जलवायु

हिमाचल में बढ़ेंगी प्राकृतिक आपदाएं, पहले ही कर दी गई थी भविष्यवाणी

चालू मानसून सीजन में चंबा, कांगड़ा, किन्नौर और लाहौल स्पीति में बादल फटने, भूस्खलन, चट्टानों के टूटने और बाढ़ की घटनाएं हुई हैं

Rohit Prashar

हिमाचल में बादल फटने, पहाड़ी के दरकने और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भारी वृद्धि देखी जा रही है। गत 20 दिनों में हिमाचल में चार बड़ी प्राकृतिक आपदाएं हो चुकी हैं। वहीं, इस मानसून सीजन में डेढ़ माह में हुई प्राकृतिक आपदाओं और दुर्घटनाओं की घटनाओं में 202 जानें जा चुकी हैं और करोड़ों रुपए की संपत्ति का नुकसान हो चुका है। हिमाचल में बढ़ती घटनाओं ने जलवायु परिवर्तन की आशंकाओं को सच साबित कर दिया है।

गौरतलब है कि हिमाचल सरकार के पर्यावरण, विज्ञान एवं तकनीकी विभाग ने 2012 में जलवायु परिवर्तन पर राज्य की रणनीति और एक्शन प्लान तैयार किया था। इस दस्तावेज में पहले ही आगाह किया गया था कि जलवायु परिवर्तन के असर को कम नहीं किया गया तो राज्य में बाढ़, भूस्खलन, ग्लेशियर झीलों का फटना, अधिक वर्षा, अधिक बर्फबारी, बेमौसमी बारीश और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होगी। एक्शन प्लान में स्पष्ट तौर पर हिमाचल में स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं को मजबूत करने पर भी बल देने की बात कही गई है।

स्टेट स्ट्रैटेजी एडं एक्शन प्लान फार क्लाइमेट चेंज में भविष्य के तापमान को लेकर की गई भविष्यवाणी में कहा गया है कि 2030 तक प्रदेश के न्यूनतम तापमान में 1 से 5 डीग्री सेल्सियस और अधिक तापमान में 0.5 से 2.5 डिग्री सेल्सियस तक का अंतर देखा जाएगा। एक्शन प्लान में बारिश के दिनों में बढ़ोतरी होने का दावा किया गया है 2030 तक हिमाचल में बारिश के दिनों में 5 से 10 अधिक दिन जुडेंगे। वहीं हिमाचल के उतर पश्चिम क्षेत्र में इनकी संख्या 15 तक हो सकती है।

अभी हाल में चंबा, कांगड़ा, किन्नौर और लाहौल स्पीति में बादल फटने, भूस्खलन, चट्टानों के टूटने और बाढ़ की ज्यादा घटनाएं देखने को मिली हैं और इन घटनाओं में 30 से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं। जबकि स्टेट स्ट्रैटेजी एडं एक्शन प्लान फार क्लाइमेट चेंज में भी इन्ही जिलों में भारी बारीश, भूस्खलन और प्राकृतिक आपदाओं को लेकर चेताया गया था।

इस दस्तावेज में अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों किन्नौर, लाहौल-स्पीति, चंबा और कुल्लू जहां पर बर्फबारी होती है, अब इन स्थानों में बर्फबारी के स्थान पर ज्यादा बारीश का क्रम देखा गया है। जिससे प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं।

शीत मरूस्थल के नाम से जाने वाले हिमाचल के लाहौल स्पीति जिले में ज्यादातर घर मिट्टी से बने होते हैं और ऐसे में अब इस क्षेत्र में हर साल अधिक बारिश देखी जा रही है। लाहौल स्पीति के युवा विक्रम कटोच ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हमारे क्षेत्र में बहुत कम बारीश कम होती थी। लेकिन अब अधिक बारीश की वजह से ज्यादातर नालों में बाढ़ आती देखी जा रही है जो पहले कभी नहीं होता था। इसके अलावा मौसम में आ रहे बदलावों की वजह से हिमस्खलन की घटनाओं में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है।

इसके अलावा एशियन डेवल्पमेंट बैंक की ओर से क्लाइमेट चेंज अडोप्सन इन हिमाचल प्रदेश को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय की क्लाइमेट असेस्टमेंट इन हिमाचल प्रदेश में तापमान और बारीश के 1976 से 2006 तक के डाटा को शोध किया गया है। इसमें पाया गया है कि लाहौल स्पीति, कांगडा और चंबा में बारीश का क्रम बढ़ा है जबकि सोलन और किन्नौर में बारीश में कमी आई है।

इसके अलावा एशियन डेवल्पमेंट बैंक की ओर से क्लाइमेट चेंज अडोप्सन इन हिमाचल प्रदेश को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट में भी हिमाचल प्रदेश को प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से संवेदनशिल बताया गया है। इस रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश में एक्स्ट्रीम इवेंट्स में वृद्धि की बात कही गई है । इसमें बताया गया है कि हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियां यहां प्राकृतिक आपदाओं में ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए हिमाचल प्रदेश में इन्फ्रास्ट्रचर में इन्नोवेटिव इंजीनियरिंग का प्रयोग करना चाहिए। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि हिमाचल मे 2,30,00 हैक्टेयर भूमि बाढ़ संभावित क्षेत्र के तहत आती है। इसलिए इससे निपटने के लिए भी पहले से ही तैयारियां की जानी चाहिए ताकि नुकसान को कम किया जा सके।

बिल्डींग मेटेरियल एडं टेक्नोलाॅजी प्रमोशन कांउसिल की एक रिपोर्ट बताती है कि हिमाचल में 40 फीसदी क्षेत्र उच्च संवेदनशील और 32 फीसदी क्षेत्र अति संवेदनशील केटेगरी में आता है। इसलिए हमें भवन निर्माण के दौरान ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है।

इंपैक्ट एडं पाॅलीसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के रिसर्च फैलो व शिमला नगर निगम शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र पंवर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हिमाचल में प्रदेश में बहुत ज्यादा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और नेशनल हाइवे प्रोजेक्ट का काम चल रहा है। इनके निर्माण के समय नियमों को ताक में रखा जा रहा है। पहाड़ियों में खोदाई के दौरान न ही तो हाइड्रोलाॅजिस्ट और न ही जियोलाॅजिस्ट की राय का ध्यान रखा जाता है। जिससे भूस्खलन की घटनाओं में बेतहाशा बढोतरी हो रही है। इसके अलावा उनका कहना है कि हिमाचल में पाॅलीसी इंम्पलीमेंटेशन को लेकर बहुत सारी खामियां हैं।

स्टेट स्ट्रैटेजी एडं एक्शन प्लान फार क्लाइमेट चेंज में सतत कृषि, जल संसाधन, वन और जैव विविधता, स्वास्थ्य और पर्यटन, शहरी विकास और उर्जा क्षेत्र में सुधार लाने को लेकर सुझाव दिए गए हैं। इस एक्शन प्लान के लिए 1560 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया था, लेकिन अभी ज्यादातर क्षेत्रों में बहुत काम करने की जरूरत है। ताकि भविष्य में जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली प्राकृतिक आपदाओं और आने वाले बड़ी चुनौतियों के लिए सयम रहत तैयारी की जा सके और नुकसान को कम किया जा सके।