जलवायु

सदियों तक महासागरों में जीवों को प्रभावित करेगा दो डिग्री से अधिक तापमान

वायुमंडलीय सीओ2 का स्तर चरम पर पहुंचने और घटने के बाद भी लोग लंबे समय तक इसके प्रभावों को महसूस करते रहेंगे

Dayanidhi

दुनिया भर में अब इस बात को मान रहे हैं कि, धरती 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान की सीमा को पार कर जाएगी। शोध से यह भी पता चलता है कि यदि वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) अनुमान से अधिक स्तर पर पहुंच जाता है, तो ग्लोबल वार्मिंग अस्थायी रूप से 2 डिग्री सेल्सियस सीमा से अधिक हो जाएगी।

हमारे उत्सर्जन लक्ष्य से अधिक होने को जलवायु में भारी बदलाव के रूप में जाना जाता है। इससे ऐसे परिवर्तन हो सकते हैं जिन्हें हमारे जीवनकाल में दोबारा पहले जैसा नहीं किया जा सकेगा।

शोध में कहा गया है कि, इन परिवर्तनों में समुद्र के स्तर में वृद्धि, कम कार्यात्मक पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों के विलुप्त होने का सबसे अधिक खतरा, ग्लेशियर और पर्माफ्रॉस्ट का नुकसान शामिल है। हम इनमें से कई बदलाव पहले से ही देख रहे हैं।

कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित नया शोध महासागरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पता लगता है। जलवायु संबंधी सभी लक्ष्य से बाहर जाने वाले प्रयोगों और सभी मॉडलों  के विश्लेषण में पाया गया कि पानी के तापमान और ऑक्सीजन के स्तर में हो रहे बदलावों से समुद्र में रहने वाली जीवों में कमी आएगी।

इस तरह की कमी सदियों से देखी जा रही थी। इसका मतलब यह है कि वायुमंडलीय सीओ2 का स्तर चरम पर पहुंचने और घटने के बाद भी लोग लंबे समय तक इसके प्रभावों को महसूस करते रहेंगे।

अध्ययन में क्या देखा गया?

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि, हमारा विश्लेषण, मॉडल इंटर कंपेरिजन प्रोजेक्ट (सीएमआईपी6) के हिस्से के रूप में पृथ्वी प्रणाली मॉडल के साथ सिमुलेशन पर आधारित है। यह परियोजना जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्ट पर आधारित है।

अध्ययनकर्ता ने बताया कि, दो अलग-अलग सीएमआईपी6 से विकसित प्रयोगों से कई मॉडलों के परिणामों को देखा जो जलवायु में भारी बदलाव को दिखाते हैं। एक जलवायु परिदृश्य से मेल खाते हुए, इस शताब्दी में चरम मौसम होने का पूर्वानुमान लगाता है।

दूसरा प्रयोग कार्बन डाइऑक्साइड मॉडल इंटरकंपेरिसन प्रोजेक्ट (सीडीआरएमआईपी) से किया गया है। इसे जलवायु में होने वाले बदलाव का पता लगाने और यह पृथ्वी प्रणाली पर कैसे प्रभाव डालता है, इसका पता लगाने के लिए डिजाइन किया गया था।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि, उन्होंने समुद्र के तापमान और ऑक्सीजन के स्तर में परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन किया। ये परिवर्तन आपस में जुड़े हुए हैं क्योंकि पानी जितना गर्म होगा, उसमें घुली हुई ऑक्सीजन उतनी ही कम होगी।

इस अध्ययन में अध्ययनकर्ताओं ने पता लगाया कि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की लंबे समय तक व्यवहार्यता के लिए गर्म महासागरों और ऑक्सीजन की कमी  का क्या मतलब है। उन्होंने कहा जलवायु परिवर्तन के तहत ये बदलाव शुरू हो चुके हैं।

इन प्रभावों को मापने के लिए हमने एक चयापचय सूचकांक का उपयोग किया, जो व्यक्तिगत जीवों के ऊर्जा संतुलन का वर्णन करता है। व्यवहार्य पारिस्थितिक तंत्र में ऑक्सीजन की आपूर्ति उनकी मांग से अधिक होनी चाहिए। आपूर्ति मांग के जितनी करीब होगी, पारिस्थितिकी तंत्र उतना ही अधिक अनिश्चित हो जाएगा, जब तक कि मांग आपूर्ति से अधिक न हो जाए और ये पारिस्थितिकी तंत्र के लिए ठीक नहीं होगा।

