वर्तमान में मरूद्यान 37 देशों में पाए जाते हैं। 77 फीसदी मरूद्यान एशिया में स्थित हैं और 13 फीसदी ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं।फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, हेंड्रिक डेक्वीन उर्फ ​​लूफी 
जलवायु

रेगिस्तान में तब्दील हो रहे हैं दुनिया के कई मरूद्यान वाले इलाके

दुनिया में मरुस्थलीय क्षेत्रों में 220,149 वर्ग किलोमीटर से अधिक की वृद्धि हुई

Dayanidhi

मरूद्यान रेगिस्तान में एक उपजाऊ जगह है, जहां पानी पाया जाता है। इनका वर्चस्व मात्र 1.5 फीसदी भूमि पर होने के बावजूद ये दुनिया की 10 फीसदी आबादी को पोषण देते हैं।

जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधियां मरूद्यानों के नाजुक अस्तित्व को खतरे में डाल रही हैं। नए शोध से पता चलता है कि पिछले 25 सालों में दुनिया के मरूद्यान कैसे बढ़े और सिकुड़े हैं, क्योंकि पानी की उपलब्धता के पैटर्न बदल गए हैं और बढ़ता रेगिस्तान इन पानी वाले इलाकों पर अतिक्रमण कर रहा है।

शोध के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने हमेशा मरूद्यानों के महत्व पर जोर दिया है, लेकिन दुनिया भर में मरूद्यानों का कोई स्पष्ट नक्शा नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने और शुष्क क्षेत्रों में सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए मरूद्यान अनुसंधान का सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों महत्व है।

अध्ययन में पाया गया कि 1995 से 2020 तक दुनिया भर में मरुस्थलीय क्षेत्रों में 220,149 वर्ग किलोमीटर से अधिक की वृद्धि हुई, जिसका मुख्य कारण एशिया में जानबूझकर किए गए मरुस्थलीय क्षेत्रों का विस्तार करने वाली परियोजनाएं हैं। मरुस्थलीकरण के कारण इसी अवधि में 134,300 वर्ग किलोमीटर मरुस्थलीय क्षेत्रों का विनाश हुआ, जो कि अधिकांशतः एशिया में हुआ, जिससे अध्ययन अवधि में 86,500 वर्ग किलोमीटर की कुल वृद्धि हुई।

शोध के निष्कर्ष जलवायु परिवर्तन और मानवजनित कारणों से इन नमी वाले अभयारण्यों के लिए उत्पन्न होने वाले खतरों को उजागर करते हैं। शोध में सुझाव दिय आज्ञा है कि शुष्क क्षेत्रों में जल संसाधनों का प्रबंधन और सतत विकास इसे आगे बढ़ा सकता हैं। यह अध्ययन अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित हुआ है

मरूद्यानों का जन्म और मृत्यु

मरूद्यान दुनिया के सूखे हिस्सों में लोगों, पौधों और जानवरों के लिए पानी के अहम स्रोत हैं, जो रेगिस्तानों में उत्पादकता और जीवन जीने की राह दिखाते हैं। वे तब बनते हैं जब जमीन से निकले वाला पानी बहता है और निचले इलाकों में जमा हो जाता है, या पिघला हुआ पानी आस-पास की पर्वत श्रृंखलाओं और तालाबों से नीचे की ओर बहता है।

मरूद्यान का अस्तित्व मुख्य रूप से पानी के एक विश्वसनीय स्रोत पर निर्भर करता है जो बारिश नहीं है। आज, मरूद्यान 37 देशों में पाए जाते हैं। 77 फीसदी मरूद्यान एशिया में स्थित हैं और 13 फीसदी ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं।

शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में मरुद्यान के फैलने, बदलावों को समझने के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के जलवायु परिवर्तन पहल भूमि कवर उत्पाद से आंकड़ों  का उपयोग किया। टीम ने भूमि की सतह को सात श्रेणियों में वर्गीकृत किया, जिनमें  वन, घास के मैदान, झाड़ी, फसल भूमि, पानी, शहरी इलाका और रेगिस्तान शामिल हैं।

शोधकर्ताओं ने उपग्रह के आंकड़ों का उपयोग करके शुष्क भूमि वाले हिस्सों के भीतर वनस्पति वाले क्षेत्रों की तलाश की, जो एक मरूद्यान की और इशारा है और 25 वर्षों में बदलावों पर नजर रखी गई। हरियाली में बदलाव ने भूमि उपयोग और मरूद्यान के स्वास्थ्य में हो रहे बदलव का संकेत दिया। जिनमें से यह मानव गतिविधि और जलवायु परिवर्तन दोनों से प्रभावित हो सकता है। उन्होंने भूमि उपयोग के रूपांतरणों का पता लगाने के लिए भूमि की सतह के प्रकार में बदलाव को भी देखा।

शोधकर्ताओं ने पाया कि 25 साल की समयावधि में दुनिया भर में मरूद्यान क्षेत्र में 220,800 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। इस वृद्धि का अधिकांश हिस्सा मनुष्यों द्वारा जानबूझकर रेगिस्तानी भूमि भूजल का उपयोग करके मरूद्यान में परिवर्तित करने, घास के मैदान और फसल भूमि बनाने से हुआ था।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि यह वृद्धि चीन में आधारित थी, जहां प्रबंधन प्रयासों ने वृद्धि में 60 फीसदी से अधिक का योगदान दिया है

मरूद्यान के विस्तार के मानवीय प्रयासों का मुकाबला करते हुए, मरुस्थलीकरण ने मरुद्यान को नुकसान पहुंचाया। दुनिया भर में, शोधकर्ताओं ने पाया कि पिछले 25 वर्षों में मरुद्यान भूमि के 134,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक का नुकसान हुआ है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि मरुद्यान में हुए बदलावों ने दुनिया भर में लगभग 3.4 करोड़ लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है।

लंबी अवधि में मरूद्यानों की स्थिरता

अध्ययन में स्वस्थ मरूद्यानों को बनाए रखने के तरीकों पर प्रकाश डाला गया, जिसमें जल संसाधन प्रबंधन में सुधार, टिकाऊ भूमि उपयोग और प्रबंधन को बढ़ावा देने और जल संरक्षण और कुशल उपयोग को प्रोत्साहित करने के सुझाव शामिल हैं। शोध में शोधकर्ता ने कहा कि ये प्रयास विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जलवायु में लगातार बदलाव हो रहा है।

घटते भूजल का मनुष्यों द्वारा अत्यधिक दोहन मरूद्यानों की स्थिरता को सीमित कर सकता है, साथ ही लंबी अवधि में ग्लेशियर का नुकसान भी हो सकता है। जबकि उच्च तापमान ग्लेशियर के पिघलने को बढ़ाता है, अस्थायी रूप से मरूद्यानों की जल आपूर्ति को बढ़ाता है, जैसे-जैसे ग्लेशियर धीरे-धीरे गायब होते हैं, पिघलता पानी कम हो जाएगा, जिससे मरूद्यान एक बार फिर सिकुड़ जाएंगे।