जलवायु

बढ़ते तापमान की गिरफ्त में उत्तरी गोलार्ध, बढ़ रहा गर्मी, लू और दावाग्नि का जोखिम

बढ़ते तापमान के चलते अमेरिका से लेकर चीन तक पूरा उत्तरी गोलार्ध भीषण गर्मी और लू की चपेट में है। वहीं भारत, जापान, दक्षिण कोरिया ने बाढ़ के कहर का सामना किया

Lalit Maurya

अमेरिका से लेकर चीन तक पूरा उत्तरी गोलार्ध इन दिनों भीषण गर्मी और लू की चपेट में है। इसकी वजह से न केवल लोगों का स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। इस बाबत विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने सोमवार को जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि उत्तरी गोलार्ध का बड़ा हिस्सा भीषण गर्मी और लू की चपेट में है।

इसकी वजह से भारी विनाश हुआ है, अनेक लोग हताहत हुए हैं, जबकि हजारो को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है। बढ़ते तापमान का असर न केवल धरती पर बल्कि समुद्रों को भी निशाना बना रहा है। गौरतलब है कि गत सप्ताह डब्ल्यूएमओ और यूरोपियन यूनियन की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के वैज्ञानिकों ने नए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि जुलाई 2023 रिकॉर्ड में अब तक का सबसे गर्म जुलाई और सबसे गर्म महीना बनने की राह पर है।

ईआरए 5 डेटासेट के अनुसार, जुलाई 2023 के पहले 23 दिनों में वैश्विक औसत तापमान 16.95 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जोकि जुलाई 2019 के लिए दर्ज औसत तापमान 16.63 डिग्री सेल्सियस से काफी ऊपर है। बता दें कि जुलाई 2019 मौजूदा समय में अब तक का सबसे गर्म महीना है। इससे पहले जुलाई के दौरान कभी भी तापमान इतना ज्यादा दर्ज नहीं किया गया।

ऐसे में यह करीब-करीब निश्चित है कि जुलाई 2023 का औसत तापमान जुलाई 2019 के तापमान से कहीं ज्यादा ऊपर होगा। नतीजन जुलाई 2023 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म जुलाई और सबसे गर्म महीना दोनों ही बन जाएगा।

इसी तरह समुद्र की सतह का दैनिक औसत तापमान भी 19 जुलाई 2023 को बढ़कर 20.94 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था। जो अब तक के उच्चतम बिंदु 20.95 से थोड़ा ही पीछे है। इससे पहले 29 मार्च 2016 को समुद्र की सतह का औसत तापमान अपने शिखर पर पहुंच गया था।

इससे पहले छह जुलाई 2023 को सतह के करीब हवा का औसत तापमान अगस्त 2016 के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ नए स्तर पर पहुंच गया था। इसी तरह पांच और सात जुलाई को भी तापमान 2016 के पिछले रिकॉर्ड तापमान से ऊपर था।

‘सामान्य’ बनता जा रहा बढ़ता तापमान

वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन नेटवर्क में प्रकाशित एक अध्ययन में भी उत्तरी अमेरिका, चीन और यूरोप में पड़ती भीषण गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन को वजह माना है। अध्ययन के अनुसार लू की घटनाएं जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट संकेतों को दर्शाती हैं।

इस अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के बिना लू की इन घटनाओं का घटना दुर्लभ है। यदि इंसानों द्वारा किया जा रहा उत्सर्जन न होता तो चीन में 250 वर्षों में इस तरह की घटना होने की सम्भावना होती। जुलाई  2023 में अमेरिका/मेक्सिको और दक्षिणी यूरोप में जिस तरह गर्मी पड़ रही है, उसका होना करीब-करीब असंभव होता।

डब्ल्यूएमओ के अनुसार 16 जुलाई को चीन के शिनजियांग प्रांत में तापमान 52.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, जोकि देश में उच्चतम तापमान का एक नया रिकॉर्ड है। इसी तरह अमेरिका के फीनिक्स में भी लगातार 31 दिनों तक तापमान 43.3 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया। यह बढ़ता तापमान अपने साथ गर्मी और लू को भी साथ लेकर आया। जो सबसे जानलेवा प्राकृतिक आपदाओं में से एक है।

