एक दशक पहले पहचाने गए जलवायु टिपिंग बिंदुओं (क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट्स) में से आधे से अधिक अब सक्रिय हो गए हैं, इस बारे में प्रमुख वैज्ञानिकों के एक समूह ने चेतावनी दी है। इनके सक्रिय होने से जलवायु संबंधी घटनाओं में वृद्धि होगी। जलवायु प्रणाली में टिपिंग प्वाइंट्स एक ऐसी सीमा है जिसके पार होने पर हमारी पृथ्वी में बड़े परिवर्तन हो सकते हैं।
ये बिंदु बताते है कि किस तरह अमेजन वर्षावन घट रहा है और अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पिघल रही है। वर्तमान में ये सभी अभूतपूर्व परिवर्तनों से गुजर रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले ये परिवर्तन मानव अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। इस बात के साक्ष्य बताते है, कि पहले जितना सोचा गया था जलवायु संबंधी घटनाओं (बाढ़, सूखा, समुद्र तल में वृद्धि, आदि) का उससे कहीं अधिक बढ़ने की आशंका है।
जर्नल नेचर के एक अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने प्रमुख टिपिंग बिंदुओं को रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने का आह्वान किया है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो धरती रहने योग्य नहीं बचेगी।
इंग्लैंड में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर में ग्लोबल सिस्टम इंस्टीट्यूट के निदेशक, प्रमुख अध्ययनकर्ता प्रोफेसर टिम लेंटन ने कहा, एक दशक पहले हमने पृथ्वी के प्रणाली में संभावित टिपिंग बिंदुओं के एक समूह की पहचान की थी, अब उनमें से आधे से अधिक सक्रिय हो गए हैं।
चीजें तेजी से बदल रहीं है, जैसे - आर्कटिक समुद्री बर्फ का पिघलना - समुद्र तल में वृद्धि, अमेजन वर्षावनों का घटना जिसके कारण बार-बार सूखा पड़ना आदि। इन बदलावों के कारण खतरे बढ़ रहे हैं, जिसका मतलब है कि अब इंतजार करने और देखने का समय नहीं है। स्थिति बहुत खराब है और हमें इन बदलावों को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे।
2050 से पहले जीवाश्म ईंधन के उपयोग बंद होने की संभावना न के बराबर है। पृथ्वी का तापमान 2040 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा। अध्ययनकर्ता ने कहा कि यह अपने आप में एक आपातकाल जैसा ही होगा।
नौ सक्रिय टिपिंग बिंदु:
ग्रीनलैंड, पश्चिम अंटार्कटिका और पूर्वी अंटार्कटिका के हिस्से पर प्रमुख बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्र-स्तर में लगभग 10 मीटर की वृद्धि होगी। उत्सर्जन को कम करने से इस प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है, जिससे समुद्र के नजदीक रहने वाली आबादी को दूसरी जगहों मे भेजने हेतु अधिक समय मिल सके।
वर्षावन, पर्माफ्रॉस्ट और बोरियल वन, बायोस्फीयर टिपिंग बिंदुओं के उदाहरण हैं। यदि अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैस जारी होती है तो ये वन उसे नहीं सोखेंगे जिससे तापमान बढ़ जाएगा। हालांकि वैश्विक तापमान में लाखों वर्षों से उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। अध्ययनकर्ता कहते हैं कि मानव द्वारा लगातार वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को बढ़ाया जा रहा है जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।