमध्य रेखा से ऊंचाई पर ठन्डे क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं। मतलब कि पहले जो ठंडा तापमान इन कीटों को रोके रखता था वो तापमान बढ़ने के साथ इनके लिए अनुकूल माहौल तैयार कर रहा है। ऐसे में यह कीट नए इलाकों को भी निशाना बना रहे हैं।

अध्ययन में आशंका जताई है कि अगर धरती का तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है, तो कीटों के हमलों से फसलों को होने वाला नुकसान कहीं ज्यादा बढ़ सकता है। आशंका है कि इन परिस्थितियों में गेहूं की पैदावार में 46 फीसदी, धान की पैदावार में 19 फीसदी और मक्के की पैदावार में 31 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है।

इसी तरह वैश्विक व्यापार में होता इजाफा भी बदलाव में बड़ी भूमिका निभा रहा है। वैश्विक व्यापार के बढ़ने से दुनिया में कीटों का प्रसार तेज हो गया है। बंदरगाहों, जहाजों के रास्ते आक्रामक विदेशी कीट प्रजातियां उन जगहों तक पहुंच रही हैं, जहां पहले इनका कोई खतरा नहीं था।

नेटवर्क के बढ़ने से अब सामान कुछ ही दिनों में एक देश से दूसरे देश तक पहुंच जाता है। इसकी वजह से कीट आसानी से कंटेनरों, बीजों की खेप और जैविक पैकिंग के साथ यात्रा कर लेते हैं। यह खासकर तब होता है जब इनपर की जा रही निगरानी सख्त न हो। 2019 के आंकड़ों पर नजर डालें तो विदेशी आक्रामक प्रजातियों से होने वाला वैश्विक आर्थिक नुकसान 42,300 करोड़ डॉलर से अधिक था। यह लागत 1970 से अब तक हर दशक कम से कम चार गुना बढ़ चुकी है।

यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर, यूनिवर्सिटी ऑफ हेबेई और चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज से जुड़े विशेषज्ञों के द्वारा किया गया है। अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन में यह भी चेताया है कि अगर समय रहते कार्रवाई न की गई, तो गेहूं, धान, मक्का और सोयाबीन जैसी प्रमुख फसलों को भारी नुकसान हो सकता है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि पैदावार बढ़ाने के लिए खेती पर बढ़ता दबाव यानी इंटेंसिव फार्मिंग की वजह से भी संकट गहरा रहा है।

लम्बे समय तक बोई जा रही एक ही तरह की फसलें, सिंचाई और खाद से पैदावार तो बढ़ रही है, लेकिन साथ ही कीटों को आवास और भोजन भी मिल रहा है। गहन कृषि पद्धतियां जैव विविधता को कम कर सकती हैं। खेतों में जैव विविधता की कमी से कीटों को खाने वाले प्राकृतिक शिकारी घट रहे हैं। जब आस-पास कम शिकारी होते हैं, तो कीट स्वतंत्र रूप से बढ़ते हैं। इससे कीटों के हमले पहले से कहीं अधिक बार और गंभीर हो रहे हैं।

कीटों और बीमारियों की भेंट चढ़ रही है 40 फीसदी पैदावार

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर में प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डैन बेबर का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “दुनियाभर में करीब 40 फीसदी कृषि पैदावार कीटों और बीमारियों की भेंट चढ़ रही है। यह वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।”

उनका कहना है कि कीटों की संख्या, साल में उनके सक्रिय रहने का समय, और उनके प्रसार का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। इसकी मुख्य वजह है जलवायु परिवर्तन, जिसके कारण अब ठंडी जगहों में भी कीट आसानी से पनप सकते हैं। मतलब की इनका प्रकोप पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है सूखा और लू जैसी चरम मौसमी घटनाएं कीटों के अचानक हमलों का कारण बन सकती हैं। तनाव के दौरान पौधे कीटों का आसान शिकार बन सकते हैं, क्योंकि कुछ कीटों द्वारा उत्पन्न न्यूरोटॉक्सिन गर्म और शुष्क मौसम में अधिक नुकसान पहुंचाता है।

हालांकि कुछ मामलों में भारी बारिश कीटों को बहा सकती है। फिर भी उमस और तापमान में आया बदलाव कीटों की संख्या को बढ़ाने में मदद करता है। यह कीट नम खेतों को सूखी जमीन से कहीं ज्यादा पसंद करते हैं।

अध्ययन से पता चला है कि कीटों के हमले उन ठंडे इलाकों में बढ़ सकते हैं, जो भूमध्य रेखा से दूर उच्च अक्षांशों पर स्थित हैं। इनमें उत्तरी अमेरिका, यूरोप और चीन के कुछ हिस्से शामिल हैं, जहां प्रमुख रूप से गेहूं, मक्का और धान की खेती होती है।

गौरतलब है कि जिस तरह ठंडे क्षेत्रों में भी तापमान बढ़ रहा है। उससे ऐसी परिस्थितियां पैदा हो रही हैं, जिसमें कहीं ज्यादा कीट सर्दियों के दौरान जीवित रह सकते हैं। पहले ठंडी हवाएं इनके हमलों को रोकने में मदद करती थी, लेकिन अब लंबे समय तक पड़ने वाली गर्मी इन्हें ज्यादा सक्रिय रहने का मौका दे रही है।

इन परिस्थितियों में वो कहीं ज्यादा बार प्रजनन कर सकते हैं। इससे कहीं ज्यादा कीटों के साथ फसलों के नुकसान का खतरा भी बढ़ रहा है। आर्थिक प्रभावों से परे, फसलों को होने वाला यह नुकसान कमजोर क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा को बढ़ा सकता है। कम उत्पादन से कीमतें बढ़ जाती हैं, और पूरे समुदाय को कमी का सामना करना पड़ता है।

प्रोफेसर बेबर का कहना है कि गेहूं, धान, मक्का और सोयाबीन जैसी महत्वपूर्ण फसलों को कीटों के बढ़ते खतरे से बचाने के लिए बेहतर निगरानी व्यवस्था, पूर्वानुमान मॉडल और जलवायु-अनुकूल प्रबंधन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता है।