हर साल हजारों लोग गर्मी के चलते अपनी जान गंवा रहे हैं। इस बारे में 18 जुलाई 2023 को डब्ल्यूएमओ के विशेषज्ञों ने एक मीडिया ब्रीफिंग में बताया था कि लू का पूरा असर अक्सर हफ्तों या महीनों तक पता नहीं चलता।

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक फ्रांस, ग्रीस, इटली, स्पेन, अल्जीरिया और ट्यूनीशिया ने दिन और रात के तापमान में नए रिकॉर्ड दर्ज किए हैं। स्पेन के फिगुएरेस (कैटेलोनिया) में 18 जुलाई को 2023 को तापमान रिकॉर्ड 45.4 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था।

इसी तरह  इटली के सार्डिनिया द्वीप के एक स्टेशन पर 24 जुलाई 2023 को तापमान 48.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। इसी तरह अल्जीरिया में 23 जुलाई को उच्चतम अधिकतम तापमान 48.7 डिग्री सेल्सियस और ट्यूनीशिया में 49 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

यूएस नेशनल वेदर सर्विस के मुताबिक भी इस दौरान अमेरिका के बड़े हिस्से भी लू की चपेट में थे। कई स्थानों पर तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। अमेरिकी राष्ट्रीय मौसम सेवा ने बार-बार भीषण गर्मी की चेतावनी और सलाह जारी की थी, जो 10 करोड़ से ज्यादा लोगों पर लागू होती है।

वहीं 31 जुलाई 2023 को जारी ताजा अपडेट में चेतावनी दी गई है कि प्रभावित इलाकों में पड़ती जानलेवा गर्मी का कहर गर्मी पांच अगस्त तक जारी रहेगी। 

दक्षिण-मध्य और दक्षिण-पूर्व अमेरिका में, अधिकतम तापमान 43 डिग्री सेल्सियस के करीब तक पहुंच गया था। वहां मियामी सहित फ्लोरिडा के कई हिस्से लंबे समय तक रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की चपेट में रहे। इसी तरह फीनिक्स, एरिजोना में 30 जुलाई तक औसत तापमान 43.3 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया। वहीं कैलिफोर्निया में डेथ वैली नेशनल पार्क के फर्नेस क्रीक में तापमान 16 जुलाई को 53.3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

विश्व मौसम संगठन के महासचिव पेटेरी तालस का कहना है कि, "भीषण गर्मी की घटनाओं का बार-बार घटना, इंसानी स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र, अर्थव्यवस्था, कृषि, ऊर्जा और जल आपूर्ति को प्रभावित कर रहा है। जो ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन में तत्काल भारी कटौती करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।" उनके अनुसार हमें समाजों को, इस स्थिति के अनुकूल बनने में मदद करने के लिए प्रयास बढ़ाने होंगे, जो दुर्भाग्य से अब सामान्य बनता जा रहा है।

बढ़ती गर्मी के साथ धधक रहे हैं जंगल

बढ़ते तापमान की वजह से जंगल में आग का प्रकोप भी बढ़ रहा है। अल्जीरिया, ग्रीस, इटली और स्पेन सहित भूमध्य सागर के कुछ हिस्सों में जंगल की आग ने भारी तबाही मचाई है, जिससे दर्जनों लोग हताहत हुए हैं और हजारों को मजबूरन अपना घर छोड़ना पड़ा है।

वहीं 17 जुलाई के बाद से अब तक जंगलों में लगी आग के चलते तीन ग्रीक द्वीपों - रोड्स, इविया और कोर्फू - से सैकड़ों लोगों को बाहर निकाला गया है। एक से 25 जुलाई के बीच वहां कुल एक मेगाटन कार्बन उत्सर्जन होने का अनुमान है, जो जुलाई 2007 के रिकॉर्ड से करीब-करीब दोगुना है।

इसी तरह अल्जीरिया में भी आग से अनेक लोग घायल हुए हैं। कॉपरनिकस एटमॉस्फेरिक मॉनिटरिंग सर्विस के मुताबिक, इन जंगलों में लगी आग से होता उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।

