उत्तराखंड में कई पर्वतीय शहर, कस्बे और गांव “जोशीमठ” जैसी स्थिति की तरफ बढ़ रहे हैं। भू-वैज्ञानिक लगातार इसकी चेतावनी दे रहे हैं। भू-धंसाव हिमालयी क्षेत्र में एक मौन आपदा के तौर पर आगे बढ़ रहा है। जोशीमठ इसका प्रमाण बन गया है।
एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक एसपी सती कहते हैं “कई हिमालयी कस्बे टाइमबम की स्थिति में हैं। चमोली का कर्णप्रयाग और गोपेश्वर, टिहरी में घनसाली, पिथौरागढ़ में मुनस्यारी और धारचुला, उत्तरकाशी में भटवाड़ी, पौड़ी, नैनीताल समेत कई ऐसी जगहें हैं जहां लगातार भूधंसाव हो रहा है। सारी जगह जल निकासी के प्राकृतिक चैनल ब्लॉक कर दिए गए हैं। बहुमंजिला इमारतें बना दी गई हैं। क्षेत्र की भौगोलिक संवेदनशीलता को ध्यान रखे बिना अंधाधुंध निर्माण कार्य किए जा रहे हैं”।
सती जोर देते हैं कि जोशीमठ की मौजूदा हालत से सबक लेते हुए हिमालयी क्षेत्र में निर्माण कार्यों के लिए नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है ताकि और ‘जोशीमठ’ न बनें।
कर्णप्रयाग
जोशीमठ की स्थिति से चमोली के ही कर्णप्रयाग ब्लॉक के लोग सहम गए हैं। यहां बहुगुणानगर के निवासी पंकज डिमरी डाउन टू अर्थ के साथ कई घरों की तस्वीरें साझा करते हैं, जिनमें दरारें पड़ी हैं, कुछ घरों के नीचे की जमीन ही धंस गई है।
पंकज कहते हैं “गांवों से कर्णप्रयाग और गोपेश्वर जैसे कस्बों की ओर लोगों का पलायन बढ़ने से यहां आबादी का दबाव तेजी से बढ़ा। हमारे यहां जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। हर बरसात में गांव के कुछ घर धंसते ही हैं। लेकिन 2021 में चारधाम सड़क परियोजना के लिए अवैज्ञानिक तरीके से पहाड़ काटे गए। इसके बाद घरों में दरारें बढ़नी शुरू हो गई। कुछ परिवारों को अपने घर छोड़ने पड़े”।
कर्णप्रयाग में घरों में पड़ी दरारों की जांच स्थानीय जिलास्तरीय समिति ने भी की। समिति ने माना कि हाइवे को चौड़ा करने, बारिश में पहाड़ियों को काटकर खुल छोड़ने के चलते यहां भूस्खलन हुआ और कई घरों में दरारें आईं। ये दरारें आसपास के क्षेत्रों में भी फैल सकती हैं।
उत्तरकाशी
सेबों की बागवानी के लिए मशहूर उत्तरकाशी का सुक्की टॉप गांव भी अस्थिर पहाड़ी पर बसा हुआ है और भूकंप के लिहाज से अति संवेदनशील सेस्मिक जोन 5 में आता है। गंगोत्री हाईवे के किनारे हर्षिल घाटी में बसे इस गांव के लोग पिछले 20 से अधिक वर्षों से यहां प्रस्तावित बाईपास को लेकर सहमे हुए हैं।
सेब उत्पादक मोहन सिंह राज्य और केंद्र सरकार को भेजे गए पत्रों की प्रतियां साझा करते हैं। वह बताते हैं “चारधाम सड़क परियोजना में सुक्की टॉप समेत चार गांवों को छोड़कर, पहाड़ी के नीचे निर्जन वन क्षेत्र से सैकड़ों हरे पेड़ों को काटकर बाईपास सड़क प्रस्तावित की गई है। पहाड़ के नीचे से सड़क काटकर बाईपास बनाने से पहाड़ी ढाल अस्थिर हो जाएगी। गांव, पर्यावरण और लोगों की आजीविका सब पर खतरा होगा।”
इस मुद्दे पर 2019 में यहां उपजिलाधिकारी रहे पीएल शाह ने भी राज्य सरकार को भेजे एक पत्र में लिखा कि भागीरथी नदी के किनारे संवेदनशील भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में बाईपास के लिए पेड़ों की कटान भूस्खलन की तीव्रता को बढ़ाएगा और उपर बसे गांवों को खतरा हो सकता है।
