2020 की पहली छमाही (जनवरी से जून) में दुनियाभर में करीब 207 प्राकृतिक आपदाएं दर्ज की गई हैं। इन सभी में चक्रवात अम्फान से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था। अनुमान है कि इससे करीब 1,12,376 करोड़ रुपए (1,500 करोड़ डॉलर) की आर्थिक क्षति हुई। यदि 2000 से 2019 के बीच का औसत देखें तो इस बीच करीब 185 आपदाएं सामने आई हैं जो स्पष्ट रूप से दिखाता है कि दुनियाभर में प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो रही है| इस वर्ष यदि अमेरिका को छोड़ दें तो सभी जगह औसत से ज्यादा आपदाएं रिकॉर्ड की गई हैं।
2019 में इसी अवधि में आई आपदाओं से तुलना करें तो इसमें कम से कम 27 फीसदी की वृद्धि हुई है| गौरतलब है जनवरी से जून 2019 के बीच करीब 163 प्राकृतिक आपदाएं दर्ज की गई थी| यह जानकारी 23 जुलाई को जारी एक रिपोर्ट "ग्लोबल कैटास्ट्रोफ रिकैप: फर्स्ट हाफ ऑफ 2020" में सामने आई है।
2020 के पहले छह महीने में आई आपदाओं से करीब 561,881 करोड़ रुपए (7,500 करोड़ डॉलर) का नुकसान हुआ है जो 1980 से 2019 के बीच हुए औसत नुकसान 5,84,357 करोड़ रुपए (7,800 करोड़ डॉलर) के लगभग बराबर है। वहीं इसमें से करीब 95 फीसदी से अधिक नुकसान मौसम संबंधित आपदाओं के कारण हुआ है। यह नुकसान करीब 5,31,914 करोड़ रुपए (7,100 करोड़ डॉलर) का है। वास्तव में, जनवरी से जून के बीच आई 92 फीसदी आपदाएं मौसम से संबंधित थी।
यदि ट्रॉपिकल चक्रवातों से हुए नुकसान को देखें तो यह 2000 से 2019 के औसत से 270 फीसदी ज्यादा है| रिपोर्ट के अनुसार, बंगाल की खाड़ी में आए चक्रवात 'अम्फान' से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था। यही वजह थी कि यह दुनिया की सबसे महंगी आपदा रही जिससे करीब 1,12,376 करोड़ रुपए (1,500 करोड़ डॉलर) की आर्थिक क्षति उठानी पड़ी थी।
इस चक्रवात ने मई 2020 में बंगाल की खाड़ी के निकटवर्ती देशों भारत और बांग्लादेश में भारी तबाही मचाई थी। यह 1999 के बाद से इस क्षेत्र में आया तीसरा सबसे भयंकर तूफान था। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के तटीय इलाकों में मौसम की चरम घटनाओं से भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। यह जलवायु में आ रहे बदलावों का परिणाम है।
यदि दुनिया के सबसे नुकसान पहुंचाने वाली आपदाओं को देखें तो उनमें से 18 मौसम से जुड़ी घटनाएं हैं| इनमें से 12 अमेरिका में घटी थी जबकि भारत और चीन में एक-एक आपदा आई। इनसे 1,49,835 करोड़ रुपए (2,000 करोड़ डॉलर) से ज्यादा का नुकसान हुआ था।
इन आपदाओं से हुए कुल नुकसान का 80 फीसदी हिस्सा तूफानों के कारण हुआ था। रिपोर्ट के अनुसार, आपदाओं के कारण जो नुकसान हुआ था, उसमें से करीब 224,753 करोड़ रुपए (3,000 करोड़ डॉलर) का इंश्योरेंस किया हुआ था।
इन आपदाओं में अब तक 2,200 लोगों की जान जा चुकी है जिसमें से सबसे ज्यादा करीब 60 फीसदी मौतें बाढ़ कारण हुई हैं। सबसे ज्यादा 1,002 जानें एशिया-प्रशांत क्षेत्र में गई हैं। इसमें यदि अफ्रीका में हुई मौतों के आंकड़ों को जोड़ दें तो यह संयुक्त रूप से कुल मौतों का करीब 71 फीसदी हो जाता है।
पिछले साल भी इस अवधि में बाढ़ और चक्रवातों के चलते करीब 2900 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। सबसे ज्यादा मौतों ट्रॉपिकल चक्रवातों की वजह से अफ्रीका में हुई थी|
आईपीसीसी ने चेतावनी दी है कि जलवायु में आ रहे बदलावों के चलते ट्रॉपिकल चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि हो सकती है। अनुमान है कि यदि वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो उससे चक्रवातों की तीव्रता में 10 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है। इसका होगा कि भविष्य में ज्यादा शक्तिशाली और विनाशकारी तूफान झेलने पड़ सकते हैं| इनकी संख्या में भी वृद्धि हो सकती है|
ऐसे में बाढ़ और चक्रवात जैसी आपदाओं से होने वाला आर्थिक नुकसान भी बढ़ जाएगा। इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। जलवायु में हो रहे परिवर्तनों से निपटने और उनके उचित प्रबंधन और प्रभावों को सीमित करने के उपायों पर काम करना जरूरी है|
भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन पर जारी हालिया आकलन में भी 21वीं सदी के दौरान उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि होने का अंदेशा जताया है। इसके अनुसार जलवायु मॉडल से प्राप्त निष्कर्ष के अनुसार एनआईओ बेसिन में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि होने की पूरी आशंका है।