जलवायु

नई पहल: जलवायु सम्बन्धी गलत सूचनाओं के दुष्प्रचार को रोकने के लिए सामने आया पिनटेरेस्ट

गलत और भ्रामक सूचनाओं का यह बाजार कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बड़े ब्रांड इनके प्रसार पर हर वर्ष करीब 20 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं

Lalit Maurya

पिनटेरेस्ट ने अपने प्लेटफॉर्म पर जलवायु सम्बन्धी गलत सूचनाओं के दुष्प्रचार को रोकने के लिए बड़ा कदम उठाया है जोकि सोशल मीडिया के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जानकारियों को लेकर की गई एक अच्छी पहल है।

अपनी इस नई नीति के तहत साइट ने ऐसे कंटेंट को हटाने के लिए प्रतिबद्धता जताई है जो जलवायु संकट से जुड़े तथ्यों को नकारते हैं या उन्हें झुठलाने या उनको तोड़ मरोड़कर पेश करने की कोशिश करते हैं। इसके अंतर्गत पिनटेरेस्ट ने उन सभी कंटेंट को हटाने की पेशकश की है जो जानकारी चाहे विज्ञापन या आर्गेनिक कंटेंट के रुप में पोस्ट की गई हो। 

गौरतलब है कि पिनटेरेस्ट एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जिसमें आप अपनी पसंदीदा और दिलचस्प चीजों को एकत्र और दूसरों के साथ साझा कर सकते हैं। देखा जाए तो यह एक तरह का डिजिटल बोर्ड है, जिसमें आप अपनी पसंद की तस्वीरें, वीडियो, आर्टिकल पिन कर सकते हैं। यह काफी हद तक आपके ऑफिस, स्कूल या कॉलेज के नोटिस बोर्ड जैसा ही है।

इस प्लेटफॉर्म की मदद से आप इमेज, आर्टिकल या वीडियो के रुप में उपलब्ध जानकारी को खोज, सेव और साझा कर सकते हैं। सोशल मीडिया की दुनिया में यह प्लेटफॉर्म कितना लोकप्रिय है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 2021 की चौथी तिमाही तक इसके के दुनिया भर में करीब 43.1 करोड़ एक्टिव यूजर थे।

देखा जाए तो पिनटेरेस्ट की जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी सूचनाओं को लेकर जारी यह नई नीति सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गलत और भ्रामक सूचनाओं के दिशानिर्देश के विस्तार का प्रतीक है। इससे पहले 2017 में पिनटेरेस्ट ने स्वास्थ्य सम्बन्धी गलत सूचनाओं जैसे की टीकाकरण के विरोध में साझा की गई सामग्री को प्रतिबंधित करने की नीति तैयार की थी। तब से लेकर इस प्लेटफॉर्म ने चुनाव और अन्य नागरिक गतिविधियों के बारे में गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार को रोकने के लिए अपनी नीति का विस्तार किया है। 

इस तरह की सूचनाओं और जानकारी को रोकने के लिए पिनटेरेस्ट ने कम्युनिटी गाइडलाइन जारी की है। साथ ही ऐसी नीति बनाई है जिसमें इस तरह की गलत जानकारी और सामग्री को तुरंत हटा दिया जाता है, जो जनता की भलाई, सुरक्षा या विश्वास को नुकसान पहुंचा सकती है।

  • ऐसी सामग्री जो जलवायु परिवर्तन के अस्तित्व या प्रभावों को नकारती है, मानव पर पड़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, या जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक अस्तित्व को नकारती हो।
  • जलवायु परिवर्तन समाधानों के बारे में गलत या भ्रामक सामग्री जो अच्छी तरह से स्थापित वैज्ञानिक सहमति का खंडन करती है।
  • जलवायु विज्ञान और विशेषज्ञों में विश्वास को कम करने के लिए, वैज्ञानिक डेटा को गलत तरीके से प्रस्तुत करने वाली सामग्री।
  • प्राकृतिक आपदाओं और चरम मौसम की घटनाओं सहित सार्वजनिक सुरक्षा आपात स्थितियों के बारे में हानिकारक झूठी या भ्रामक सामग्री।