समुद्र में बढ़ते तापमान के तहत हम पहले से ही चयापचय संबंधी मांग में वृद्धि और ऑक्सीजन की कमी के कारण आपूर्ति में कमी देख रहे हैं।

शोधकर्ता ने बताया कि, सूचकांक हमें इस बात का आकलन करने में मदद करता है कि, समुद्र का बदलता तापमान विभिन्न समुद्री प्रजातियों और उनके आवासों को लंबे समय तक इनके रहने के लिए किस तरह प्रभावित करता है। यह हमें यह पता लगाने में मदद करता है कि, दुनिया भर के महासागरों में पारिस्थितिक तंत्र जलवायु परिवर्तन पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं और ये बदलाव कितने समय तक बने रहेंगे।

शोधकर्ता ने कहा, जैसे-जैसे परिदृश्यों में स्थितियां बदली, हमने वैश्विक महासागर की मात्रा के विकास का अनुसरण किया जो 72 समुद्री प्रजातियों की चयापचय मांगों को पूरा कर सकता है या नहीं कर सकता है, इस बात का पता लगाया।

अध्ययन से क्या पता चला?

जलवायु में बदलाव संबंधी सभी प्रयोगों और सभी मॉडलों के निष्कर्षों से पता चलता है कि पानी की मात्रा जो रहने लायक आवास प्रदान कर सकती है, कम हो जाएगी। यह कमी सदियों तक जारी रहेगी, वैश्विक औसत तापमान के चरम सीमा से उबरने के बाद भी ऐसा देखा जा सकता है।

अध्ययन के निष्कर्ष कम होते आवासों के बारे में चिंताएं बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, ट्यूना जैसी प्रजातियां ऑक्सीजन युक्त सतही जल में अच्छी तरह से रहती हैं और गहरे पानी में कम ऑक्सीजन के कारण वह वहां नहीं रहती है। अध्ययन के अनुसार, उनका निवास स्थान सैकड़ों वर्षों तक सतह की ओर संकुचित रहेगा।

ऐसी प्रजातियों पर निर्भर रहने वाले मत्स्य पालकों को यह समझने की आवश्यकता होगी कि उनके वितरण में परिवर्तन मछली पकड़ने की जगहों और उत्पादकता को कैसे प्रभावित करेगा। यह स्पष्ट है कि पारिस्थितिकी तंत्र को इन परिवर्तनों के अनुकूल होने की आवश्यकता होगी अन्यथा महत्वपूर्ण पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों के साथ ढहने का खतरा होगा।

सिकुड़ते समुद्री आवासों के लिए क्या जरूरी है?

आज तक, अधिकांश शोध महासागरों के गर्म होने पर आधारित रहे हैं। हमने तापमान और ऑक्सीजन के कम होने के जिस संयोजन का अध्ययन किया, उससे पता चलता है कि वैश्विक औसत तापमान चरम पर पहुंचने के बाद बढ़ा हुआ तापमान सैकड़ों वर्षों तक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।

शोधकर्ता ने कहा, हमें प्रजातियों की प्रचुरता और खाद्य सुरक्षा से समझौता करने से बचने के लिए संसाधन प्रबंधन के बारे में अधिक सोचना होगा।

उन्होंने कहा कि, यदि हम पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों से काफी आगे निकल जाते हैं, तो जलवायु परिवर्तन के कई अपरिवर्तनीय प्रभाव होंगे। इसलिए, अब उत्सर्जन में भारी कमी लाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। फिर हम भारी जलवायु परिवर्तन से बच सकते हैं, सदी के मध्य तक कुल शून्य उत्सर्जन तक पहुंच सकते हैं और तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे बनाए रख सकते हैं।

शोधकर्ता ने कहा, भविष्य में होने वाले बदलावों का आकलन काफी हद तक पृथ्वी प्रणाली मॉडल पर निर्भर करता है। जलवायु की अधिकता और जलवायु प्रणाली में बदलाव के बारे में प्रमुख प्रश्नों के बेहतर उत्तर देने के लिए, हमें अपने मॉडलों में और सुधार करने की आवश्यकता है।

उन्होंने बताया कि, हमें यह पता लगाने के लिए नई प्रायोगिक रूपरेखा भी विकसित करनी होगी कि, जलवायु परिवर्तन की स्थिति में इसके दीर्घकालिक प्रभाव को कम करने के लिए क्या किया जा सकता है।