जलवायु

अत्याधिक बारिश से धान के खेतों को खतरा, खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा असर

धान की उपज में पहले से ही लगभग आठ फीसदी की कमी देखी गई है, सदी के अंत तक इसमें लगभग 8.1 फीसदी की कमी आने का अनुमान लगाया गया है

Dayanidhi

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि, जलवायु परिवर्तन से होने वाली चरम मौसम की घटनाओं के कारण अत्यधिक बारिश से दुनिया भर में फसल उत्पादन को भारी खतरा होगा। यह अध्ययन चीन के पेकिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया है। 

अध्ययन में कहा गया है कि, अत्यधिक बारिश ने पिछले दो दशकों में चीन में धान की उपज का बारहवां हिस्सा कम कर दिया है। चरम वर्षा के कारण धान की उपज पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है अध्ययन में इसका पता लगाया गया है।

अध्ययन में पाया गया कि अत्यधिक वर्षा के कारण धान की फसल में होने वाली कमी पिछले दो दशकों में अत्यधिक गर्मी की तुलना में कम थी। जो वर्ष 2100 तक उपज में नुकसान के 8.1 फीसदी तक हो सकती है।

अध्ययन में कहा गया है कि, भयंकर बारिश का असर दुनिया भर में धान की फसल का उत्पादन करने वाले देशों पर भी पड़ेगा। आंकड़ों के मुताबिक भारत दुनिया भर में धान, चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, इसलिए भारी बारिश संबंधी खतरे की घंटी भारत के लिए भी है। 

अत्यधिक बारिश के प्रभावों से संबंधित तंत्र को अलग करने के लिए शोधकर्ताओं ने नियमबद्ध तरीके से बारिश की एक व्यापक श्रृंखला तैयार की। प्रयोगों में, तीन अलग-अलग विकास चरणों पर प्रभावों का निरीक्षण करने के लिए तीव्रता और घटना की आवृत्ति के चार वर्षा तक के आंकड़ों का उपयोग किया गया।

बारिश की तीव्रता, पानी की मात्रा, पौधों को होने वाले खतरे और नाइट्रोजन बदलाव की विभिन्न स्थितियों के तहत, कई नियंत्रणों के साथ, शोधकर्ता अलग-अलग विकास चरणों पर काम करने वाले जैव-भौतिक और जैव रासायनिक तंत्रों में अंतर कर सकते हैं।

कुछ उदाहरणों में पता चला है कि भारी तीव्रता के साथ अत्यधिक वर्षा सीधे पौधों के ऊतकों को क्षतिग्रस्त कर देती है। अन्य परिदृश्यों में, अधिक मात्रा में बारिश मिट्टी को साफ करने या जलभराव से पोषक तत्वों को सीमित कर देती है। एक स्पष्ट संकेत यह भी था कि प्रजनन चरण के दौरान अत्यधिक वर्षा सफल परागण को रोक देती है।

पूरे चीन में बारिश के सिमुलेशन से पता चला है कि अत्यधिक बारिश से होने वाली प्राकृतिक गड़बड़ी धान की बुवाई के 47 से 95 फीसदी क्षेत्रों में सबसे महत्वपूर्ण उपज निर्धारक थी। पहले से ही उपज में लगभग आठ फीसदी की कमी देखी गई है, सदी के अंत तक इसमें लगभग 8.1 फीसदी की कमी आने का अनुमान लगाया गया है।

अध्ययनकर्ताओं का सुझाव है कि चीन में भविष्य में किसानों को धान की बुवाई के लिए ऐसे क्षेत्रों का चयन करना चाहिए जो चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि से कम प्रभावित होते हों।

चीन की खाद्य आपूर्ति को प्रभावित करने वाली स्थितियों का दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं, कृषि और पानी के उपयोग पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।

चीन वर्तमान में वियतनाम, पाकिस्तान, भारत, बर्मा, थाईलैंड से चावल का आयात करता है और कैलिफोर्निया चावल का एशिया का सबसे बड़ा खरीदार है।

बदलती जलवायु के कारण इन क्षेत्रों में से प्रत्येक के पास फसल की पैदावार के साथ अपने स्वयं के मुद्दे होंगे, इसलिए इन प्रभावों के पीछे के तंत्र को समझने से सभी उत्पादकों को जलवायु के साथ-साथ बदलते कृषि भविष्य के लिए बेहतर तैयारी करने में मदद मिलेगी। यह अध्ययन जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित हुआ है।