इस बारे में पिनटेरेस्ट की नीति प्रमुख सारा ब्रोम्मा का कहना है कि हम पिनटेरेस्ट को ऐसा बनाने में विश्वास करते हैं जो हमारे प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करने वालों के लिए विश्वसनीय और सत्य हो। यह साहसिक कदम हमारे व्यापक गलत सूचना दिशानिर्देशों का एक विस्तार है, जिसे हमने पहली बार 2017 में सार्वजनिक स्वास्थ्य सम्बन्धी गलत सूचनाओं को संबोधित करने के लिए विकसित किया था और तब से नए मुद्दों को सम्बोधित करने के लिए इसे अपडेट किया गया है। उनके अनुसार  यह नीति गलत सूचनाओं से निपटने और ऑनलाइन दुनिया को एक सुरक्षित स्थान बनाने की यात्रा में एक और कदम है। 

भ्रामक सूचनाओं के प्रसार के लिए हर वर्ष करीब 20 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं बड़े ब्रांड

गौरतलब है कि लम्बे समय से जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी गलत सूचनाओं के प्रसार में सोशल मीडिया अपनी भूमिका को लेकर आलोचना का केंद रहा है। इससे पहले नवंबर 2021 में 200 से ज्यादा जलवायु वैज्ञानिकों, कार्यकर्ताओं और इस दुष्प्रचार को रोकने का समर्थन कर रहे संगठनों ने फेसबुक (एफबी), इंस्टाग्राम, गूगल, ट्विटर, पिनटेरेस्ट और रेड्डिट जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के प्रमुखों को एक ओपन लैटर लिखा था, जिसमें उनसे जलवायु सम्बन्धी गलत जानकारियों को रोकने के लिए कदम उठाने की बात कही थी और अपनी नीति स्पष्ट करने के लिए कहा था।

इससे पहले अगस्त 2021 में, न्यूज़गार्ड और कॉमस्कोर द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आया है कि कई बड़े ब्रांड गलत सूचनाओं का विज्ञापन करने के लिए हर साल करीब 20 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं। ऐसे में यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन और कॉप 26 सम्बन्धी कितनी गलत सूचनाओं का प्रसार किया जा सकता है।   

गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के सच को झुठलाने का बाजार उस समय भी गर्मा गया था जब अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसकी सच्चाई को नकारते हुए इसे एक 'छलावा' बताया था। हद तो तब हो गई जब उनकी सरकार ने न केवल इस बारे में छपी वैज्ञानिक रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया और साथ ही वैश्विक मंच पर भी उनके प्रशासन ने हर मोड़ पर जलवायु नियमों को वापस लेने की वकालत की थी। 

ऐसा नहीं है कि जलवायु परिवर्तन को झुठलाने वालों में केवल डोनाल्ड ट्रम्प अकेले हैं। वैश्विक स्तर पर कई बड़े ब्रांड और कॉर्पोरेट घरानों का व्यापार जीवाश्म ईंधन और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने वाली गतिविधयों से जुड़ा है जिससे उनको अच्छी खासी कमाई होती है। ऐसे में यदि जलवायु परिवर्तन को लेकर कड़े मानदंड और नियम लागु हो जाते हैं तो उनकी इस कमाई को भारी नुकसान हो सकता है। ऐसे में वो हमेशा से इस बात की कोशिश करते रहे हैं कि इस कार्रवाई को रोका या फिर लम्बे समय तक टाला जा सके।

देखा जाए तो आज सोशल मीडिया इतना लोकप्रिय हो चुका है कि वो जन-जन की आवाज बन चुका है ऐसे में जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी झूठी ख़बरों को फैलाने बाजार अब इन प्लेटफॉर्म पर भी तेजी से फैलने लगा है। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आया है कि ट्विटर पर झूठी खबरे सच से कहीं ज्यादा तेजी से फैल रही हैं। जिनके लिए इंसान नहीं बॉट प्रमुख रूप से जिम्मेवार हैं। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस तरह के बॉट का उपयोग कोई आम आदमी तो करेगा नहीं। जर्नल फ्रंटियर्स इन कम्युनिकेशन में जलवायु परिवर्तन को लेकर डाली गई भ्रामक जानकारी का खुलासा किया गया था। 

देखा जाए तो पिनटेरेस्ट ने जलवायु सम्बन्धी गलत और भ्रामक सूचनाओं को रोकने के लिए नीति बनाकर महान नेतृत्व का प्रदर्शन किया है। इससे उन दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी दबाव बढ़ेगा कि वो अपने प्लेटफार्म पर इस तरह की गलत सूचनाओं के दुष्प्रचार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएं और उन्हें कम करने लिए पिनटेरेस्ट के साथ कदम से कदम मिलाएं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन किसी एक की समस्या नहीं है यह पूरी मानव जाति के अस्तित्व का सवाल है।