नैनीताल
सेंटर फॉर ईकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च के डायरेक्टर (रिसर्च) विशाल सिंह कहते हैं कि नैनीताल भी जोशीमठ की स्थिति की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। आबादी, पर्यटक और निर्माण कार्यों का दबाव झेल रहे इस पहाड़ी शहर की कैरिंग कैपेसिटी (वहनीय क्षमता) का आकलन अब तक नहीं किया गया। जबकि वर्ष 1867 से अब तक यह शहर कई भूस्खलन झेल चुका है। केएस वाल्दिया समेत कई भूवैज्ञानिक नैनीताल के मुद्दे को बार-बार उठा चुके हैं।
विशाल कहते हैं कि वर्ष 2000 के बाद जिस तेजी से नैनीताल में निर्माण कार्य हुए हैं, वो भविष्य में भयानक रूप ले सकता है। “अक्टूबर 2021 की आपदा में हम इसका उदाहरण देख चुके हैं। नैनीताल शहर में शेर का डांडा क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से बहुत ज्यादा संवेदनशील है। इस अस्थिर पहाड़ी की ढलान पर 15 हजार से अधिक लोग बसे हुए हैं। बलियनाला खिसक रहा है। नैनीताल की सबसे ऊंची पर्वत चोटी नैनी पीक खिसक रही है। भूकंप के लिहाज से सेस्मिक जोन 4 में आने वाले नैनीताल की नैनी झील के नीचे से फॉल्ट गुजरता है।”
पिथौरागढ़
पिथौरागढ़ में सेस्मिक जोन 5 में आने वाले मुनस्यारी और धारचुला विकासखंड के कई गांव में भूधंसाव हो रहा है। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) के भूवैज्ञानिक पीयूष रौतेला “अ साइलेंट डिजास्टर इन हिमालया” शोधपत्र में यह बात रख चुके हैं। धारचुला ब्लॉक का गर्ब्यांग गांव, मुनस्यारी ब्लॉक का तल्ला धुमार और उमली-भंडारी गांव समेत कई गांवों में घरों में दरारें पड़ी हैं।
जिले के हिमालयन ग्राम विकास समिति के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बिष्ट कहते हैं कि पिथौरागढ़ में थल विकासखंड में नाचनी गांव के पास की सड़क पिछले 20 साल से लगातार धंस रही है। टनकपुर-धारचुला हाईवे पर बेतरतीब तरीके से पहाड़ काटे गए। इनसे भारी मलबा आता है। सड़कें कई दिनों तक बंद रहती हैं। कई गांव भूधंसाव से जूझ रहे हैं। घरों में दरारें पड़ी हैं।
राजेंद्र आशंका जताते हैं कि पंचेश्वर बांध जैसी परियोजनाएं अस्तित्व में आ गईं तो कितना बड़ा संकट होगा।
नीतिगत हस्तक्षेप जरूरी!
जोशीमठ की मौजूदा स्थिति समूचे हिमालयी संवेदनशील क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप की मांग करती है। गंगा आह्वान से जुड़ी पर्यावरणविद् मल्लिका भनोट कहती हैं “संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित कर मास्टर प्लान तैयार करने की आवश्यकता है। इस मास्टर प्लान के आधार पर ही इन क्षेत्रों के लिए विकास नीतियां बनाई जाएं। ये इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है”।
मल्लिका हिमालयी क्षेत्र में विकास परियोजनाओं के लिए किए जाने वाले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) पर भी सवाल उठाती हैं। वह कहती हैं “अभी हम किसी एक परियोजना का किसी क्षेत्र में पड़ने वाले असर का आकलन करते हैं। जबकि ये देखना होगा कि वो परियोजना उस क्षेत्र में पहले से मौजूद अन्य परियोजनाओं, वहां मौजूदा मानवीय गतिविधियों के साथ मिलकर कैसा असर डालेगी। ईआईए के मौजूदा तरीके को बदलने की जरूरत है।”