जलवायु

1970 से 7,200 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन को रोकने में मददगार रही परमाणु ऊर्जा

Madhumita Paul, Lalit Maurya

हाल ही में जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया भर में परमाणु रिएक्टरों ने कोयले की तुलना में 1970 के बाद से करीब 7,200 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन को रोकने में मदद की है।  गौरतलब है कि 2020 के अंत तक दुनिया भर में करीब 441 परमाणु रिएक्टर ऊर्जा पैदा कर रहे थे। इन परमाणु रिएक्टरों ने 2020 में कुल 2,553 टेरावाट-घंटे बिजली पैदा की थी, जोकि 2019 की तुलना में 104 टेरावाट-घंटे कम है। 

यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (कॉप-26) से कुछ दिन पहले ही जारी की गई थी। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन पर वार्ता के लिए यह सम्मेलन ग्लासगो में शुरु हो चुका है। इस वर्ल्ड न्यूक्लियर परफॉरमेंस रिपोर्ट 2021 के अनुसार कोविड-19 महामारी के चलते बिजली की मांग में कमी आ गई थी, जिससे जनरेटरों का उत्पादन कम हो गया था। 

रिपोर्ट के अनुसार जहां 2020 के दौरान अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, पश्चिम और मध्य यूरोप में बिजली के उत्पादन में गिरावट आई थी। एशिया में इसके उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई थी, हालांकि वो वृद्धि हाल के वर्षों की तुलना में बहुत कम थी। वहीं पूर्वी यूरोप, रूस और दक्षिण अमेरिका में कोई खास बदलाव नहीं रिकॉर्ड किया गया था। 

रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि 2020 के दौरान दुनिया भर में संचालित परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 392 गीगावाट थी। वहीं रिपोर्ट के अनुसार 2020 के अंत तक कुल 441 रिएक्टर चालू अवस्था में थे। हालांकि अधिकांश वर्षों में कुछ रिएक्टर बिजली पैदा नहीं करते हैं।

इस बारे में वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन के महानिदेशक सामा बिलबाओ वाई लियोन का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में स्थायी रूप से बंद किए गए आधे से अधिक रिएक्टर तकनीकी सीमाओं के कारण बंद नहीं थे, बल्कि उनके बंद होने की वजह उन्हें चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिए बनाई राजनैतिक नीतियां या फिर बाजार द्वारा परमाणु ऊर्जा के मूल्य को ठीक तरीके से न पहचानना थी। उनके अनुसार  न्यूक्लियर एनर्जी, ऊर्जा का एक विश्वसनीय स्रोत है जो बहुत कम कार्बन उत्सर्जित करता है। देखा जाए तो यह कार्बन उत्सर्जन में कमी करने का एक मौका है, जिसे दुनिया बर्बाद नहीं कर सकती।

शून्य उत्सर्जन के लिए 2050 तक दोगुना करना होगा परमाणु ऊर्जा का उत्पादन

रिपोर्ट  के अनुसार 2020 में छह रिएक्टरों को स्थायी रूप से बंद कर दिया गया था। इनमें फ्रांस के फेसेनहेम न्यूक्लियर पावर प्लांट के दो रिएक्टर शामिल हैं जिन्हें वहां की बिजली उत्पादन क्षमता में परमाणु हिस्सेदारी को कम करने के लिए बंद कर दिया गया था।

इसी तरह बाजार की स्थिति के चलते दो रिएक्टरों को बंद करना पड़ा था। वहीं स्वीडन में रिंगल 1 रखरखाव में कमी के कारण मार्च 2020 से ऑफलाइन हो गया था, जोकि जून में वापस चालू कर दिया गया था। इसी तरह रूस में लेनिनग्राद रिएक्टर को बदलाव के लिए बंद कर दिया गया था।

2020 में पांच रिएक्टरों को ग्रिड से जोड़ा गया था, जिनमें एक रिएक्टर बेलारूस और संयुक्त अरब अमीरात ने सम्मिलित रूप से लगाया था। हालांकि इन दोनों देशों में और भी इकाइयां निर्माणाधीन हैं।

यदि भारत की बात करें तो देश में कुल 23 न्यूक्लियर रिएक्टर चालू अवस्था में हैं जबकि 7 अन्य के निर्माण का काम चल रहा है। इनकी कुल क्षमता 6,885 मेगावाट इलेक्ट्रिक है, जोकि कुल बिजली उत्पादन क्षमता का करीब 3.3 फीसदी हिस्सा है। वहीं जो रिएक्टर निर्माणाधीन है उनकी कुल क्षमता करीब 5,194  मेगावाट इलेक्ट्रिक है।     

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अनुसार परमाणु ऊर्जा जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार रही है। उदाहरण के लिए, यह दुनिया की 10 फीसदी बिजली पैदा कर रही है। जो दुनिया की साफ-सुथरी ऊर्जा के करीब एक तिहाई हिस्से के बराबर है।

वहीं अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा 2050 के लिए जारी नेट-जीरो रोडमैप का अनुमान है कि यदि दुनिया को नेट-जीरो महत्वाकांक्षा को पूरा करना है, तो उसे 2020 से 2050 के बीच परमाणु ऊर्जा के उत्पादन को दोगुना करने की जरुरत पड़ेगी।