कॉपरनिकस  एटमॉस्फियर मॉनिटरिंग सर्विस ने जुलाई की दूसरी छमाही के दौरान पूर्वी भूमध्य सागर, विशेषकर ग्रीस में, दावाग्नि की तीव्रता और उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। जीएफएएस डेटासेट के अनुसार, पिछले 21 वर्षों में ग्रीस में इस अवधि के दौरान जंगलों की आग से हुआ उत्सर्जन सबसे अधिक रहा है। 

वहीं कनाडा के लिए भी जंगलों में लगी आग किसी बुरे सपने से कम नहीं, जिसने जंगल की आग का अब तक का सबसे खराब मौसम देखा है। इसकी वजह से उत्तरी अमेरिका के लाखों लोगों को दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर होना पड़ा।

कनाडा में बढ़ती गर्म और शुष्क परिस्थितियों ने वसंत के बाद से जंगल में आग की घटनाओं को हवा दी है। इसकी वजह से 1.2 लाख से ज्यादा लोगों को अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। वहीं पूरे उत्तरी अमेरिका में लाखों लोग दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। कनाडा में यह रिकॉर्ड तोड़ आग बड़े क्षेत्रों को निशाना बना रही हैं।

कैनेडियन इंटरएजेंसी फॉरेस्ट फायर सेंटर के मुताबिक 2023 में 1.1 करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पहले ही जल चुकी है, जबकि 10 वर्षों का औसत लगभग 800,000 हेक्टेयर है। इनकी वजह से मई-जून में पैदा हुए प्रदूषण ने न केवल कनाडा बल्कि आसपास के क्षेत्रों को भो आगोश में ले लिया है। इसकी वजह से उस क्षेत्र में वायु गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हुई है।

आंकड़ों को देखें तो जून में दावाग्नि के कारण हुआ प्रदूषण 2003 से 2022 के औसत प्रदूषण से भी ज्यादा रहा जो 100 मैगाटन रिकॉर्ड किया गया। आग की यह घटनाएं जुलाई 2023 के अंत में भी जारी हैं। मौजूदा समय में कनाडा के आर्कटिक सर्किल में कई जगह आग जल रहीं हैं।

भूमध्य सागर में समुद्र की सतह का तापमान भी असामान्य रूप से अधिक है। कुछ क्षेत्रों में यह 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा दर्ज किया गया है। वहीं पश्चिमी हिस्सों में औसत से चार डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। इसकी वजह से समुद्र में लू की स्थिति बन सकती है जो प्रजातियों के प्रवास से उनकी विलुप्ति तक का कारण बन सकती है। इतना ही नहीं यह मत्स्य पालन और जलीय कृषि को प्रभावित करने वाली आक्रामक प्रजातियों की भी वजह बन सकता है।

इस दौरान हुई भीषण बारिश और बाढ़ ने भी क्षेत्र में व्यापक असर डाला है। इसका असर पूरी दुनिया में भी देखने को मिला है। दक्षिण कोरिया में 14 जुलाई को हुई भारी बारिश और अचानक आई बाढ़ में 40 लोग मारे गए थे।

इसी तरह उत्तर-पश्चिमी चीन में भी 15 लोग बाढ़ के भेंट चढ़ गए थे। इसी तरह 10 जुलाई को जापान के क्यूशू क्षेत्र के मिनूसन में 376 मिलीमीटर और हिकोसन में 361.5 मिलीमीटर बारिश हुई जोकि एक नया रिकॉर्ड है। इसी तरह पूर्वोत्तर अमेरिका और न्यू इंग्लैंड के कुछ हिस्सों में जुलाई की शुरुआत में गंभीर बाढ़ के बाद और भी भारी बारिश का सामना करना पड़ा। न्यूयॉर्क में 11 जुलाई को अचानक आई बाढ़ को लेकर आपातकाल तक जारी करना पड़ा। करीब 40 लाख लोग इसके दायरे में थे।

उत्तर भारत में भी जुलाई के दौरान हुई भारी बारिश और बाढ़ से घर, सड़क और पुल ध्वस्त हो गए थे, वहीं दर्जनों लोगों की मौत हो गई थी। इसका सबसे ज्यादा असर हिमाचल प्रदेश में देखने को मिला। साथ ही पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से भी बुरी तरह प्रभावित हुए थे। इसी तरह जुलाई नई दिल्ली में भी 40 वर्षों में सबसे ज्यादा बारिश दर्ज की गई। जब एक ही दिन में 153 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई।