प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
जलवायु

2035 के लिए अब तक महज सात देशों ने साझा किए हैं अपने जलवायु लक्ष्य

पेरिस समझौते के तहत नए अपडेटेड लक्ष्यों को प्रस्तुत करने की समय सीमा महज दो सप्ताह दूर है

Lalit Maurya

2035 के लिए अब तक महज सात देशों ने ही अपनी जलवायु योजनाएं साझा की हैं, जबकि इसकी समय-सीमा अगले महीने है। इससे पता चलता है कि वे जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं। इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (आईआईईडी) द्वारा जारी विज्ञप्ति के मुताबिक कहीं न कहीं यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में राजनीतिक नेतृत्व की कमी को भी दर्शाता है।

गौरतलब है कि पेरिस समझौते में शामिल देशों को हर पांच साल में जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपनी अपडेटेड योजनाएं प्रस्तुत करनी होती हैं, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) कहा जाता है। बता दें कि इसे तहत अगला लक्ष्य 10 फरवरी 2025 तक प्रस्तुत करना है।

ये लक्ष्य इस बात को आधार प्रदान करते हैं कि प्रत्येक देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए क्या कुछ कार्रवाई करेंगे। पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखना है।

10 फरवरी की समय सीमा में अब महज दो सप्ताह का वक्त बचा है, लेकिन अब तक पेरिस समझौते में शामिल सिर्फ तीन फीसदी देशों ने ही अपने एनडीसी सबमिट किए हैं। वहीं अमेरिका पहले ही पेरिस समझौते से पीछे हटने की अपनी मंशा की घोषणा कर चुका है।

अब तक जिन सात देशों ने अपने अपडेट एनडीसी प्रस्तुत किए हैं, उनमें अमेरिका, ब्राजील, उरुग्वे, संयुक्त अरब अमीरात, स्विटजरलैंड और यूनाइटेड किंगडम शामिल है। ब्राजील इस वर्ष के अंत में कॉप30 की मेजबानी करेगा।

न्यूजीलैंड ने 51-55 फीसदी की कटौती का किया है वादा

यूनाइटेड किंगडम ने अजरबैजान में संपन्न हुए कॉप29 सम्मेलन के दौरान अपने 2035 के लक्ष्यों की घोषणा कर दी थी और इसे 30 जनवरी को प्रस्तुत कर दिया गया है। इसी तरह स्विटजरलैंड ने भी 2031 से 2035 के लिए अपनी योजना 29 जनवरी 2025 को अपनी योजना प्रस्तुत कर दी है।

न्यूजीलैंड ने भी आज 31 जनवरी 2025 को 2035 के लिए नए जलवायु लक्ष्य साझा कर दिए हैं। न्यूजीलैंड ने इन नए लक्ष्यों में 2035 तक अपने उत्सर्जन में 2005 के स्तर से 51-55 फीसदी की कटौती करने का वादा किया है।

आईआईईडी में जलवायु विशेषज्ञ कैमिला मोर ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि, "दुनिया तेजी से गर्म हो रही है, ऐसे में जल्द से जल्द साहसिक कार्रवाई पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है। यह निराशाजनक है कि अब तक केवल कुछ ही देशों ने अपनी नई अपडेट जलवायु योजनाओं को साझा किया है।"

उनके मुताबिक दुनिया अब और इन्तजार नहीं कर सकती। जलवायु में आते बदलावों से निपटने के लिए यह लक्ष्य बेहद महत्वपूर्ण हैं।

उनका आगे कहना है कि “कुछ राजनेता चाहे कुछ भी कहें, लेकिन इससे यह सच्चाई नहीं बदल सकती कि जलवायु संकट पहले ही दुनिया में आर्थिक तबाही मचा रहा है और ऐसे में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की कीमत बढ़ती रहेगी।“

उनके मुताबिक लोग स्पष्ट रूप से जलवायु कार्रवाई का समर्थन करते हैं, लेकिन कुछ नेता अभी भी इस महत्वाकांक्षा को रोकने में लगे हैं। आईआईईडी द्वारा किए गए पिछले विश्लेषण से पता चला है कि सरकारें अक्सर जलवायु लक्ष्य की समय-सीमा को पूरा करने में सुस्त रही हैं।

विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि पिछले दशक में, देश आधे से अधिक बार जलवायु परिवर्तन संबंधी समय-सीमाओं और उनके विस्तार से चूक गए हैं।