जलवायु

6,000 से अधिक छोटे पंखों और हल्के रंग की तितलियों को जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक खतरा

शोधकर्ताओं का मानना है कि शोध की मदद से उन प्रजातियों की पहचान करने में मदद मिल सकती है जिनका अस्तित्व जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में है

Dayanidhi

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पारिस्थितिकीविदों के नेतृत्व वाली एक टीम का कहना है कि, उष्णकटिबंधीय तितलियों का परिवार, पंखों की लंबाई और पंखों का रंग बढ़ते तापमान को झेलने की उनकी क्षमता पर असर डाल रहा हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस अध्ययन से उन प्रजातियों की पहचान करने में मदद मिल सकती है जिनका अस्तित्व जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में है।

अध्ययन में कहा गया है कि, जब जलवायु परिवर्तन की बात आती है तो छोटे या हल्के रंग के पंखों वाली तितलियों के इससे निपटने के आसार कम होते हैं। लाइकेनिडाई परिवार, जिसमें तितलियों की 6,000 से अधिक प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें से अधिकांश उष्णकटिबंध में रहती हैं, विशेष रूप से खतरे में हैं।

अधिक या गहरे रंग के पंखों वाली तितलियों का बढ़ते तापमान में बेहतर प्रदर्शन करने की संभावना है, लेकिन केवल एक सीमा तक। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर अचानक लू या हीटवेव या पेड़ों को काटे जाने के कारण शांत माइक्रॉक्लाइमेट गायब हो जाते हैं तो इन तितलियों में भी भारी गिरावट आ सकती है।

तितलियां आवश्यक ऊर्जा पाने के लिए सूर्य की गर्मी पर निर्भर रहती हैं। वे बदलते हवा के तापमान के खिलाफ शरीर के तापमान को संतुलित बनाए रखने के लिए 'थर्मोरेगुलेशन' रणनीतियों का उपयोग करती हैं।

इनमें आम तौर पर, ठंडा रहने की रणनीतियों में छायादार स्थान पर उड़ना या सूरज से दूर पंख फैलाना (थर्मल बफरिंग) जैसे अनुकूली व्यवहार शामिल होते हैं। लेकिन जब यह संभव नहीं होता है या तापमान बहुत अधिक गर्म हो जाता है, तो प्रजातियों को उच्च तापमान का सामना करने के लिए हीट शॉक प्रोटीन के उत्पादन जैसे शारीरिक तंत्र पर निर्भर रहना पड़ता है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इन दोनों रणनीतियों की आवश्यकता होती है।

उष्णकटिबंधीय तितलियों की थर्मल बफरिंग और गर्मी सहने की रणनीतियों का अध्ययन करने के लिए शोधकर्ताओं ने स्मिथसोनियन ट्रॉपिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसटीआरआई) के साथ सहयोग किया। उन्होंने पनामा में कई आवासों से आंकड़े एकत्र किए।

पर्यावरणविदों ने एक छोटे थर्मामीटर जैसी जांच का उपयोग करके 1,000 से अधिक तितलियों का तापमान लिया। उन्होंने प्रत्येक तितली के तापमान की तुलना आसपास की हवा या उस वनस्पति के तापमान से की जिस पर वह बैठी थी। इसने थर्मल बफरिंग का माप दिया, उतार-चढ़ाव वाले हवा के तापमान के खिलाफ शरीर के तापमान को स्थिर बनाए रखने की क्षमता को थर्मल बफरिंग कहते हैं।

एक दूसरा प्रयोग एसटीआरआई गैंबोआ सुविधाओं में आयोजित किया गया था और इसमें तितलियों की गर्मी सहन करने का आकलन करना शामिल था। अत्यधिक तापमान का सामना करने की उनकी क्षमता, जैसे कि वे हीटवेव के दौरान अनुभव कर सकते हैं। इसका आकलन तितलियों के एक समूह को पकड़कर और उन्हें पानी के कांच के जार में रखकर किया गया, जिसका तापमान लगातार बढ़ रहा था। गर्मी सहन करने का मूल्यांकन उस तापमान के रूप में किया गया जिस पर तितलियां अब कार्य नहीं कर सकतीं।

