जलवायु

जलवायु में आते बदलावों की वजह से अंटार्कटिक की बर्फ में गुम होते अंतरिक्ष के रहस्य

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जिस तेजी से अंटार्कटिका में बर्फ पिघल रही है, उसके चलते सालाना करीब 5,000 उल्कापिंड गायब हो रहे हैं

Lalit Maurya

अंटार्कटिका किसी रहस्यमयी दुनिया से कम नहीं, बर्फ की सफेद चादर से ढंका यह खूबसूरत महाद्वीप जहां आम लोगों के लिए कौतुहल का विषय है वहीं वैज्ञानिकों के लिए किसी अबूझ पहली की तरह है। यह महाद्वीप अपने अन्दर अनगिनत रहस्यों को समेटे हुए है, इन्हीं रहस्यों में से एक है यहां मौजूद उल्कापिंड।

अंटार्कटिका की सतह अनगिनत छोटे-बड़े उल्कापिंड जमा हैं। जो इस बर्फीले महाद्वीप में अपने साथ सौर मंडल से जुड़े रहस्यों का एक अद्वितीय भंडार संजोए हुए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से लेकर, चंद्रमा के निर्माण ब्रह्मांड के कई ऐसे रहस्य हैं जिनके जवाब इन उल्कापिंडों से मिल सकते हैं।

लेकिन एक नई रिसर्च से पता चला है कि जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहा हैं उसके चलते ज्ञान के यह अमूल्य भंडार नष्ट हो रहे हैं। रिसर्च के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जिस तेजी से अंटार्कटिका में बर्फ पिघल रही है, उसके चलते सालाना करीब 5,000 उल्कापिंड बर्फ की गहराइयों में दफन हो रहे हैं।

यह नुकसान अंटार्कटिका से उल्कापिंड एकत्र करने की दर से पांच गुना अधिक है। बता दें कि पिछले दशकों में, कई क्षेत्रीय अभियानों के मदद से वहां से हर साल औसतन 1,000 उल्कापिंड एकत्र किए गए हैं।

गौरतलब है कि दुनिया में उल्कापिंडों को खोजने की अंटार्कटिका सबसे बेहतर जगह है। पृथ्वी पर अब तक जो करीब 80,000 उल्कापिंड खोजे गए हैं उनमें से 60 फीसदी से अधिक अंटार्कटिका में बर्फ की सतह पर पाए गए हैं। वैज्ञानिकों का यह भी अनुमान है कि वहां बर्फ की सतह से अभी 300,000 से 850,000 उल्कापिंड एकत्र किए जाने बाकी हैं।

यह अध्ययन बेल्जियम, स्विट्जरलैंड और यूके के कई संस्थानों से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुए हैं। अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जलवायु पूर्वानुमानों की मदद ली है।

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक वैश्विक तापमान में हर डिग्री के दसवें हिस्से की वृद्धि के साथ वहां बर्फ की सतह पर मौजूद करीब 5,100 से 12,200 उल्कापिंड गायब हो रहे हैं। जो अंटार्कटिका में मौजूद सभी उल्कापिंडों का करीब एक से दो फीसदी है। देखा जाए तो यह विज्ञान को होती एक बहुत बड़ी क्षति है। इसकी वजह से हम न केवल इन उल्कापिंडों को खो रहें हैं साथ ही इनमें दफन रहस्य भी हमारी पहुंच से दूर होते जा रहे हैं।

विलुप्त होती अलौकिक विरासत

अनुमान है कि अगले 26 वर्षों में 2050 तक अंटार्कटिका में मौजूद तीन से आठ लाख उल्कापिंडों का करीब एक चौथाई हिस्सा (24 फीसदी) हिमनदों के पिघलने के कारण गायब हो जाएगा। वैज्ञानिकों को यह भी अंदेशा है कि जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते सदी के अंत तक इसमें नाटकीय रूप से वृद्धि हो सकती है। अनुमान है कि उच्च तापमान परिदृश्य में 76 फीसदी से अधिक उल्कापिंड गायब हो सकते हैं।

गौरतलब है कि अपने गहरे रंग की वजह से यह उल्कापिंड आसपास की बर्फ की तुलना में कहीं ज्यादा गर्मी सोख सकते हैं। इसकी वजह से जैसे ही यह गर्मी उल्कापिंडों से बर्फ में स्थानांतरित होती है, इसकी वजह से उनके नीचे की बर्फ गर्म होकर पिघलने लगती है। इससे बर्फ में एक छिद्र बन जाता है, जिसकी वजह से यह उल्कापिंड बर्फ की सतह के नीचे डूब जाते हैं। ऐसे में एक बार जब वो बर्फ के नीचे होते हैं, तो भले ही वो बहुत गहराई में न हों, तब भी उन्हें ढूंढना आसान नहीं होता।

अंटार्कटिका धरती के सात महाद्वीपों में से एक है, जो 140 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है। लेकिन यहां इंसानी बसावट बस नाम के लिए है। गर्मियों में यहां इंसानी आबादी करीब चार हजार तक पहुंच जाती है, वहीं पेंगुइन की तादाद करीब 1.2 करोड़ होती है।

इसे दुनिया का आखिरी छोर भी कहा जाता है। अंटार्कटिका में तापमान चार डिग्री सेल्सियस से भी कम रहता है और आमतौर पर तेज बर्फीली हवाएं चलती हैं। इसके ज्यादातर हिस्से में बर्फ की मोटी चादर जमा रहती है। इसी कई फुट मोटी बर्फ में ऐसे कई रहस्य दफन हैं, जो विज्ञान के नजरिए से बेहद मायने रखते हैं।

हालांकि बढ़ते तापमान की वजह से जिस तेजी से अंटार्कटिका में जमा बर्फ पिघल रही है, वो अपने आप में एक बड़ा खतरा है। एक अध्ययन के मुताबिक 25 वर्षों में अंटार्कटिका करीब साढ़े सात लाख करोड़ टन बर्फ खो चुका है।

इतना ही नहीं अंटार्कटिका में 40 फीसदी से अधिक बर्फ की चट्टानें सिकुड़ चुकी हैं और उनमें से आधी में सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे। नेशनल स्‍नो एंड आइस डेटा सेंटर के मुताबिक, 20 फरवरी, 2024 को अंटार्कटिक में जमा समुद्री बर्फ का विस्तार 19.9 लाख वर्ग किलोमीटर दर्ज किया गया था। बता दें कि 1979 से सैटेलाइट की मदद से अंटार्कटिका की स्थिति पर नजर रखी जा रही है।

वहीं पिछले वर्ष इसमें रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई थी तब यह सीमा 21 फरवरी, 2023 को 17.9 लाख वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गई। जिस तेजी से अंटार्कटिका में यह बर्फ पिघल रही है वो धरती पर मंडराते के बड़े खतरे का इशारा है। जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन ने भी इसकी पुष्टि की है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने बढ़ते उत्सर्जन में कटौती करने के साथ-साथ इन उल्कापिंडों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों में तेजी लाने का आह्वाहन किया है।