जलवायु

जलवायु परिवर्तन से महासागरों में पांच गुणा तक बढ़ सकता है शोर, समुद्री जीवों को भुगतना होगा खामियाजा

Lalit Maurya

जलवायु में आते बदलावों के नित-नए दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। ऐसा ही कुछ रॉयल नीदरलैंड इंस्टीट्यूट फॉर सी रिसर्च (एनआईओजेड) से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए शोध में भी सामने आया है। इस रिसर्च के हवाले से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों के कारण महासागरों में शोर बढ़ रहा है।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सदी के अंत तक कुछ क्षेत्रों में जहाजों और अन्य स्रोतों से आने वाला शोर पांच गुणा तक बढ़ सकता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल पीर जे लाइफ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं। इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और एनआईओजेड में समुद्र विज्ञानी लुका पोसेंटी का कहना है कि यह बढ़ा हुआ शोर मछलियों की विभिन्न प्रजातियों और समुद्री स्तनधारियों के व्यवहार को प्रभावित कर सकता है।

वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन में गणितीय मॉडल का उपयोग किया है। साथ ही इसमें संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर बनाए अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा जारी दो जलवायु परिदृश्यों 'मध्यम और चरम' को ध्यान में रखा गया है।

शोध के मुताबिक पानी का तापमान और अम्लता इस बात पर प्रभाव डालते हैं कि समुद्र के भीतर ध्वनि कितनी आसानी या मुश्किल से यात्रा करती है। वैश्विक स्तर पर जिस तरह से उत्सर्जन बढ़ रहा है उसके देखते हुए लगता है कि समुद्र का तापमान आने वाले समय में कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। इसके साथ-साथ समुद्रों का पानी भी पहले से कहीं ज्यादा एसिडिक हो जाएगा। ऐसे में शोधकर्ताओं को आशंका है कि समुद्र के अधिकांश हिस्सों में ध्वनि नीचे की ओर दूर तक जाएगी।

 इन मानचित्रों में दो समयावधियों (2018 से 2022 और 2094 से 2098) के बीच ध्वनि की गति में आने वाले बदलावों को दिखाया गया है। ये मानचित्र चार अलग-अलग गहराईयों (5 मीटर, 125 मीटर, 300 मीटर और 640 मीटर) पर औसत ध्वनि की गति (मीटर प्रति सेकंड) में अंतर को भी दर्शाते हैं। वहीं मानचित्रों पर मौजूद काले बिंदु ध्वनि स्रोतों के स्थानों को चिह्नित करते हैं।

समुद्री जीवों को कैसे प्रभावित कर रहा है बढ़ता शोर

चूंकि उत्तरी अटलांटिक महासागर में सतह के गर्म पानी की आपूर्ति कम होने की उम्मीद है, ऐसे में शोधकर्ताओं को इस क्षेत्र में तापमान की परतों में बदलाव आने की आशंका जताई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस बदलाव से उत्तरी अटलांटिक के ऊपरी हिस्सों में एक अलग "ध्वनि चैनल" बन सकता है, जो एक सुरंग की तरह काम करेगा। इसकी वजह से ध्वनि बहुत दूर तक जा सकती है।

रिसर्च के अनुसार मध्यम जलवायु परिदृश्य को देखते हुए, इस सदी के अंत तक क्षेत्र में पानी के नीचे शोर का स्तर सात डेसिबल तक बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार ध्वनि में "मात्र" सात डेसीबल की वृद्धि पानी के भीतर करीब पांच गुना अधिक ध्वनि ऊर्जा के बराबर है। इसका मतलब है कि जहाजों और भूकंपीय सर्वेक्षण जैसी गतिविधियों से पैदा होने वाली आवाजें कहीं ज्यादा तेज हो जाएंगी।

साथ ही, भविष्य में और अधिक जहाजों के चलने की संभावना के साथ, समुद्र का शोर भी कहीं ज्यादा बढ़ेगा। उनके मुताबिक मध्यम जलवायु परिदृश्य में भी, ये बदलाव काफी गंभीर हो सकते हैं।

इस बारे में पोसेंटी ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, “बढ़ता इंसानी शोर समुद्री जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करेगा।“ उनके मुताबिक जब पानी के भीतर दृश्यता कम होती है, तो मछली और अन्य समुद्री स्तनधारी संचार के लिए ध्वनि पर निर्भर होते हैं।

ऐसे में यदि शोर के चलते मछलियां अपने शिकारियों को नहीं सुन पाती, या यदि व्हेल एक-दूसरे से बात करने में संघर्ष करती हैं, तो यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर देगा।