ऑक्टोपस जैसे मोलस्क, समुद्री सितारे, समुद्री अर्चिन जैसे इचिनोडर्म, झींगा और केकड़े जैसे क्रस्टेशियन भी विशेष रूप से भारी खतरे में माने गए हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

खतरे में हैं अछूते आवासों में रहने वाले समुद्री जीव भी, कोरल पर सबसे अधिक खतरा

जलवायु परिवर्तन और अन्य मानवजनित गतिविधियों के कारण समुद्री जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का खतरा बढ़ रहा है

Dayanidhi

जलवायु परिवर्तन और अन्य मानवजनित गतिविधियों के कारण समुद्री जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का खतरा बढ़ रहा है, यहां तक उन पर भी खतरा मंडरा रहा है जो प्राचीन समुद्री आवासों और विविध तटीय इलाकों में रहते हैं।

धरती और समुद्र पर मानवीय गतिविधियां, जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर रही हैं। कई प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे को बढ़ा रही हैं और अहम पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए खतरा पैदा कर रही हैं जिन पर कि मनुष्य निर्भर हैं। हालांकि इन खतरों से सही तरीके से निपटने के लिए, यह समझना जरूरी है कि मानवजनित कारण कहां और किस हद तक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर डाल रहे हैं।

एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में 21,000 से अधिक समुद्री जीवों की प्रजातियों पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव का पता लगाया, जिसमें मछली पकड़ने, शिपिंग और भूमि-आधारित खतरों पर गौर किया गया।

फिर उन्होंने दुनिया भर के महासागरों पर पड़ने वाले प्रभावों का मानचित्रण किया, उन स्थानों की पहचान की जहां जलवायु के कारण पड़ने वाले प्रभाव अन्य मानवजनित कारणों से होने वाले तनावों के साथ शामिल हो जाती हैं। शोधकर्ताओं के विश्लेषण से पता चला कि अपेक्षाकृत अछूते आवास भी अब भारी खतरों का सामना कर रहे हैं।

इसके अलावा शोध में प्रजातियों की बहुत अधिक विविधता वाले कई तटीय इलाके पहले की अपेक्षा अधिक खतरे में होने की बात कही गई हैं, जैसा कि पहले के अध्ययनों से पता चला है, जिसमें प्रजातियों पर नहीं बल्कि आवासों पर गौर किया गया था। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण, समुद्र की सतह का ऊंचा तापमान और महासागर का अम्लीकरण अन्य मानवजनित कारणों के तनावों की तुलना में अधिक खतरनाक थे।

कुल मिलाकर कोरल सबसे अधिक खतरे वाले समूह थे, जिसमें स्क्विड और ऑक्टोपस जैसे मोलस्क, समुद्री सितारे और समुद्री अर्चिन जैसे इचिनोडर्म और झींगा, केकड़े और झींगे जैसे क्रस्टेशियन भी विशेष रूप से भारी खतरे में माने गए हैं।

शोध के परिणाम इस बात की पूरी जानकारी प्रदान करते हैं कि कौन सी प्रजातियां आवास संबंधी खतरे में हैं और संरक्षणवादियों को अपने प्रयासों को कहां लागू करना चाहिए।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से उम्मीद जताई है कि इन आंकड़ों को सामाजिक-आर्थिक जानकारी के साथ जोड़ा जाएगा ताकि प्रकृति और लोगों दोनों को फायदा पहुंचाने के लिए प्रभावी, आर्थिक रूप से कुशल और सामाजिक रूप से न्यायसंगत संरक्षण कार्यों को प्राथमिकता देने में मदद मिल सके।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, हमारा प्रजाति-आधारित नजरिया स्थानीय प्रथाओं और गतिविधियों की पहचान करने में मदद करता है जो खतरे में पड़ी समुद्री प्रजातियों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। जबकि विशेष समुद्री भंडार जैसे व्यापक संरक्षण समुद्री जैव विविधता को संरक्षित करने में प्रभावी हैं, वे स्थानीय लोगों पर आर्थिक संकट भी डाल सकते हैं और राजनीतिक विरोध को उग्र बना सकते हैं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि यह काम जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए राजनीतिक रूप से व्यवहार्य, किफायती हस्तक्षेपों के अवसरों को सामने लाता है, जैसे कि मछली पकड़ने के गियर पर प्रतिबंध, पोषक तत्वों के बहने को कम करने के लिए खेती में सुधार और शिपिंग गति में कमी के लिए प्रोत्साहन देना आदि।

यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया है जिसे ओपन-एक्सेस जर्नल प्लोस वन में प्रकाशित किया गया है।