जिन तितलियों के पंख बड़े होते हैं उनमें तापीय बफरिंग क्षमता अधिक होती है लेकिन छोटी तितलियों की तुलना में गर्मी सहन करने की क्षमता कम होती है। दरअसल, उसी शोध टीम द्वारा किए गए एक और अध्ययन में, बड़े, लंबे और संकीर्ण पंखों वाली तितलियों को गर्मी सहन करने की क्षमता में बेहतर पाया गया।

गहरे पंखों वाली तितलियों में गर्मी सहन करने की क्षमताएं अधिक पाई गईं, जो हल्के पंखों वाली तितलियों की तुलना में अधिक तापमान भी सहन कर सकती हैं।

लाइकेनिडाई परिवार की तितलियों, जिनके पंख छोटे, चमकीले और अक्सर इंद्रधनुषी होते हैं, उनमें सबसे कम गर्मी सहन करने की क्षमता थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर मौजूदा दर से तापमान बढ़ता रहा, जंगलों का काटा जाना जारी रहता है और ठंडी माइक्रॉक्लाइमेट नष्ट हो गईं, तो एक इस बात का बहुत बड़ा  खतरा है कि हम भविष्य में इस परिवार की कई प्रजातियों को खो सकते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे पता चलता है कि उष्णकटिबंधीय तितलियां इन तरीकों में से एक का उपयोग करके दूसरे की कीमत पर तापमान परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित हुई हैं और यह चयनात्मक दबावों के कारण होने के आसार हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि, आकार संबंधी विशेषताओं वाली तितलियां जो उन्हें सूरज की गर्मी से बचने में मदद कर सकती हैं, जैसे बड़े पंख जो उन्हें छाया में जल्दी से उड़ने में सक्षम बनाते हैं, शायद ही कभी अधिक तापमान का अनुभव करते हैं। इसलिए उनका सामना करने के लिए विकसित नहीं हुए हैं। दूसरी ओर जो प्रजातियां शारीरिक रूप से अधिक तापमान का सामना कर सकती हैं, उन्होंने गर्मी से बचने वाले व्यवहार विकसित करने के लिए कम चयनात्मक दबाव का अनुभव किया है।

जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जा रहा है और जंगलों की कटाई के कारण जंगल छोटे और दूर होते जा रहे हैं, तितलियां जो अधिक तापमान से बचने के लिए अपने परिवेश पर निर्भर हैं, वे जंगल के हिस्सों के बीच यात्रा करने में सक्षम नहीं हो सकती हैं। बढ़ती गर्मी या लू का सामना करने में सक्षम नहीं हो सकती हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इसका मतलब यह है कि बड़े गहरे पंखों वाली प्रजातियां जिनकी गर्मी सहन करने की क्षमता अच्छी हैं, वे शुरू में गर्म तापमान से प्रभावित नहीं हो सकती हैं, क्योंकि वे व्यवहार और माइक्रोक्लाइमेट का उपयोग करके प्रभावी ढंग से थर्मोरेगुलेट करना जारी रख सकती हैं, लेकिन अचानक हीटवेव होने पर उनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है, या वे अब ठंडी वनस्पतियों की ओर पलायन नहीं कर सकते है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, दुनिया भर में तितलियों समेत सभी कीड़े-मकौड़ों के जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने की आशंका है। जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन जटिल है और यह आवास के नष्ट होने जैसे अन्य कारणों से प्रभावित हो सकता है। हमें इन दो वैश्विक चुनौतियों से मिलकर निपटने की जरूरत है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि, गर्म जलवायु का तितलियों के अन्य जीवन चरणों, जैसे कैटरपिलर और अंडे, और अन्य कीट समूहों पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, दुनिया भर में, अधिकांश कीट विज्ञानी कीड़ों की जैव विविधता में भारी गिरावट देख रहे हैं। कीड़ों की गिरावट के कारणों और परिणामों को समझना पारिस्थितिकी में एक महत्वपूर्ण लक्ष्य बन गया है, खासकर पारिस्थितिकी में उष्णकटिबंधीय, जहां अधिकांश स्थलीय विविधता पाई जाती है।