जलवायु

जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में नए वायरस आ रहे हैं सामने, संक्रामक रोगों का बढ़ा खतरा

Dayanidhi

वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु में बदलाव, विशेष रूप से तापमान और नमी में बदलाव, कुछ इलाकों में अत्यधिक बारिश और दूसरी जगहों में सूखे जैसी घटनाओं के कारण संक्रामक रोगों के फैलने में वृद्धि होगी

भारत के कई हिस्सों में एच2एन3, एडिनोवायरस और स्वाइन फ्लू सहित सांस संबंधी संक्रमणों में हालिया वृद्धि से चिंता बढ़ गई है। हालांकि वैज्ञानिकों ने कहा कि इस सब के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन निश्चित रूप से एक हद तक इन बीमारियों के लिए यह जिम्मेवार दिखाई देता है।

जलवायु परिवर्तन के कारण डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसी बीमारियों का फैलना बढ़ गया है।

शोधकर्ता प्रभाकरन के मुताबिक लगातार बढ़ता तापमान वायरस जैसे रोगों के फैलने के पैटर्न पर असर डालता है और साथ ही कई तरीकों से रोग फैलाने वालों को भी प्रभावित करता है। प्रभाकरन, सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल हेल्थ एट पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) के निदेशक हैं।

बदलती जलवायु परिस्थितियां वायरस और उनसे होने वाली बीमारियों को फैलाने की क्षमता के लिए भी अधिक अनुकूल हो जाती हैं। गर्म और नमी वाली स्थितियां दोनों रोगों के फैलने वाले मार्गों, रोग की आवृत्ति और रोग की गंभीरता को प्रभावित कर सकती हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा जलवायु में परिवर्तन के कारण प्रजातियों के निवास स्थान में भी बदलाव आएगा, जिससे कुछ क्षेत्रों में नए रोग फैलाने वाले पैदा होंगे, या कुछ प्रजातियों को नए वायरस के लिए बहुत असरकारक बना दिया जाएगा, जिसमें लोगों में इनके फैलने की क्षमता तेज हो सकती है।

उदाहरण के लिए, देश के शुष्क भागों में अत्यधिक वर्षा और बाढ़ के कारण उन बीमारियों का प्रकोप हो सकता है जो आमतौर पर नमी वाले इलाकों में होती हैं। यह हैजा और पेचिश जैसी जल जनित बीमारियों के साथ-साथ मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी वेक्टर जनित बीमारियों को भी बढ़ाता है

उन्होंने कहा कि अत्यधिक चरम मौसम की घटनाएं जैसे लू या हीटवेव भी जानवरों के उच्च तनाव का कारण बन सकती हैं, जिससे वे बीमारी को फैलाने और जूनोटिक रोगों के प्रकोप को भी बढ़ा सकते हैं। यहां बताते चलें कि जूनोटिक रोग - जनवरों से लोगों में वायरसों का फैलना है।

निपटने के लिए कौन से रास्ते अपनाए जा सकते हैं?

शोधकर्ताओं ने कहा है कि अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके भविष्य के अलग-अलग परिदृश्यों की मॉडलिंग करना, जो भविष्य में होने वाली बीमारी के पैटर्न या हॉटस्पॉट का पता लगाने में मदद कर सकता है। इसमें उपयुक्त और समय पर कार्यवाही करने की योजना बनाने में निर्णयकर्ताओं की सहायता के लिए एक जरूरी उपयोगी उपकरण हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि, वर्तमान में जंगली स्तनधारियों के बीच कम से कम 10,000 वायरस चुपचाप घूम रहे हैं। जलवायु परिवर्तन उन्हें लोगों में फैलाने के लिए उत्तेजित कर सकता है।

यह शोध भारत, इंडोनेशिया, चीन और फिलीपींस जैसे देशों और कुछ अफ्रीकी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो पिछले कई दशकों में फ्लू, सार्स, एचआईवी, इबोला और कोविड-19 ​​सहित जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली घातक बीमारियों से जूझ रहे हैं।

शोधकर्ता ने कहा कि, बढ़ता तापमान नए उभरते वायरस के खतरों को बढ़ा रहे हैं।

ग्लोबल साउथ के हिस्से के रूप में भारत में बढ़ते तापमान के बाद कुछ वेक्टर जनित संक्रामक बीमारियों, उदाहरण के लिए, डेंगू में वृद्धि देखी जा सकती है।  यह भी अनुमान लगाया गया है कि वे वायरस अब पहाड़ों जैसे नए स्थानों पर फैल रहे हैं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि बढ़ते तापमान के कारण बाढ़ भी बढ़ेगी, जिससे हेपेटाइटिस ए और नोरोवायरस जैसे जल जनित संकर्मक रोग हो सकते हैं, जो एक बहुत ही संक्रामक वायरस है जिनसे उल्टी और दस्त होते हैं।

बढ़ते तापमान से वातावरण के शरणार्थियों की बढ़ती गतिविधि के कारण उभरते वायरसों के फैलने का भी पूर्वानुमान लगाया गया है। भारत में जलवायु परिवर्तन और बीमारी के खतरों को लेकर कई शोध पत्र हैं। हालांकि, मजबूत वैज्ञानिक अध्ययनों वाले अधिकांश साहित्य अभी भी ग्लोबल नार्थ से है।

चक्रवर्ती ने कहा कि भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण सांस से संबंधी बीमारी फैलाने वाले वायरस के मामलों में वृद्धि हो सकती है, लेकिन एक स्पष्ट कड़ी स्थापित करने के लिए और वैज्ञानिक शोधों की आवश्यकता है।

उदाहरण के लिए, सर्दियों के महीनों के दौरान बर्ड फ्लू वायरस के पारंपरिक तरीके से निकलने को शीतकालीन प्रवासी बतख से जोड़ा जाता है। अब यह अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन उनके व्यवहार और प्रवासी मार्गों दोनों को रोक रहा है, जिससे गर्म महीनों के दौरान भी यह देखा जा रहा है।

कई सांस से संबंधित वायरस वन्यजीवों में पाए जाते हैं और जलवायु परिवर्तन उन जंगली जानवरों की पारिस्थितिकी और व्यवहार को बदलकर नए वायरस के बाहर निकलने पर असर डाल सकता है।

चक्रवर्ती ने कहा, इसके अलावा, मानव व्यवहार और जनसांख्यिकीय परिवर्तन जैसे, एसी का बढ़ता उपयोग, फसल चक्र में बदलाव, बड़े पैमाने पर पलायन आदि से जलवायु परिवर्तन वायरस की महामारी विज्ञान को बदल सकता है।

एक और परेशानी का विषय यह है कि जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है, जिसके कारण दुर्लभ बीमारियां नए इलाकों में फैल रही है और कुछ मौजूदा बीमारियों जैसे स्क्रब टाइफस और लेप्टोस्पायरोसिस के लिए नए हॉटस्पॉट बन रहे हैं।

इस तरह की बीमारियों में हर साल बदलाव होने के भी आसार हैं, जिससे निपटने के उपाय और तैयारी कठिन हो जाती है क्योंकि इस तरह के परिणामों के लिए बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण की जरूरतें साल-दर-साल स्थायी और अस्थायी रूप से अत्यधिक परिवर्तनशील होने की आशंका है।

अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि, आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन से लोगों को संक्रमित करने वाले नए वायरस का खतरा काफी बढ़ जाएगा। यह अध्ययन नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।